मल्लिकार्जुन पंडिताराध्य (1160)
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पूर्ण नाम: |
मल्लिकार्जुन पंडिताराध्य
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वचनांकित : |
श्री मल्लिकार्जुन
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कायक (काम): |
पंडित |
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धन यौवन हो तो उसे तुम नमस्कार करोगे,
मानव; सुमिरन करो, सुमिरन करो तुम्हारे बिगड़ने से पहले
धन शाश्वत नहीं, शाश्वत नहीं यौवन, प्राण तुम्हारे शाश्वत नहीं,
इसे जानकर श्री मल्लिकार्जुन का सुमिरन करो,
तुम्हारे नष्ट होने से पहले। / 1928
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आंध्र मूल के आराध्य परिवार के पंडिताराध्य के बारे में बताया जाता है। कि उनके बसवण्णा के भेजे भस्म धारण करने से उन्हें कन्नड़ भाषा का ज्ञान मिला। बसवण्णा से मिलने निकले पंडिताराध्य जी को बीच रास्ते में ही मालूम हुआ कि बसवण्णा का देहावसान हो गया तो कहा जाता है कि अपने इष्टलिंग में ही उस ज्ञान-मोक्ष का स्वरूप, भक्ति की श्रेष्ठता आदि का प्रतिपादन हुआ है। वृत्ति की परिभाषा, उलटबासी की भाषा, आलंकारिक शैली आदि इनके वचन की विशेषता दृश्य को देखकर तृप्त हुए थे। ‘श्री मल्लिकार्जुन' वचनांकित में रचे आपके 13 वचन मिले हैं। इनके वचनों में नीति परक वक्तव्य अधिक है जैसे देह अस्थायी है। इसलिए देह के रहते शिवध्यान, शिवपूजा में लगना चाहिए - ऐसी नीति परक बातें इनमें अधिक हैं। भाषा सरल और सीधा निरूपण द्वारा वचन हमें आकर्षित करते है।
References
[1] Vachana number in the book "VACHANA" (Edited in Kannada Dr. M. M. Kalaburgi), Hindi Version Translation by: Dr. T. G. Prabhashankar 'Premi' ISBN: 978-93-81457-03-0, 2012, Pub: Basava Samithi, Basava Bhavana Benguluru 560001.
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