पूर्ण नाम: |
मुद्दण्णा, घट्टिवाळय्या
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वचनांकित : |
चिक्कय्यप्रिय सिद्धलिंग इल्ल, इल्ल निल्लु माणु
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कायक (काम): |
चंदन घिसने का कायक
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समुद्र का घोष
निर्भर निर्वेग से होते समय
कोई उसको रोक पाएगा?
आकाश से बिजली कड़कते समय
उसे कोई रोक पाएगा?
महाद्भुत अग्नि के आगे
सूखा तृण काष्ठ कहाँ बच पायेगा?
स्वयं सर्वमय निष्कलंक निरंजन ऐक्यानुभावी को
अण्ड पिण्ड ब्रह्माण्ड अब्दि आकाश आत्मा की सीमा कहाँ ?
चिक्कय्यप्रिय सिद्धलिंग नहीं नहीं नहीं रूको। / 1674 [1]
घट्टिवाळय्या का पूर्व नाम है मुद्दण्णा | चंदन घिसने का कायक करते थे। गृहस्थी में विषमता आने से ऊबकर विरक्त बने। इनके महान व्यक्तित्व से प्रभावित होकर कई शरणों ने प्रशंसा की बात कही है। शून्यसंपादन में इनपर एक अध्याय है। इनका वचनांकित है 'चिक्कय्यप्रिय सिद्धलिंग इल्ल, इल्ल निल्लु माणु' । इनके 150 वचन प्राप्त हुए हैं जिनमें तत्वनिष्ठा, सत्य निष्ठुरता, समकालीन शरणों के प्रति आदर और कुछ ऐतिहासिक प्रसंग भी शामिल हैं।
फूटा घड़ा गोंद से कहीं जुड़ सकता है क्या?
जलकर विनष्ट हुआ कपड़ा
धोबी के पत्थर पर कहीं टिक सकता है क्या?
बद्ध भवि समझकर छोड़ने के बाद फिर धर्म में लेना क्यों ?
चिक्कय्यप्रिय सिद्धलिंग नहीं नहीं कहा मैंने।। / 1675 [1]
जंगम होकर जन्म लेने के बाद
फिर पूर्वाश्रम की ओर जा सकता है क्या?
जंगम रूपी शब्द के अंतर्गत होने पर
तीनों मलों से मुक्त रहना चाहिए।
अनंग के जाल में कभी नहीं फंसना चाहिए
वही निजत्व का संग है।
चिक्कय्यप्रिय सिद्धलिंग,
यह गुण किसी में नहीं-नहीं कहा मैंने। / 1676 [1]
भूमि को महान कहूँ तो
वह चरणों के अधीन है।
आसमान को महान कहूँ तो
वह आँखों के अधीन है।
महत् को महान कहूँ तो।
वह बातों के अधीन है।
घन घन कहते हैं, वह कहाँ है।
ज्ञान का कोई आचार नहीं,
लिंग संकेत का कोई आधार नहीं।
चिक्कय्यप्रिय सिद्धलिंग नहीं नहीं कहा मैंने। / 1679 [1]
बीमार को दूध मीठा लगता है क्या?
उल्लू को सूरज अच्छा लगता है क्या?
चोर को प्रकाश भला लगता है क्या?
भव सागर के समय में जो रहा
वह निर्भाव का भाव क्या जाने ?
चिक्कय्यप्रिय सिद्धलिंग नहीं नहीं कहा मैंने। / 1680 [1]
References
[1] Vachana number in the book "VACHANA" (Edited in Kannada Dr. M. M. Kalaburgi), Hindi Version Translation by: Dr. T. G. Prabhashankar 'Premi' ISBN: 978-93-81457-03-0, 2012, Pub: Basava Samithi, Basava Bhavana Benguluru 560001.
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