पूर्ण नाम: |
अप्पिदेवय्य |
वचनांकित : |
ईश्वरीय वरद महालिंग |
जो कामिनी कांचन माटी से मुक्त नहीं करता
ऐसे गुरु का उपदेश नहीं चाहिए।
रोष हर्ष को न मिटाने वाले लिंग की पूजा न करुँगा
तामस भ्रम जिनका नष्ट न हुआ है उस जंगम को दासोह न दूँगा
परमानंद रहित पादोदक का सेवन न करूँगा
जिससे तृप्ति न मिलती ऐसा प्रसाद न लेता
अहं का नाश जिसमें होता उस ईश्वरीय के महालिंग
को क्या कहूँ? / १४२१
(1421)[1]
अप्पिदेवय्य (१६५०) ’ईश्वरीय वरद महालिंग’ वचनांकित से इनका सिर्फ एक वचन मिला है। ’अहंभाव न मिटे तो गुरु लिंग जंगम पादोदक प्रसाद को न स्विकारूंगा’ -एसा निराकरण का धृढ-निश्चय इनके वचन में सुंदर रूप से व्यक्त हुआ है।
References
[1] Vachana number in the book "VACHANA" (Edited in Kannada Dr. M. M. Kalaburgi), Hindi Version Translation by: Dr. T. G. Prabhashankar 'Premi' ISBN: 978-93-81457-03-0, 2012, Pub: Basava Samithi, Basava Bhavana Benguluru 560001.
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