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वेदमूर्ति संगण्णा (1160)

पूर्ण नाम: वेदमूर्ति संगण्णा
वचनांकित : ललाम भीम संगमेश्वरलिंग

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सूर्योदय समय को जानकर, बाँग देने का ज्ञान
मुरगे को कैसे होता है?
मधुर रस का स्थान जानने का ज्ञान चींटी को कैसे होता है?
माँ भोजनकर शिशु को याद करने से ही
तृप्ति करने का ज्ञान कूर्म को कैसे होता है?
इस तरह जीवजाल सभी ज्ञान के अधीन हैं।
समझकर चलो तो, वेद वेद्य है,
समझकर चलो तो, शास्त्र संबंधी है,
समझकर चलो तो, पुराण पुण्यवान है,
समझकर चलो तो, सकलागमभरित है,
इसप्रकार पंचाक्षर का मूल ही षडक्षरी का भेद है,
जगत् के लिए आधार स्वरूपी, एकमेवाद्वितीय को जानकर
सोऽहं कोऽहं को समझकर,
वही सत्य, ईश्वर का स्थान, यह प्रमाणित कर,
वचनानुसार चलने वाला ही वेद वेद्य है, देखो,
ललामभीमसंगमेश्वर लिंग ही स्वयं बन गया शरण।। / 2028 [1]

वेदमूर्ति संगण्णा वेदागम पंड़ित थे। इन्होंने ‘ललाम भीम संगमेश्वरलिंग' वचनांकित से 10 वचन रचे हैं। इनमें यज्ञ-यागादि की आलोचना करते हुए ज्ञान साधना की रीति को बताया है। गद्य लक्षण से युक्त वचनों में कई संस्कृत उक्तियों का उपयोग किया है। ज्ञान केवल कुछ ही लोगों की बपौती नहीं, वह सभी की संपत्ति भी है। इस बात को वचनकार ने स्पष्ट कर दिया है।

References

[1] Vachana number in the book "VACHANA" (Edited in Kannada Dr. M. M. Kalaburgi), Hindi Version Translation by: Dr. T. G. Prabhashankar 'Premi' ISBN: 978-93-81457-03-0, 2012, Pub: Basava Samithi, Basava Bhavana Benguluru 560001.

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