पूर्ण नाम: |
उप्परगुडिय सोमिदेवय्या |
वचनांकित : |
गारुडेश्वर लिंग |
आप स्वयं देव होने के बाद
पूजा करने वालों के पास बार बार बहाना बनाकर आते ही क्यों हो?
आप परम निर्वाण में स्थित होने के बाद
बात करने वालों में मिलने वालों
उमंग से भला बोलने वालों के साथ
द्वार, अंगन, घरों में
आओ जाओ कहलाना क्यों?
वे जहाँ दिखते हैं वही देखकर
संतोष से रहते देखते हुए,
वही पर परमानंद में रहनेवाले सुखी महात्मा को
यहाँ, वहाँ ऐसे भाव का भ्रम नहीं
गारुडेश्वरलिंग को जाननेवाले शरण को। / १५३० (1530) [1]
उप्परगुडिय सोमिदेवय्या (११६०) ’गारुडेश्वर लिंग’ वचनांकित से इनके ११ वचन उपलब्ध हैं। काया-आत्मा संबंध, प्रसाद का महत्व, क्रिया-ज्ञान सामरस्य आदि विषय उनमें अभिव्यक्त हैं।
सांप में विष हो तो
सर्वांग में विष होता है क्या?
विषयुक्त जगह एक ही है न?
धरति में निधि हो तो
यहाँ, वहाँ सारी जगहों में निधि छिपी रहेगी क्या?
शरणकुल में परवस्तु परिपूर्ण हो तो
दर्शन पाखंडियो में परवस्तु परिपूर्ण रहती है क्या?
सत्यसन्मुक्तों और परम विरक्तों को छोडकर परवस्तु कहाँ रहेगी?
धरती में छिपी निधि की जगह पहचान कर खोदना
विषपूर्ण मूँह को दबाकर बंध करना
समीप रहती परवस्तु का स्थान जानकर पूजा करना
ऐसी इच्छा को, इच्चा के समूह को त्रिविधमल सताते हैं।
प्रसिद्ध किर्ती और लाभ लौकिक में फँसने वाले को इष्ट है
ज्ञान पानेवाले को वर्णनातीत संग सुख परवस्तु से मिलती है
ज्ञान विवेक जिसमें होता है वहाँ संपूर्ण ऐक्याता होती है
लोक में ज्ञान पूर्णता से जो आनंद मिलता है
गारुडेश्वरलिंग में उभयभाव रहित की ऐक्यता होती है। / १५३१ (1531) [1]
References
[1] Vachana number in the book "VACHANA" (Edited in Kannada Dr. M. M. Kalaburgi), Hindi Version Translation by: Dr. T. G. Prabhashankar 'Premi' ISBN: 978-93-81457-03-0, 2012, Pub: Basava Samithi, Basava Bhavana Benguluru 560001.
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