विवाह का प्रस्ताव
बलदेवरस के ह्रत्कमल में रातभर बसव के स्मरण की झंकार होती रही । उससे उद्गार निकलता कि वह कैसा प्रतिभावान है। बलदेवरस प्रात: काल ही उठकर स्नान करके, शुद्ध कपडों को पहनकर गुरु दर्शनार्थ आते ही यह प्रथम पूछा गया
"तेजस्वी, प्रतिभावान वह युवक स्नातक मेरी बहन...." कहने के पहले ही जातवेद मुनि ने मुसकुराते हुए कहा । "हाँ, आप की बहन मादलांबिका का पुत्र.. बलदेव की कल्पना के सत्य होने से उनके आनंद की सीमा ही न रही। ओह, वही ? मेरी बहन का पुत्र । हमने गलत समझा था कि “वह उद्दंडता से माता-पिता की बातों को ठुकराकर चला गया बालक" कैसी अद्भुत शिवलीला।
"वह उद्दंड नहीं, बलदेवरसजी ! धीरज हृदय का क्रांतिपुरुष । भगवद्नुग्रह का साकार रूप ! अपनी विवेचना शक्ति की कसौटी पर खरा दिखाई नहीं पडता तब उसे निडता से विरोधकरनेवाला - विचारवादी ...."
कैसा प्रतिभावान मेरा भाजा । गुरुदेव मेरा एक छोटा सा निवेदन है । मैंने अपनी पुत्री नीलगंगा को अपनी आँखों की तरह हिफाजत से पाला है । उसका विवाह बसवरस के साथ करके अपनी अपार संपत्ति का मालिक बनाने की इच्छा उत्पन्न हुई है। आप कृपया स्वीकृति देकर आशीर्वाद दीजिए।” गुरु जातवेद मुनि गंभीर हो गये । बलदेवरस भय से बोले कि " यदि मेरी आकांक्षा असाधु हो तो क्षमा कीजिए।"
"ऐसी बात तो नहीं, अमात्यजी । बसवेश्वर अत्यंत अंतर्मुखी स्वभाव का है। वह स्वप्न में भी सांसारिक जीवन में प्रवेश करने की बात नहीं सोची है। उसने कई आर्शों को अपने मस्तिष्क हृदय में धर लिया है। विवाह का प्रस्ताव ऐसे व्यक्ति के सामने कैसे करें ?"
वह बहुत ही विनयशील है। वह आप की बातों को कभी नहीं टाल सकता । आप बावचीत कीजिए....." जातवेद मुनि ने अपने में कुछ सोचकर कुछ निर्णय लेकर बसवेश्वर को बुलावा भेजा।"
बसवेश्वर जन-समूह से अलग होकर कृष्णा मलापहारी नदियों के संगम में एक टीले पर बैठकर ध्यानमग्न होकर विस्मृत हो गये थे । उनको आने के लिए जब गुरु का बुलावा आया तब वे जागृत होकर बहिर्मुख हुए। शीघ्रता से आकर गुरु को नमस्कार किया और बलदेवरस को वहीं देखकर वन्दना की ।
"बसवरसजी, आप बहुत ही प्रतिभावान, बुद्धिवान है ये सब आप की कृपा मात्र है
कल आप की बातें अत्यंत प्रभावकारी थी, व्याख्यान अविरत होकर हृदयंगम था।
"मगर अमात्यवर, सुन्दर कथन में कहना आसान है। जैसे बोलते हैं वैसे समाज की रचना करना कठिन है। वैचारिक समाज की रचना का उद्देश्य जो लोग सुनकर खुश होते हैं: वे ही लोग उसे कार्यान्वित करने में तैयार नहीं होते। " मेरे स्वप्न को न जाने सफल होने का दिन कब आयेगा ? बसवने खिन्न होकर उत्तर दिया ।
तत्वज्ञान, समाज रचना के विचारों के सिलसिले को बदलते हुए गुरुजी बोले-
" बसवरस, बलदेवरस केवल चालुक्य राज्य के मंडलेश्वर बिज्जल के प्रधानामात्य ही नहीं बल्कि तुम्हारी माता के सगे भाई भी हैं, तुम्हारे मामा भी हैं "
" क्षमा कीजिए, गुरुजी ! प्रधानामात्य बलदेवरस की सिर झुकाकर वन्दना करूंगा। इससे ज्यादा खून के रिश्ते का प्रस्ताव मत कीजिए। भगवान की शरण में आने के बाद गुरु ही मेरे माता-पिता हैं। गुरु बन्धु ही सच्चे भाई हैं, सम्बन्ध, भक्ति, स्वर्ग, नरक.... "
गुरुने एकांत में विवाह के विषय का प्रस्ताव किया तो बसवेश्वर ने भयभीत होकर कहा कि ऐस क्यों गुरुजी ? क्या मैंने कोई अपनाध किया है ? अपने यहाँ से दूर भेजने का कठोर दंड क्यों ?
बसवण्णा, तुम्हारे जैसे शिष्य को बाहर भेजने का मन मुझ में नहीं है। नीलगंगा से विवाह करके बलदेवरस जैसे उन्नत ओहदे पर रहनेवालों की सहायता से तुम उन्नत- स्थान प्राप्त करो...।"
"मुझे किसी तरह का स्थान नहीं चाहिए। ब्रह्म, विष्णु, रुद्र का पद नहीं चाहिए। केवल आप जैसे ज्ञानियों की सेवा ही बस
मेरी वैयक्तिक सेवा करनेवाले बहुत से हैं। समाज, धर्म के लिए परिश्रम करनेवाले हैं ही नहीं। अपने लिए नहीं तो, लोक कल्याण के लिए उन्नत स्थान पर तुम्हें जाना है।''बसवेश्वर आश्चर्य से मौन हो गये। दीदी से पूछने पर उन्होंने भी विवाह के विचार को ही प्रोत्साहित किया। जब अपने विचारों में स्वयं अकेले हो गये तब उनके हृदय में दुख उमड़ने लगा । संगमेश्वर मंदिर में जाकर अपने दुख का निवेदन किया। उन्होंने यह जानने के लिए प्रयत्न किया कि भगवान का संकल्प क्या है ?
प्रात:काल के पहले ही कुटी से बाहर जाकर सूर्योदय के पूर्व ही स्नान करके नदी के किनारे पर ध्यान मग्न बैठे। बहिर्मुख होते ही संकोच के साथ खङी युवती को सामने देखकर बसवण्णाने पूछा।
"आप कौन है ? उसने उत्तर दिया कि आप जिसके हाथ पकड़ने से में पीछे हट रहे हैं ऐसी दुर्गाभ्य स्त्री नीलगंगा है।
यह अच्छा हुआ कि आपने इस विषय का प्रस्ताव किया। मैंने कई कई आदर्शों के स्वप्नों को संजोया है। तुम तो सहज लौकिक सुखापेक्षा से वैवाहिक जीवन को अपनाने की इच्छा रखती हो। मुझ जैसे आदर्शवादी का हाथ पकडकर किसी तरह का सुख प्राप्त नहीं कर सकती। इसलिए तुम खुद विवाह को ठुकरा दो तो दोनों समस्याएँ हल होंगीं ।
मैं वचन देती हूँ कि आप के आदर्श के साधनों में किसी प्रकार की रुकावटें नहीं डालूंगी। मैं आप को केवल पति न मानकर मार्गदर्शन करनेवाले जीवन ज्योति सदृश मानती हूँ । सुख-दुख, मानापमान, संतोष-पीडा इन सब में अविरत आपका अनुसरण करूँगी। आप महान ज्योति बनकर प्रज्वलित होंगे तो मैं उसके तेल की बात्ती बनकर अपने जीवन को समर्पित करती हूँ। बसवेश्वर में आश्चर्य का प्रवाह उमड़ उठा। मौन होकर कदम बढाकर मंदिर की ओर चल दिए ।
सन्दर्भ: विश्वगुरु बसवन्ना: भगवान बसवेष्वर के जीवन कथा. लेखिका: डा. पुज्या महा जगद्गुरु माता महादेवी। हिंदी अनुवाद: सी. सदाशिवैया, प्रकाशक: विश्वकल्याण मिशन बेंगलुरु,कर्नाटक. 1980.
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