गजेश मसणय्या की पत्नी मसणम्मा (1160)
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पूर्ण नाम: |
मसणम्मा
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वचनांकित : |
मसणय्या प्रिय गजेश्वर
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स्वर्ण का मोह त्यागकर लिंग का प्रेम पाने के लिए कहते हैं।
क्या स्वर्ण और लिंग में विरोध है?
स्त्री का मोह छोड़कर लिंग का प्रेम पाने के लिए कहते हैं।
क्या स्त्री और लिंग में विरोध है?
मिट्टी का मोह त्यागकर लिंग का प्रेम पाने के लिए कहते हैं।
क्या मिट्टी और लिंग में विरोध है?
अंग का मोह त्यागकर लिंग का प्रेम पाने के लिए कहते हैं।
क्या अंग और लिंग में विरोध है?
इंद्रियों का मोह त्यागकर लिंग का प्रेम पाने के लिए कहते हैं।
क्या इंद्रिय और लिंग में विरोध है?
इस जगत् का मोह त्यागकर लिंग का प्रेम पाने के लिए कहते हैं।
क्या जगत और लिंग में विरोध है?
इसलिए परंज्योति परम करुणाशील
परम शांत रूपी लिंग को
क्रोध, रूठना छोड़ सके तो देख सकते हैं।
वरना न देख सकते।
ज्ञान से ही सच्चा सुख प्राप्त होता है।
मसणय्यप्रिय गजेश्वर। / 1309 [1]
ये मसणय्या की पत्नी हैं मसणम्मा | पति का गाँव अक्कलकोट तालूक कर्जगी है। बसवण्णा का यशोगान सुनकर पति-पत्नी कल्याण आते हैं। मसणम्मा का वचनांकित है 'मसणय्या प्रिय गजेश्वर' । अब इनके दस वचन प्राप्त हैं। सृष्टि की उत्पत्ति, लिंग का स्वरूप, ज्ञान का महत्व, गुरु-लिंग-जंगम संबंध और शरणस्तुति आदि विषय विशेषस्थान पाते हैं। इसलिए व्रताचरण के लिए आद्य स्थान देनेवाली अन्य शरणियों से ये भिन्न हैं।
References
[1] Vachana number in the book "VACHANA" (Edited in Kannada Dr. M. M. Kalaburgi), Hindi Version Translation by: Dr. T. G. Prabhashankar 'Premi' ISBN: 978-93-81457-03-0, 2012, Pub: Basava Samithi, Basava Bhavana Benguluru 560001.
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