पूर्ण नाम: |
नुलिय चंदय्या |
कायक |
घास से रस्सी बुनना |
वचनांकित : |
चंदेश्वर |
पीडित कर, निंदा कर, दु:ख देकर
हर कीसि से माँग लाकर
अवुर जंगम को किया ऐसा कष्ट उटाकर कीया भोजन
लिंग का नैवेध्य नहीं होता।
दैहिक श्रम से, मन को श्रम से आए
चर जंगम का स्वभाव समझकर
शांति से, संशयहीन हो जंगमलिंग को
करना ही दासोह है।
हरी साग सब्जि ही सही
कायक से मिला हो तो, वह लिंगार्पित है।
चन्नबसवण्णप्रिय चंदेश्वर लिंग के नैवेध्य के लिए वह अर्पित हुआ। /१८१७
[1]
घास से रस्सी बुनकर और उसे बेचकर प्राप्त धन से जंगम दासोह करनेवाले चंदय्याएक कायकयोगी थे। इनका जन्मस्थान बिजापुर जिला शिवणगि है। शून्य संपादन और पुराणों में इनकी कायकनिष्ठा का वर्णन हुआ है। इन्होंने इष्टलिंग के हाथ से ही रस्सी बेचने का कायक कराया था। हेंडद मारय्या ने अपने एक वचन में इनके महती व्यक्तित्व का नाटकीयनिरूपण किया है। कल्याण क्रांति के बाद चेन्नबसवण्णा के साथ उळवि आते हैं। चेन्नबसवण्णा के ऐक्य (लिंगैक्य) होने के बाद अक्क नागम्मा को एण्णेहोळे के तट पर ले जाते हैं। अक्क नागम्मा के वहाँ ऐक्य होने के बाद वे आगे चलकर नुलेनूर में ऐक्य (लिंगैक्य) होते हैं। पता चला है कि वहाँ इनकी एक समाधि है।
शास्त्र पकडनेवाले सब मार सकते हैं क्या?
साधना करनेवाले बालक सब लड सकते हैं क्या?
प्रेम से करनेवाले कृतिकार सब सद्भक्त है क्या?
वह रीति चेन्नबसवण्णाप्रिय चंदेश्वर लिंग कोमान्य नहिं? /१८१८[1]
चंदेश्वर अंकित से इनके 48 वचनमिले हैं। सभी वचन कायक मूल्य को उजागर करते हैं। गुरु, लिंग, जंगम को भी कायक अनिवार्य मानते थे। भाव शुद्ध होकर जो किया जाता है वहीं सच्चा कायक है। हरापत्ता ही सही जो कायक से प्राप्त हो वहिं लिंगार्पित है। इस कथन में उनकी कायक परिकल्पना स्पष्ट होती है |
References
[1] Vachana number in the book "VACHANA" (Edited in Kannada Dr. M. M. Kalaburgi), Hindi Version Translation by: Dr. T. G. Prabhashankar 'Premi' ISBN: 978-93-81457-03-0, 2012, Pub: Basava Samithi, Basava Bhavana Benguluru 560001.
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