पूर्ण नाम: |
अरिविन मारितंदे |
वचनांकित : |
सदाशिव मूर्तिलिंग |
पानी और मिट्टी मिलकर घाडा होने की तरह
चित्त और शक्ति मिलकर मेरे इष्टलिंग होकर स्थित हुए न।
चित्त के स्थिर होने आधार होकर
उस अधार की आड़ में
मैंने जो सकलेंद्रिय ढ़ोये उन्हें तैरने नाव बनाकर
भवसागर को पार करवाया न
भक्तिप्रिय सत्य करंड मूर्ति,
हे सदाशिव मूर्ति लिंग, मेरे अंग में बिना सूखे सदा रहो। / १४३२ (1432) [1]
दुधारू गाय को घास, अनाज खूब देने से
दूध के अधिक होने कि तरह
क्रिया शुद्ध होकर, मन वचन काय शुद्ध होने से ही
परवस्तु को पाने का संतोष और अनित्य के नाश से उदित प्रकाश
वही सदाशिवमूर्ति के संग संतोष की स्थिति है। / १४३९ (1439) [1]
अरिविन मारितंदे(१३००) ’सदाशिव मूर्तिलिंग’ वचनांकित में लिखे ३०९ वचन प्राप्त हुए हैं। जैसे नाम के पीछे ’अरिविन’ (ज्ञान का) विशेषण है वैसे ही इनके वचनों में ’ज्ञान’ के लिए अधिक महत्व दिया गया है। तत्व प्रधान इन वचनों में गुरु-लिंग, जंगम-दासोह, शैव-वीरशैव के बारे में कई बातें की चर्चा की गयी है। अधिकतर वचन उलठबासियों (बेडगिन) की परिभाषा में हैं।
पत्थर, पेड़, मिट्टि की आड़ में परवस्तु पूजित होती है क्या?
वे अपने मन का स्वरूप हुए बिना?
वहाँ जो स्थित है उसका ज्ञान स्वयं निजवस्तु के रूप में
प्रकाशित है सदाशिवमूर्ति लिंग में। / १४४१ (1441) [1]
References
[1] Vachana number in the book "VACHANA" (Edited in Kannada Dr. M. M. Kalaburgi), Hindi Version Translation by: Dr. T. G. Prabhashankar 'Premi' ISBN: 978-93-81457-03-0, 2012, Pub: Basava Samithi, Basava Bhavana Benguluru 560001.
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