पूर्ण नाम: |
हेमगल्ल हंप
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वचनांकित : |
परमगुरु पडुविडि सिद्ध मल्लिनाथ प्रभु
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अन्न की चिंता न होने वाले को ।
खेतीबारी की चिंता है क्या?
खेचर पवन साधक को
भूमि पर पाँव रखने की चाह है क्या ?
वज्र कवच पहने हुए को
बाण का भय रहेगा क्या?
निर्मायक को माया का ऋण है क्या?
निर्व्यसनी को व्यसन का ऋण है क्या?
परमगुरु पडुविडि मल्लिनाथ में ऐक्य होने वाले को
दूसरे देव का ऋण है क्या ? / 2489 [1]
शायद हंपे क्षेत्र के होंगे, परंतु इनका जन्मस्थान हेमगल है। लिंगायत संप्रदाय के पडुविडि' शाखा के थे। राजेश्वर इनके गुरु थे। और 'सिद्ध मल्लिनाथ' वचनांकित में रचते थे।
हेमगल्ल षट्स्थल' इनकी कृति का नाम है। शायद यह षट्स्थल वचनों का संकलन होगा। इसमें 23 स्थल हैं। परंतु अब प्राप्त कृति भक्तिस्थल तक सीमित है। कुल 282 वचन, 21 स्वरवचन, 1 रगळे, 7 कंद पद्य समाविष्ट है। षट्स्थल प्रतिपादन ही इसका प्रमुख लक्ष्य है।
छेनी और आरे से न कटने वाला लट्ठा
कुल्हाड़ी और हसिये से कटेगा क्या?
पुरातनों के वचनामृत रूपी छेनी से
बढ़ई के छीलने से न लज्जित होने वाला मन
वेदागम रूपी कुल्हाड़ी हसिये से कटेगा क्या? नहीं कटेगा।
लट्टे जैसा मन, चंचल मन, बिगड़ा मन,
बंधन में पड़ा मन, क्रोधित मन, सर्वचांडाल मन के
दुर्भावों के जाल में फंसकर कष्ट में पड़कर तड़प रहा था
निर्भग, निर्लेप, निज गुरु निश्चिंत स्वयंभू
परमगुरु पडुविडि सिद्ध मल्लिनाथ प्रभु। / 2490[1]
चलने की शक्ति न रखने वाले लँगड़े को अंधी पत्नी मिलेगी तो
उनके जीवन की रीति रहेगी कैसे?
बात न करनेवाले गैंगे को राजा का पद मिलेगा तो
प्रजा परिवार राज्य चला सकेगा क्या?
अज्ञान गुणों की माया मिटे बिना सुज्ञान संसार मिलता है क्या?
जीवन बुद्धिगुण होकर भी परमात्मा के ज्ञान की तरफ ध्यान न देने से
मानव स्थिर चित्तवाला कैसे होगा?
संसार रूपी माया ही प्राण होने वालों को नि:संसार की
प्राप्ति कैसे होगी?
परमगुरु पडुविडि सिद्ध मल्लिनाथ प्रभु। / 2494[1]
कीचड़ में पड़े पशु जैसे, किरात के हाथ के हरिण जैसे ।
गरुड़ के सामने के साँप जैसे
दीप के आगे के पतंग जैसे, पापी के हाथ में शिशु जैसे
ये सारी वस्तुएँ शाश्वत न होने जैसे
मायारूपी राक्षसी के जाल में फंसकर संकट में पड़ा था।
आपके लिए पराया होने के कारण यह कष्ट है मुझे
हे परमगुरु पडुविडि सिद्ध मल्लिनाथ प्रभु। / 2495 [1]
कीचड़ में गिरे पशु की तरह
संसार रूपी गंदे कीचड़ में रहने वाली
गाय का स्वामी गाय को ढूंढते हुए बड़े श्रम से गाय को निकालने जैसा
नर पशु को अपना समझते हुए कीचड़ से निकालकर
करुणाजलरूपी जलधारा से नहलाकर आशीर्वाद देकर
कृपा से रक्षा करो स्वामी ।
परमगुरु पडुविडि सिद्ध मल्लिनाथ प्रभु। / 2496 [1]
References
[1] Vachana number in the book "VACHANA" (Edited in Kannada Dr. M. M. Kalaburgi), Hindi Version Translation by: Dr. T. G. Prabhashankar 'Premi' ISBN: 978-93-81457-03-0, 2012, Pub: Basava Samithi, Basava Bhavana Benguluru 560001.
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