*लिंगायत* नाम का नयां धर्म | महात्मा बसवेश्वर अभिलेख प्रमाण |
जग-सा विशाल, नभ-सा विशाल
आपका विस्तार उससे बी परे है।
पाताल से भी पार तेरे श्रीचरण,
ब्रह्मांड से भी पार तेरा श्री मुकुट,
अगम अगोचर अप्रतिम हे! लिंग
कूडलसंगमदेव,
तुम मेरे करस्थल में समा गये। -२०१[1]
लिंगायत धर्म गुरू बसवॆष्वर द्वारा 12 वीं सदी में प्रारम्भ किया एक धर्म है। लिंगायत धर्म का उद्देश्य पुरुष महिला असमानता मिटाना, जाति को हटाना, लोगों को शिक्षा प्रदान करना, और हर तरह का बुराई को रोकना हैं।
लिंगायत साहित्य (वचन साहित्य) भगवान का स्पष्ट और वास्ताविक रूप का चित्र्ण प्र्दान करता है। लिंगायत सब अंधविश्वास मान्यताओं को खारिज कर भगवान को उचित आकार "इष्टलिंग" के रूप मे पुजा करने का तरीका प्रदान करता है।
लिंगायत में सभी मानव-जाति जन्म से बराबर हैं। भेदभाव सिर्फ़ ज्ञान पर आधारित है (गुरु शिश्य या भवि भक्त)। यह वर्तमान का शिक्षा प्रणाली के बराबर है। किसी अधिकारी के घर में जन्म लेने से कोई आधिकारि नहि बनसकता, अच्छे अंक प्राप्त करके एक अधिकारी बन सकता है। किसी भी मानव इष्टलिंग दीक्षा' संस्कार से लिंगायत बन सकता है।
मकढ़ी सूत्र से जाला बुनने की भाँति |
लिंगायत मे ज्न्म से पहले हि (जब महिला गर्भवती हो, गर्भावस्था के 7 महीने के आसपास) इष्टलिंग दीक्षा दिया जाएगा। माँ अपने इष्टलिंग के सात अपने बच्चे के इष्टलिंग अपने शरिर पर धारण तथा पुजा किय करते है। बच्चे का जन्म होने पर बच्चे को "लिंगधारण" किया जाएगा। बच्चे की उम्र जब 12-15 साल हो, दीक्षा गुरु द्वारा "इष्टलिंग-दीक्षा" दिया जाएगा।
लिंगायत धर्म अनुभव मंटप में (अनुभव मंटप वर्तमान संसद के बराबर है) विकसित वैज्ञानिक एवं वैचारिक (ideological) : धर्म है। अनुभव मंटप की कार्यवाही वचन साहित्य के रूप में दर्ज हैं। अनुभव मंटप के सदस्य आम आदमी हैं वे भले ही आर्थिक रूप से राजनैतिक रूप से गरीब हैं लेकिन वो आध्यात्मिकता मे, जीवन के बारे में, नैतिकत के बारे में अधिक ज्ञानि हैं। वे आध्यात्मिक और सर्वोच्च वास्तविकता का स्पष्ट ज्ञानि थे।
जहां देखो वहां प ही दीखते देव।
सारे विस्तार का रूप आप ही हैं हे देव
’विश्वतोचक्षु’ आप ही है देव
’विश्वतोमुख’आप ही है देव
’विश्वतोबाहू’ आप ही है देव
’विश्वत:पाद’ आप ही है देव
हे कूडलसंगमदेव। -८५ [1]
पारंपरिक हिंदू धर्म में मानव जाति का जन्म से हि बंटवारा किय गय हैं।
१) ब्राह्मण उत्कृष्ट श्रेणी
२) क्षत्रिय द्वितिय श्रेणी
३) वैश्य तृतीय श्रेणी
४) शूद्र चौथा श्रेणि और अछूत या अस्पृश्य अंतिम श्रेणी
एक व्यक्ति अछूत के घर में जन्म लिया है तो भले ही वह एक प्रतिभाशाली या ज्ञानि हो, परंतु वह किसि भि कारण उच्च श्रेणी हासिल नहीं कर सकता। इस समाज व्यवस्था में गुरु बसवॆष्वर उम्मीद की रोशनी के रूप में आया और इस श्रेणीकरण व्यवस्था को पूरी तरह से हटा दिया। वह स्पष्ट रूप से समझाया कि श्रेणीकरण व्यवस्था मानव निर्मित है, देव निर्मित नहि। और बतया कि सभी मानव-जाति जन्म से समान(बराबर) हैं। सभि अछूत व निम्न वर्ग लोगो को शिक्षा प्रदान की, भगवान की अवधारणा को आसान और आम आदमी की भाषा में समझाया।
दलित व निम्न वर्ग के लोग शिक्षा प्राप्त किया और वे अच्छी वचन (दोहे) लिखना शुरू कर दिया। उनके आध्यात्मिक अनुभवों को सुंदर शब्दों में प्रस्तुत किया। ढोलकिया, मोची, नाई, कुम्हार ये सभी महान आध्यात्मिक अनुभावि व महान लेखक बन गये।
[1] Number indicates at the end of each Vachana is from the book "Vachana", ISBN:978-93-81457-03-0, Edited in Kannada by Dr. M. M. Kalaburgi, Hindi translation: Dr. T.G. Prabhashankar 'Premi'. Pub: Basava Samiti Bangalore-2012.
*लिंगायत* नाम का नयां धर्म | महात्मा बसवेश्वर अभिलेख प्रमाण |