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19. अनुभव मंडप की स्थापना

अनुभव मंडप की स्थापना

अनुभव मंडप
श्री बसवेश्वरजी के सक्रिय मस्तिष्क में कई आलोचनाओं, सुधारों के तत्व उगने लगे थे । उनको कार्यान्वित कर समाज में अमल में लाने और उनके अभिलषित कल्याण राज्य के संस्थापन के लिए उन्हें पहले एक प्रयोगशाला की आवश्यकता थी। जैसे बीज संशोधन केन्द्र में तैयार किये गये नये कोंपलों (मेंड) की परीक्षा के पश्चात् ही किसानों को अच्छा बीज वितरित किया जाता है वैसे ही श्री बसवेश्वर ने भी अपने हृत्मंदिर में अंकित जात्यातीत समाज के निर्माण के सूत्रों को पहले प्रयोग में लाने के पश्चात् ही समाज में प्रतिष्ठापित करना चाहा। इसी उपलक्ष्य में “अनुभव मंडप " जैसी प्रयोगशाला का निर्माण हुआ । उसका उद्देश्य था कि आध्यात्मिक जीवियों के लिए प्रवेश प्रशिक्षण और धर्म प्रचारकों के द्वारा धर्म प्रचार करना था ।

जाति, मत पंथों से मुक्त सामाज का निर्माण करनेवाले सब को 'शरण समाज " में आदर का प्रवेश था। वहाँ संपन्न होनेवाली अनुभाव गोष्ठी में धार्मिक विचारों में भाग लेने का पूर्ण स्वातंत्र्य सब को मिला था। निर्मापक सूत्रधारी श्री बसवेश्वरजी वहाँ आनेवाले सब को “ शरण" (अर्थात् शिवभक्त) मानकर हृदयपूर्वक स्वागत किया करते थे। " भगवान एक है, सभी मानव उनके पुत्र हैं "यही तत्व वहाँ अनुष्ठान में आया ।

प्रतिदिन सुबह और रात के समय अनुभाव गोष्ठी चलती थी। कोई एक सभा का अध्यक्ष बनते थे । सदस्य अपने सामाजिक, नैतिक, अध्यात्मिक और शिक्षा व्यावहारिक सम्बन्धी प्रश्न पूछ सकते थे। इस तरह प्रश्न किसी सदस्य से गोष्ठी में मंडित होते ही उपस्थित सदस्य संवाद रूप में चर्चा करते थे। अंत में विश्वगुरू बसवेश्वरजी चिन्मय ज्ञानी, चन्नबसवण्णा, आदि महाज्ञानि उस विषय के सम्बन्ध में निर्णयात्मक उत्तर देते थे ।

ऐसे "अनुभव मंडप” नामक एक प्रतीकात्मक पीठ की बसवेश्वरने स्थापना की। वह एक आध्यात्मिक सिद्धांत का संकेत था । ज्ञान से गुरुत्व प्राप्त होता है। इसलिए कोई भी ज्ञानी किसी भी जाति में पैदा हुआ हो तो वह धार्मिक पीठ पर आसीन हो सकता हैं, ऐसी घोषना करके उस धर्म पीठ को "शून्य पीठ" नाम दिया। अनुभव मंडप के सभी कार्यकलापों की देखभाल तथा मार्गदर्शन करनेवाले एक समर्थ व्यक्ति की आवश्यकता थी। ऐसे व्यक्तियों की प्रतीक्षा करते समय ही महामहिम अल्लमप्रभुदेव का आगमन् कल्याण में हुआ। उनका पदार्पण होते ही बसवेश्वेरने अनुभव मंडप के “शून्य सिंहासन" का अधिकार प्रभुदेव को सौंप दिया ।

देश के कोने-कोने से प्रतिभान्वित साधक अनुभव मंडप में आने लगे। उनमें से अत्यंत प्रतिभावान, शिवयोग-सम्राट अल्लमप्रभु, वैराग्यनिधि अक्कमहादेवी, कायकयोगी सिद्धरामेश्वर, ज्ञानभंडारी चन्नबसवण्णा, क्रांतिवीर मडिवाल माचिदेव थे। अनुभव मंडप के यदि विश्वगुरू बसवेश्वर आत्मा रहे तो अन्य पाँच उनके पंच प्राण थे। 770 अमरगण, हजारों धर्मानुयायियों का वहाँ समावेश हुआ ।

स्त्री समता की घोषणा करके स्त्रियों को भी धर्मसंस्कार का अधिकार देकर अनुभव मंडप में स्थान देने से 60 शरण स्त्रियों का वहाँ समावेश हुआ। उनमें से 30 शरण स्त्रियाँ वचन साहित्य के निर्माण में सक्षम हुई। इस तरह अनुभव मंडप संसार के प्रथम लोकसभा के रूप में अस्तित्व में आया। श्री गुरुबसवेश्वर उसके मूलाधार एवं आत्म स्वरूप की भाँति प्रकाशित हुए | शिवस्वरूप अल्लमप्रभु, प्राणस्वरूप सिद्धरामेश्वर, हृदय स्वरूप चन्नबसवण्णा, बाहुस्वरूप माचिदेव - मोळिगे मारय्या, नासिका स्वरूप अक्कमहादेवी - इस प्रकार अनुभव मंडप - देह के विविध अंग की भांति सुशोभित हुए। उन सब का निवासास्थान "महामने उन्हीं के हृदय जैसा विशाल था। जो भी आये वहाँ उनको आश्रय देने की उदारता के कारण वह "दासोह" का केन्द्र बना था । "अन्नदासोह" के साथ ही "ज्ञानदासोह" का अनुभव भी मंडप में होता था। “अनुभव मंडप” नाम क्यों रखा ? ऐसी आलोचना करने से कई है । " विचार स्पष्टता से दृष्टिगत होते हैं। 'भगवान पर विश्वास ही बसव तत्व का मूलाधार इस विश्वास की नींव पर ही शेष सब सिद्धांत निरूपित हुए हैं। वह भगवान वचन, मन से परे होता हैं, प्रत्यक्ष अनुमान, आगम, प्रमाणों से परे होकर केवल हृदयंगम है। भगवान के साक्षात्कार के लिए एकमात्र सूत्र है दिव्यानुभव। इसलिए धर्म के मूल अनुभव की नींव पर ही "मंडप' का निर्माण होना चाहिए। यही श्रीगुरु बसवेश्वर की अपेक्षा थी ।

सन्दर्भ: विश्वगुरु बसवन्ना: भगवान बसवेष्वर के जीवन कथा. लेखिका: डा. पुज्या महा जगद्गुरु माता महादेवी। हिंदी अनुवाद: सी. सदाशिवैया, प्रकाशक: विश्वकल्याण मिशन बेंगलुरु,कर्नाटक. 1980.

[1] Number indicates at the end of each Vachana is from the book "Vachana", ISBN:978-93-81457-03-0, Edited in Kannada by Dr. M. M. Kalaburgi, Hindi translation: Dr. T.G. Prabhashankar 'Premi'. Pub: Basava Samiti Bangalore-2012.

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