पूर्ण नाम: |
बिब्बी बाचय्या
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वचनांकित : |
एणांकधर सोमेश्वर |
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अंधा आरसी पकड़कर, उसमें क्या देख सकता है?
बहरा गांधर्वगान का आस्वाद कैसे कर सकता है?
ज्ञानहीन को बाह्य पूजा छोड़कर,
एणांकधर सोमेश्वर लिंग में,
ज्ञान प्राप्त करने के लिए तैयार होना चाहिए।
1866
[1]
बिब्बी बाचय्या रायचूर जिला, देवदुर्गा तालुक गोब्बूर के रहनेवाले थे। यहाँ एक 'अर्पणकट्टे' नामक स्थान है उसे शायद बाचय्या की समाधि मानते हैं। ‘एणांकधर सोमेश्वर' वचनांकित में रचे इनके 102 वचन प्राप्त हुए हैं। बाचय्या प्रसादि स्थल में स्थित शरण हैं। अतः अपने वचनों में प्रसादि स्थल को ही विशेष रूप से प्रतिपादित करना सहज ही है। कुछ उलटबासिपरक वचन भी है। इनके वचनों में अलग अलग शीर्षकों में छ: स्थलों में विभाजित किया जाता है।
तिल में छिपे तैल को, निकालने से देख सकते हैं,
चन्दन में छिपे गंध को, रगड़ने से देख सकते हैं,
श्रृंगी का नाद, बजाकर सुन सकते हैं,
इष्टलिंग ज्ञान के लिए यही दृष्टांत है,
एणांकधर सोमेश्वर लिंग में, प्राणलिंगी का स्थल ऐसा है। / 1868
[1]
जल मिट्टी जैसे, जड़ सार जैसे, और गंध वृक्ष जैसे,
एक छोड़कर एक नहीं रह सकते।
अंगलिंग प्राण योग का संबंध, टूटेगा नहीं -
एणांकधर सोमेश्वर लिंग में। | / 1871
[1]
"स्वाद बिना फल, सौरभ बिना पुष्प,
सारविहीन द्रव, किस काम के?
ज्ञानहीन की इष्टलिंग पूजा, मात्र दिखावे की होगी।
यह दूर है, एणांकधर सोमेश्वर लिंग से। / 1876",
[1]
References
[1] Vachana number in the book "VACHANA" (Edited in Kannada Dr. M. M. Kalaburgi), Hindi Version Translation by: Dr. T. G. Prabhashankar 'Premi' ISBN: 978-93-81457-03-0, 2012, Pub: Basava Samithi, Basava Bhavana Benguluru 560001.
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