निजमुक्ति रामेश्वर (लगभग 1650ईमें)
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पूर्ण नाम: |
निजमुक्ति रामेश्वर |
तन विकार से, क्षति होते हुए,
मन विकार से, तड़पकर, जलकर, नष्ट होकर,
यौवन के दिन बिताकर,
देह शिथिल होकर भी,
सिर मुंडवाने के बाद भी,
सुवर्ण, स्त्री, मिट्टी के सामने न झुकना ही जीवन है।
विषयवासनाओं के आक्रमण में न फंसकर सामना करना ही जीवन है।
इसके बदले निराश होकर, पौरुषहीन होकर,
वृथा विनष्ट हुआ जीवन ।
जगत् में वह व्यर्थ जीवन है न! बोलो,
निजमुक्ति रामेश्वर! (2231) [1]
इस वचनांकित में एक वचन प्राप्त है। वैराग्यबोध इस वचन का आशय है।
References
[1] Vachana number in the book "VACHANA" (Edited in Kannada Dr. M. M. Kalaburgi), Hindi Version Translation by: Dr. T. G. Prabhashankar 'Premi' ISBN: 978-93-81457-03-0, 2012, Pub: Basava Samithi, Basava Bhavana Benguluru 560001.
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