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14. मंगलवेढे में आगमन

मंगलवेढे में आगमन

जातवेद मुनि के आशीर्वाद के साथ मित्रों से हृदयस्पर्शी बिदाई लेकर अपने गुरुकुल से बसवेश्वर निकलते हैं। ज्ञानार्जन से अपने जीवन का निर्माण कर लिया था। जैसे तितली उड़ने के पहले पदातिजातक कोशावस्था में रहती है वैसे ही बसवेश्वर भी गुरुकुल में आने के पहले विचारों के बवंडर को मस्तिक में भर कर आये थे। अब वह समाज की पुनर्रचना, संगठन के सम्बन्ध में स्पष्ट कल्पना प्राप्त कर चुके हैं।

कुलपति जातवेद मुनि अपने प्रिय शिष्य बसवेश्वर को संबोधित करके कहते हैं. बसवेश्वर, तुम साधारण नहीं हो। समाज के लोप- दोष बुरे होते हुए भी प्रचीन का विरोध और नवीनता संस्थापित करने की शक्ति हम में नहीं है। तुम अंधविश्वास का अनुकरण करनेवाले नहीं हो । सत्य के आराधक एवं प्रतिष्ठापक हो । तुम धीरजवाले हो क्योंकि बाल्यावस्था में ही तुमने अन्याय का विरोध किया । संगमनाथ का संपूर्ण अनुग्रह तुम पर है। मैं तुम से क्रांति का निरीक्षण करता हूँ। जाओ, यश को प्राप्त करो । मानव कुल के महावृक्ष में लगे अपूर्व फल हो तुम। अत्यंत वात्सल्य भाव से बसव का सिर सहलाकर उन्हें मंगलवेढ [2]के लिए बिदा किया ।

बसवेश्वर अपनी बहन अक्कनागलांबिका के साथ चलने को तैयार हो गये। अक्कनागलांगिका का पति शिवस्वामी को अपने घर के कामकाज के कारण अपने गाँव ब्रह्मपुरी में ही ठहरना पडा जो कूडलसंगम के समीप ही था । बलदेवरस के होनेवाले दामाद को देखकर ऐसा कोई न रहा जो चकित न हुआ हो। विलक्षण तेज, सात्विकता, ज्ञान के मुखछाप से सुशोभित बसवेश्वर को देखकर बलदेवरस के भाग्य का सराहना किया । प्रधानी बलदेवरस उनके सचिव मंडल के सहायोगी नगर के प्रमुखों ने जुलूस केद्वारा उनका स्वागत किया। जैसे बालसूर्य ने अंधकारयुक्त प्रदेश में प्रवेश किया वैसे ही बलदेवरस ने मंगलवेड़ नगर में प्रवेश किया ।

आज कल कहकर मत टालो ।
आज का ही पावन दिन है- ‘शिवशरण' कहनेवाले को,
आज का ही पावन दिन है- ‘हर शरण' कहनेवाले को,
आज का ही पावन दिन है अपने कूडलसंगमदेव को
निरंतर स्मरण करनेवाले को । / 8[1]

सन्दर्भ: विश्वगुरु बसवन्ना: भगवान बसवेष्वर के जीवन कथा. लेखिका: डा. पुज्या महा जगद्गुरु माता महादेवी। हिंदी अनुवाद: सी. सदाशिवैया, प्रकाशक: विश्वकल्याण मिशन बेंगलुरु,कर्नाटक. 1980.

[1] Number indicates at the end of each Vachana is from the book "Vachana", ISBN:978-93-81457-03-0, Edited in Kannada by Dr. M. M. Kalaburgi, Hindi translation: Dr. T.G. Prabhashankar 'Premi'. Pub: Basava Samiti Bangalore-2012.
[2] कूडलसंगम को छोडकर बसवेश्वर का आगमन मंगलवेड़ में श्रीमुख संवत्सर 1153 में हुआ। आगे जब बिज्जल 1155 में कल्याण के लिए निकल पड़े तब बलदेवरस और बसवेश्वर भी 1160 में कल्याण के लिए रवाना हुए। सह सामान्य लोगोको अनावश्यक समझकर उसको मैंने विस्तार से विचार नहीं किया है।

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