उळवि - कल्याण क्रांति के पस्चात् वचन साहित्य को जातिवादियो से रक्षा करने के लिये शरणो का आश्रित स्थल है जो उत्तर कन्नड जिले के सूपा ताल्लोक मे स्थित गिरिपर्वत-वने के बिच मे है। यह चेन्नबसवण्ण के लिंगैक्य का स्थान भि है।
नैसर्गिक द्रुष्टि से यह अत्यंत भव्य और सुंदर क्षेत्र है। यह एक पवित्र क्षेत्र है जहां चिन्मय ज्ञानि चेन्नबसवेश्वर ने कल्याण क्रांति के बाद सभि वचन साहित्य की रक्षा करने हेतु उन्हे उळवे के महान्घर की गूफावो में रखकर, नंतर लिंगैक्य हूये । माघ मास की पूर्णिमा के दिन यहां पर बहूत बडा मेला लगता है जिसमें देश के विविध भागों से लाखों लोग समावेश होते है।
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