पूर्ण नाम: |
बळ्ळेश मल्लय्या (1160) |
कायक: |
व्यापार |
वचनांकित : |
'बळ्ळेश्वर' |
अपार महिमा ही आपकी ढ़ोल है
माँगी वस्तु देनेवाला ही आपका ढींढोरा है
जगवंदित लोक स्वामि ही आपका शंख है
अन्य दैव का निराकरण ही अपका डमरु है
शिव न सतायेगा कहनेवालों के मुँह को त्रिशूल से भोंकेगा
बळ्ळेश्वर लिंग का ढींढोरा तीनों लोको में समाहीत है। /१८४४
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बळ्ळेश मल्लय्या (1160) ये मूलतः जैन बनियामल्लशेट्टी थे और शरणधर्म स्वीकारने के बाद मल्लय्या बने। धान को मापनेवाले पात्र (बळ्ळ) को ही लिंगस्वरूप में पूजाकर बळ्ळेश मल्लय्या कहलाये। व्यापार वृति के ये शरणों की अनुभाव गोष्ठी में भाग लेकर स्वयं भी अनुभावी होकर वचन रच बैठे। 'बळ्ळेश्वर' अंकित में रचे इनके 9 वचन मिले हैं और वे सभी वचन उलटबासीपरक है।
References
[1] Vachana number in the book "VACHANA" (Edited in Kannada Dr. M. M. Kalaburgi), Hindi Version Translation by: Dr. T. G. Prabhashankar 'Premi' ISBN: 978-93-81457-03-0, 2012, Pub: Basava Samithi, Basava Bhavana Benguluru 560001.
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