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जंगमलिंग प्रभु (1700)

पूर्ण नाम: जंगमलिंग प्रभु

धरती की सारी शिलाएँ यदि इष्टलिंग बन जायँ तो, गुरु का ऋण क्यों ?
जल, नदी सब तीर्थ बन जायें तो, इष्टलिंग का ऋण क्यों ?
निकली फसल सब, प्रसाद हो जाये जंगमदेव का ऋण क्यों ?
इस तरह, त्रिविध का ऋण मुक्त हुआ।
देखो जंगमलिंग प्रभु! | 2222 [1]

हरहर कहते हुए स्मरण करे तो, जन्म-मरण क्या दूर हो जायेंगे ?
वैसे तो, लोगों की बात नहीं सुननी चाहिए।
वह ऐसा है कि,
ज्योति का स्मरण करने से, क्या अँधेरा दूर हो जायेगा?
पंचामृत का स्मरण करने से, क्या भूख-प्यास मिट जायेगी ?
आगम शास्त्रों को देखने से, कानों से सुनने से, गाने से,
हे देव! तुम्हारे दर्शन पाने जैसे हुआ, इस तरह
जो भी हो उसे प्रमाणितकर, बोलना चाहिए, न कि,
न देखी बात बोलना तो, बाजार के समान हो गया
देखो, जंगमलिंग प्रभु! (2222) [1]

उपरोक्त वचनांकित के 10 वचन मिले हैं। कृतिकार अज्ञात है। वचन अधिकतर तात्विक हैं। दो वचन उलटबासी की परिभाषा में होकर वे शिवपारम्य को प्रतिपादित करते हैं।

References

[1] Vachana number in the book "VACHANA" (Edited in Kannada Dr. M. M. Kalaburgi), Hindi Version Translation by: Dr. T. G. Prabhashankar 'Premi' ISBN: 978-93-81457-03-0, 2012, Pub: Basava Samithi, Basava Bhavana Benguluru 560001.

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