पूर्ण नाम: |
मोळिगे महादेवी
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वचनांकित : |
एन्नय्यप्रिय इम्मडि निःकलंक मल्लिकार्जुन
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कायक (काम): |
कश्मीर के रानी, लकड़ी बेचने का काम (Princess later became woodworker in Kalyana) |
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ऊर्वशी कर्पूर खाकर यदि चूमेगी तो
सबको भायेगा, उसके बदले
यदि सूअर कपूर खाकर चूमेगा तो
भला किसको भायेगा? लोग उसे भगा देंगे।
जिनका चाल-चलन और बोल शुद्ध हो, ऐसे लोग पुरातन शरणों के
वचन पढ़ेंगे, अनुभाव करेंगे तो अच्छा लगता,
उसके बदले जिनका चाल-चलन और बोल शुद्ध नहीं
वे यदि पुरातन शरणों के वचन पढ़ेंगे, अनुभाव करेंगे।
तो पसंद करेंगे क्या?
जिसका चाल-चलन और बोल शुद्ध नहीं, वे शरणों
के वचन पढ़ेंगे, तो वे उस सूअर से भी बदतर हो जायेंगे।
एन्नय्य प्रिय इम्मडि नि:कलंक मल्लिकार्जुन। / 1332
[1]
महादेव भूपाल जो कश्मीर के राजा थे उनकी रानी गंगादेवी ही आगे महादेवी के रूप में प्रसिद्ध होती हैं। पति के साथ राजकाज त्यागकर कल्याण आकर लकड़ी बेचने का कायक करती हैं। महादेव भूपाल ही ‘मोळिगे मारय्या' और गंगादेवी ही मोळिगे महादेवी के रूप में नाम बदल कर कल्याण में कायक जीवी बन जीवन बिताते हैं। अनुभव मण्डप की चर्चाओं में भाग लेकर वचन रचना करते हैं।
महादेवी के ‘एन्नय्यप्रिय इम्मडि निःकलंक मल्लिकार्जुन' वचनांकित में 70 वचन मिले हैं। सभी वचन तत्व प्रधान हैं। उन वचनों में पति को सत्य की धारणा स्पष्ट करनेवाली बातें ही अधिक हैं। साथ ही षट्स्थल स्वरूप, क्रिया ज्ञान संबंध, इष्टलिंग प्राणलिंग का महत्व बतानेवाली महादेवी अन्य वचनकार्तियों से भिन्न दीखती हैं।
छोटे सिक्के के लिए लड़कर सोने को खोना क्यों ?
छलकते भरे घड़े को तोड़कर गिराना क्यों?
तुम्हारे अंग में गुरु से प्रदत्त लिंग रूपी चिन्ह के रहते
उस निजलिंग में ऐक्य होना न जानकर,
तंगगली में जाने की गडबडी क्यों ?
आप जहाँ खड़े रहे वहाँ गिरा दें गहने को,
बाहर यादकर ढूँढने से नहीं मिलेगा।
तो वह फिर अपने को मिलेगा क्या?
महान घन लिंग तुम्हारे अंग में जब है तो देखा, न देखा
ऐसे तुम्हारे संदेह को दूर कर लो
एन्नय्य प्रिय इम्मडि नि:कलंक मल्लिकार्जुन। / 1335 [1]
हाथ में ज्योति पकड़कर अंधेरा है ऐसा क्यों कहते हो?
पारस रस हाथ में रखकर कुली का काम क्यों करे?
क्षुधा मिटने पर रुचिकर अन्न का पाथेय क्यों ढोना?
नित्य अनित्य को जानकर भी,
मर्त्य-कैलास की बात करना भक्तों के लिए योग्य नहीं।
एक मन से दृढ़ निश्चय होने पर इधर उधर भटकना क्यों ?
उस निरे शून्य के प्रकाश को तुम आप देख लो।
एन्नय्य प्रिय इम्मडि नि:कलंक मल्लिकार्जुन में। / 1336 [1]
बोल सारे महाप्रसंग होने पर
अगणित वेद, असंख्य शास्त्र,
आदि अंत मध्य रहित पुराण पढ़ना क्यों ?
तलवार की रक्षा हो तो उसे अन्य शस्त्र का भय क्यों ?
बाण रूपी चर्म कवचवाला बाण से घायल क्यों होता?
शब्द मुग्ध को उसकी इच्छा की बात करके मन बिगाड़ें क्यों ?
वह अपनी स्वयं बुद्धि से है या नहीं कहने साक्षी होता है।
प्रकाश के मुँह से प्रकाश की कांति को समझने की भाँति
अपने एन्नय्य प्रिय इम्मडि निःकलंक मल्लिकार्जुन में
भेदभाव के बिना तुम अपने को जान लो। / 1339
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References
[1] Vachana number in the book "VACHANA" (Edited in Kannada Dr. M. M. Kalaburgi), Hindi Version Translation by: Dr. T. G. Prabhashankar 'Premi' ISBN: 978-93-81457-03-0, 2012, Pub: Basava Samithi, Basava Bhavana Benguluru 560001.
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