पूर्ण नाम: |
अवसरद रेकण्णा |
वचनांकित : |
सद्ययोजात लिंग |
नीम के पेड़ के तले बैठ,
गूढ खाने से वह कडुआ होगा क्या?
अंधे के अमृत के स्वाद लेने से वह खट्टा होगा क्या?
पंगु कहे यदि यात्रा के लिए रास्ता नहीं,
तो कोई उसे दंड़ित करते है क्या?
इसप्रकार की क्रिया श्रद्धा सद्धोजात लिंग के प्रति, सेवाभाव है। / १४६७
(1467) [1]
अवसरद रेकण्णा (११६०) ’सद्ययोजात लिंग’ वचनांकित में रचे १०५ वचन इनके प्राप्त हैं। तत्व-अनुभाव और उलठबासी इन तीनों का सुंदर मेल इन वचनों में हुआ है।
पेढ चढे बिना फल तोड सकते हैं क्या?
फूल के बिना गंध से बाल सजा सकते हैं क्या?
दृष्टि के बिना निज स्थिति को देख सकते हैं क्या?
क्रिया श्रद्धा के बिना त्रिविधकर्तृ होना स्वयं को संभव है क्या?
इसी कारण से गुरु में सद्भाव, लिंग में मूर्तिध्यान,
जंगमस्थल में त्रिविध मल से दूर रहना चाहिए।
यह सद्भक्त का अंग ही चिद्घन वस्तु का संग है,
सधोजात लिंग के लिए सुसंग है। / १४६८ (1468) [1]
References
[1] Vachana number in the book "VACHANA" (Edited in Kannada Dr. M. M. Kalaburgi), Hindi Version Translation by: Dr. T. G. Prabhashankar 'Premi' ISBN: 978-93-81457-03-0, 2012, Pub: Basava Samithi, Basava Bhavana Benguluru 560001.
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