पूर्ण नाम: |
गोग्गव्वे
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वचनांकित : |
नास्थिनाथ
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कायक (काम): |
धूप डालने का कायक
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पुरुष चाहकर स्त्री को अपनायेगा
तो उस स्त्री को एक की संपत्ति समझनी चाहिए।
स्त्री चाहकर पुरुष को अपनायेगी
तो इस प्रश्न का उत्तर क्या समझे?
यदि इन दोनों रूपों को मिटाकर सुखी हो सकता है।
तो मैं उस नास्तिनाथ को परिपूर्ण कहूँगी। / 1311 [1]
गोग्गव्वे केरल के अबलूर नामक जगह से आयी थीं। ये धूप डालने का कायक करती थीं। इसलिए धूप की गोग्गव्वे' नाम से प्रसिद्ध थीं। शिव से मोहित गोग्गव्वे लौकिक विवाह का तिरस्कार कर विरागिणी बनकर कल्याण आती हैं। 'नास्थिनाथ' अंकित के इनके छ: वचन उपलब्ध हैं। उनमें लिंगांग सामरस्य स्त्री-पुरुष समानता के चिंतन के लिए आद्यता दी गयी है। सरल भाषा और वृत्तिपरक परिभाषा के उपयोग से वचन विशेष रूप से आकर्षित करते हैं।
स्तन उभरने से स्त्री कहलाती है।
मूँछ निकलने से पुरुष कहलाता है।
इस उभय का ज्ञान
स्त्री है या पुरुष, बताओ हे नास्तिनाथ? / 1312 [1]
References
[1] Vachana number in the book "VACHANA" (Edited in Kannada Dr. M. M. Kalaburgi), Hindi Version Translation by: Dr. T. G. Prabhashankar 'Premi' ISBN: 978-93-81457-03-0, 2012, Pub: Basava Samithi, Basava Bhavana Benguluru 560001.
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