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बाचि कायकद बसवण्णा

पूर्ण नाम: बसवण्णा
कायक: सुतार, बढ़ई
वचनांकित : 'बळ्ळेश्वर'

कुल गोत्र जाती सूतक से
नष्ट हुए करोड़-करोड़ लोग
जन्म सूतक से नष्ट हुए करोड़ों लोग
वाणि सूतक से धोखा खाये
मनु मुनि समूह आगणित करोड़ ।
आत्म सूतक से अहंकारि होकर नष्ट हुए
हरिहर ब्रह्मादि सभी लोग।
’यदृष्टं तन्नष्टं’ को न जानकर
चौदहों लोक संचितागामि होकर
बार-बार पैदा होते रहे हैं।
इस प्रकार इस सूतक लोक में
लगे रहते इन पाषंण्डी पागलों को
परब्रह्मा कैसे प्राप्त होगा?
इस कारण नामरूप क्रिया में पड़नेवाला नहीं
वह अगम्य अगोचर अप्रमाण है ।
बसवप्रिय विश्वकर्मट के कालिका विमल
राजेश्वर लिंग को छोड़ अन्य कीसि के लीए नहीं । /१८४६ [1]

बढ़ई वृत्ति के बसवण्णा ने बसवाप्रय विश्व्कर्मटक्के काळिकाविमल राजेश्वर लिंग' वचनांकित से वचनरचे हैं। प्राप्त वचन 30 हैं। वृति परिभाषा का उपयोगकर रचे वे वचन तत्व प्रधान हैं। कुछ वचन उलटबासीपरक हैं।

हिरे का घड़ा, सूई से छेद करवायेगा क्या?
महागज, अजकुल से गर्जन करवायेगा क्या?
निर्णय कर सैनिक, कायरों से डर जाएगा क्या?
इस निर्णय को समझकर सभि विषयादि रोग बाधाओं में
तथा अन्य तापत्रयों में लिंगांगि ध्यान देगा क्या?
इस तरह इन्हें देख हाथ कंगन को आरसि क्या?
भुक्त भोगी होकर फिर दूसरों से क्या पूछना?
इस प्रकार इन्हें समझकर बसवण्णप्रिय विश्वकर्मट के आगे
कालिकाविमल राजेश्वर लिंग जन्मरहित हो गया । /१८४८[1]

References

[1] Vachana number in the book "VACHANA" (Edited in Kannada Dr. M. M. Kalaburgi), Hindi Version Translation by: Dr. T. G. Prabhashankar 'Premi' ISBN: 978-93-81457-03-0, 2012, Pub: Basava Samithi, Basava Bhavana Benguluru 560001.

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