महात्मा बसवेश्वर के बारे में उत्कीर्ण लेख संबंधी प्रमाण(अभिलेख प्रमाण) | बसव : बचपन में मिली शिक्षा |
2. (बसव ) बसवेश्वर का जन्म |
आज के विजयपुर (बिजापुर) जिले का बागेवाडी ग्राम पंडितोत्तमों से सुशोभित नगर रहा। इसका इंगलेश्वर बागेवाडी नाम भी था। बागेवाडी का प्रमुख भाग अग्रहार के पुरप्रमुख मादिराजा का घर भी यहीं था -
भूलोक में कीर्तिवान
विप्रकुल की संतति में उत्पन्न
शिवपुराणागम समूह से शोभित्
शिवशास्त्र घोष संगीत में निष्णात् ।
बागेवाडी अग्रहार में सम्मानित
कम्मे वंश में अग्रेश्वर नाम से गौरवान्वित
मादिराज विप्र है सुविख्यात् ।
उसकी मादाम्बा सती है
है अप्रतिम गुणवती ।
धर्म शास्त्र, पठन, पारायणों की झंकार से स्पंदित अग्रहार में सत्कुल संपन्न धर्मपत्नी मादलाम्बिका के साथ मादरस रहते थे। वे कम्मेकुल, शैव ब्राह्मण परिवार के थे ।
कीर्ति, संपत्ति, विद्या, कला आदि सब कुछ के रहते हुए भी इन दंपतियों को संतान भाग्य न था । नागलाम्बिका जैसी पुत्री के रहते हुए भी वंश पारंपरा - पौरोहित वृत्ति को चलानेवाला पुत्र न था । इस तरह का दुःख मादरस का रहा तो मादलाम्बिका की व्यथा दूसरी ही थी । प्रतिदिन पुराणश्रवण में तत्पर इन्हें चिंता थी कि मृत्यु के अवसर पर तर्पण देनेवाला पुत्र न हो तो स्वर्ग प्राप्त न होगा। मृत्यु के बाद जब स्वर्ग पहुँचते हैं तब पुत्र हीन होने के कारण बाहर ढकेलेजाने के पुराण प्रसंगों, लोगों की चुबनेवाली कटूक्तियाँ आदि इनकी पीडा को बढाती रही।
बागेवाडी के नगर देवता नंदिकेश्वर मंदिर में रोज आने-जाने के अभ्यास के कारण मादलाम्बिका ने एक दिन “नंदी पुराण" सुनते समय नंदीव्रत करने से संतान प्राप्त होने का विचार सुनते ही मन में संकल्प कि उस दिन से उन्होंने दृढता से व्रत का आरंभ किया। व्रत पूर्ण होने के दिन नंदिकेश्वर के दर्शन के लिए जब वे मंदिर गयीं तब मूर्ति के ऊपर से एक फूल प्रसाद रूप में गिर पड़ा। पूजारीने उसे भक्ति, संभ्रम से लाकर दिया और कहा कि "आप के संकल्प की सिद्धि होगी; आपको नंदी का प्रसाद प्राप्त हुआ है।" इन बातों से उनको असीम संतोष हुआ।
उसी दिन उन्हें एक स्वप्न हुआ। सुन्दर रजत गिरि, मंगलरूपी महादेवने अपने प्रिय शिष्य नंदिनाथ को लोक कल्याण हेतु अवतार करने की आज्ञा दी और उसी समय शुभ्र धवल रंग का सुन्दर नंदि संतोष से पृथ्वी पर अवतरित हुए। अवतरित होने के लिए दिव्य प्रकाश का रूप धारण कर मादलाम्बिका की देह में प्रविष्ट हुए । मादलाम्बिकाने आनंद और आश्चर्य से भरकर अपने स्वप्न का समाचार मादरस को सुनाया। उन्होंने भी संतोष से भगवान की पूजा की। स्वप्न का समाचार शहर भर में गूँजने लगा ।
उष:काल की पीठ पकड़कर किशोर सूर्य के उदित होने के सदृश इस स्वप्न के बाद मादलाम्बिका के गर्भवती होने का समाचार फैल गया। घर में शहर में धूमधाम का समारंभ होने लगा । माता की आशा है कि वंश बढानेवाला पुत्र आनेवाला है। अग्रहार के मुखिया की वृत्ति को संभालनेवाले पुत्र के आने के संतोष में पिता हैं तो संसार में प्रकाश फैलनेवाला क्रांतिपुरुष के आने का आनंद स्वयं परमात्मा को है।
मादलाम्बिका के व्यवहार में केवल शारीरिक परिवर्तन ही नहीं स्वभाव में भी परिवर्तन होने लगा। अंतर्मुखी होने के अलावा सदा जप, तप पारायण में वे लग गयीं। नौ महीने के पूर्ण होते ही आनंद नाम संवत्सर के [1] वैशारवमास के अक्षय तृतीया के दिन रोहिणी नक्षत्र में (३० ऎप्रिल् ११३४) पुत्र का जन्म हुआ। युगपुरुष बसवण्णा से संवत्सर का प्रारंभ होने से बसव शतक को उस दिन से लोग परिगृहीत किये हुए हैं।
सन्दर्भ: विश्वगुरु बसवन्ना: भगवान बसवेष्वर के जीवन कथा. लेखिका: डा. पुज्या महा जगद्गुरु माता महादेवी। हिंदी अनुवाद: सी. सदाशिवैया, प्रकाशक: विश्वकल्याण मिशन बेंगलुरु,कर्नाटक. 1980.
[1] "कालज्ञान वचनों" के आधार पर यह निश्चय किया गया है। आनंद नाम संवत्सर ईसवीं 1134 को पडता है।
*महात्मा बसवेश्वर के बारे में उत्कीर्ण लेख संबंधी प्रमाण(अभिलेख प्रमाण) | बसव : बचपन में मिली शिक्षा |