पूर्ण नाम: |
चेन्नबसव, चेन्नबसवण्णा
|
वचनांकित : |
कूडल चेन्न संगमदेव
|
कायक (काम): |
बसवकल्याण शून्य पीठ के द्वितीय अध्यक्ष
|
*
चंद्रमा के प्रकाश से चंद्रमा को
सूर्य के प्रकाश से सूर्य को
दीप के प्रकाश से दीप को देखने जैसे
अपने प्रकाश से अपने को ही देखने पर।
तुम्हारी भावना तुम ही हो।
सिम्मलिगे चेन्नराम। / 1683 [1]
अल्लमप्रभुदेव से 'अविरळज्ञानी', 'स्वयंभुज्ञानी' कहलाये चेन्नबसवण्णा जी शरण समूह में उम्र से सबसे छोटे होने पर भी ज्ञान में सबसे बड़े थे।
चेन्नबसवण्णा की माँ अक्क नागम्मा और पिता शिवस्वामी थे। आपका जन्म कूडलसंगम में हुआ। बसवण्णा चेन्नबसवण्णा के मामा थे। बसवण्णा के आंदोलन में सक्रिय भाग लिया। सिद्धरामय्या को आपने ही दीक्षा दी थी। अल्लम प्रभुदेव के बाद आप शून्य पीठ के अध्यक्ष बनते हैं। बसवण्णा जब राज बिज्जल से मतभेद होने से कूडलसंगम गये तब चेन्नबसवण्णा कुछ दिनों के लिए राजा बिज्जल के दण्डनायक थे। कल्याण क्रांति के बाद शरणों को लेकर उळवि तक आकर चेन्नबसवण्णा वहाँ लिंगैक्य हो जाते हैं।
बसवण्णा मर्त्यलोक में आये। अपना घर ‘महामने' बनाकर
उसमें भक्ति-ज्ञान रूपी ज्योति को प्रकाशित करने पर
सुज्ञान रूपी प्रभा का प्रसार हुआ जग में। प्रकाश में
प्रज्ञापूर्वक देखकर, सारे शिवगण आ मिले।
कूडलचेन्नसंगमदेव,
आपके शरण बसवण्णा की कृपा से, सभी शिवगण
प्रभुदेव के निज स्वरूप को देखकर निश्चिंत हुए। / 840 [1]
पाताल का पानी रस्सी के बिना निकाल सकते हैं क्या
सोपान के होते हुए भी
शब्द सोपान बनाकर चलाया पुरातन शरणों ने
यह देवलोक के लिए मार्ग है जानिए,
मर्त्यलोकवासियों के मन के मैल को मिटाने
वचनवाणी रूपी ज्योति को प्रकाशित कर दिया
कूडलचेन्नसंग के शरणों ने। / 833 [1]
बसवण्णा और अल्लमप्रभु के समान चेन्नबसवण्णा भी एक महत्वपूर्ण वचनकार हैं। इनका वचनांकित है 'कूडल चेन्न संगमदेव' । वचनों के अलावा स्वरवचन, 'मंत्रगोप्य', 'मिश्रार्पण', करणहसिगे' आदि लघु कृतियाँ भी रची हैं। आप शरण तत्व प्रतिपादकों में श्रेष्ठ हैं। आपका परम लक्ष्य षट्स्थल तत्व निरूपण है। अब तक आपके 1763 वचन प्राप्त हैं। तब नया नया आकार पाते शरण धर्म का एक निश्चित सैद्धांतिक सीमा बाँधने में और उसे सर्ववेद्य, सार्वकालिक बनाने में जो श्रम किया वह महत्वपूर्ण है। इस प्रकार आप षट्स्थल ब्रह्मी, षट्स्थल चक्रवर्ती के रूप में प्रशंसा के पात्र बने।
सिर मैला हो तो महास्नान करना
वस्त्र मैला हो तो धोबी को देना
मन का मैल धोना हो तो।
कूडलचेन्नसंगय्या के शरणों के साथ अनुभाव गोष्टी करना। / 862 [1]
जाति का मैल छूटता नहीं, जनन का मैल छूटता नहीं
प्रेत का मैल छूटता नहीं, रज सूतक छूटता नहीं
जूठन मैल छूटता नहीं, भ्रांति सूतक छूटता नहीं
वर्ण मैल छूटता नहीं,
तब ये कैसे भक्त हैं?
लेपन कर क्षुद्रदेवता बनाकर
मुँह में गुड़ लेपन करने से
सदगुरु लिंग नाक काटे बिना रहेगा क्या?
जंगली आग के हाथ में घास ।
कटवाने के समान होनी चाहिए भक्ति।
पीछे न घास की ढेर, न आगे घास
इसलिए कूडलचेन्नसंग का भक्तिस्थल ।
आपके शरण को छोड़कर अन्यों को संभव नहीं। / 777 [1]
मांसपिड़ न लगे मंत्रलिंड लगे बसवण्णा,
वायुप्राणी न लगे लिंगप्राणी लगे बसवण्णा,
जगभरित शब्द न मानकर शरणभरित लिंग लगे
कूडलचेन्नसंगय्या में बसवण्णा। / 872 [1]
सात वार और कुल अठारह कहते हैं।
हम उसे नकारते हैं।
रात एक वार, दिन एक वार,
भवि का एक कुल, भक्त का एक कुल,
हम उसे जानते हैं देखो, कूडलचेन्नसंगमदेव / 900 [1]
कर्मजात को मिटाकर गुरु पुण्यजात करने के बाद
शिवकुल का नहीं तो कोई अन्य कुल शरण के लिए है क्या?
‘शिवधर्मकुले जात: पूर्वजन्म विवर्जितः ।
उमा माता पिता रुद्र ईश्वरं कुलमेव च।।'
कूडलचेन्नसंगय्या,
शिवकुल के बिना
आपके शरणों के लिए कोई दूसरा कुल नहीं। / 738 [1]
References
[1] Vachana number in the book "VACHANA" (Edited in Kannada Dr. M. M. Kalaburgi), Hindi Version Translation by: Dr. T. G. Prabhashankar 'Premi' ISBN: 978-93-81457-03-0, 2012, Pub: Basava Samithi, Basava Bhavana Benguluru 560001.
*