पूर्ण नाम: |
अमुगिदेवय्या |
वचनांकित : |
सिद्ध सोमनाथ |
कायक (व्यवसाय): |
जुलाहा वृत्ति |
शिव के सुमिरन मात्र से भव मिट जायेगा,
ऐसी अविचारियों की बात सुनी नहीं जाती
मत कहना रे,
ज्योती के सुमिरन मात्र से अंधकार मिटेगा क्या?
पसंद का खाना स्मरण करने मात्र से पेट भरेगा क्या?
रंभा के स्मरण मात्र से काम बाधाएँ दूर होंगी क्या?
स्मरण से नहीं होगा, निज पथ में धृढ़ता से ’आप’ ’स्वयं’ हुए बिना
सद्गुरु सिद्धसोमनाथ लिंग का स्मरण करना संभव नहीं है। / १४३०
(1430)[1]
अमुगिदेवय्या(११६०) अमुगिदेवय्या का जन्मस्थान सोलापुर है। जुलाहा वृत्ति के गृहस्थ थे। पत्नी का नाम वरदानि है। मगाराष्ट्र के पूरजे में इस पर एक शिलालेख प्राप्त हुआ है। एक शिलालेख में यादव सम्राट सिंप्पण से अमुगिदेव पूजित होने की बात है तो दूसरे शिलालेख में इनकी प्रशंसा में लिखि गयि है, ’महेश्वर गण, कुलान्वय दिवाकर, शरण संतान, सिद्धकुलार्णव प्रवर्धन सुधाकर’। काव्य और पुराणों में यह बात प्रसिद्ध है कि सोलापुर के कपिलसिद्ध मल्लिकार्जुन से अपने गृहोपकरण की गांठ को उठवाकर ले जाकर सिद्धराम को सबक सिखाया।
धूल का स्पर्श न लगे वायू की तरह
काजल न लगे आँख की पुतली की तरह
घी न लगे जीभ की तरह
मंगल कीड़ा न लगे मिट्टी की तरह, सिद्ध सोमनाथ
आपका शरण सारे सुखों से आनंदित होकर भी अलग रहेगा। / १४३१ (1431)[1]
’सिद्ध सोमनाथ’ वचनांकित में इनके ३० वचन उपलब्ध हुए हैं। उनमें इनकी इष्टलिंग निष्टा और शरणतत्व निरूपण आदि का परिचय मिलता है।
References
[1] Vachana number in the book "VACHANA" (Edited in Kannada Dr. M. M. Kalaburgi), Hindi Version Translation by: Dr. T. G. Prabhashankar 'Premi' ISBN: 978-93-81457-03-0, 2012, Pub: Basava Samithi, Basava Bhavana Benguluru 560001.
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