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मधुवय्या (1160)

पूर्ण नाम: मधुवय्या
वचनांकित : अर्केश्वरलिंग
कायक (काम): राजा बिज्जाल के दरबार में मंत्री (Minster)

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कोई नहीं जानते अन्न भूखा होकर संतृप्ति से खाना
कोई नहीं जानते पानी प्यासा होकर भूमि को पीना
कोई नहीं जानते देव मनुष्य होकर सभी जीवों जैसी दुस्थिति को पाना।
अर्केश्वर लिंग में समरस होने के कारण वह विशेष स्थिति बनी। / 1903 [1]

मधुवय्या मूलतः ब्राह्मण थे, बाद में शरण बने। उन्होंने अपनी बेटी का विवाह अंत्यज हरळय्या के बेटे से कराया। परिणाम स्वरूप मृत्युदण्ड भोगना। पड़ा। इनके 'अर्केश्वरलिंग' वचनांकित में रचे 102 वचन उपलब्ध हैं। ये वचन अधिकतर उलटबासी शैली में हैं। लिंगानुसंधान, शिवानुभव साधना, धर्म बाहिर की निंदा, कुलजातियों की चर्चा, वैयक्तिक जीवन के चमकीले अंश आदि वचनों की विषय वस्तु बने हैं।

जहाज के पतवार पर बैठे कौए के जैसे
जीव जहाँ भी चाहे
आशा रूपी निशाने पर आनेवाले सभी क्या तत्व को जान सकते हैं?
अन्न के लिए वेश धारण करने वाले
जो चित्त शुद्धात्म नहीं है उन्हें नहीं मानता अर्केश्वरलिंग। / 1904 [1]

तन निर्वाण तत्त्व में - मन लौकिकता में
बातें ब्रह्म तत्त्व की - नीति अधमता की
यह कैसा ज्ञान है?
घातक के हाथ तलवार जैसी
अर्केश्वर लिंग को जानने के लिए यह सही रीति नहीं। / 1905 [1]

लिंग जानने पर अंग का लय होना चाहिए।
कोंपले दिखकर बीज नष्ट होने जैसे
स्वयंभू प्रकट होकर प्रतिष्ठा नष्ट होने जैसे
अर्केश्वर लिंग को जानने के चिह्न के प्रति प्रीति। / 1906 [1]

References

[1] Vachana number in the book "VACHANA" (Edited in Kannada Dr. M. M. Kalaburgi), Hindi Version Translation by: Dr. T. G. Prabhashankar 'Premi' ISBN: 978-93-81457-03-0, 2012, Pub: Basava Samithi, Basava Bhavana Benguluru 560001.

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