पूर्ण नाम: |
अग्घवणि होन्नय्य |
वचनांकित : |
हुलिगेरेय वरद सोमनाथ |
कायक (व्यवसाय): |
अग्घवणि (शुद्ध जल) भक्तों के लिए लाना |
जो होना है होने दो, नहीं हो तो कहने दो, ऐसा नहीं कह सकते।
व्रत-नियम रखने वाले को धृढ़ता चाहिए, संकल्प चाहीए
धृढ़ता से जो स्विकार किया गया है, उसे छोडा नहीं जाता।
हुलीगेरे का वरद सोमनाथ
मन को छूनेवाले धेरों के सिवा दूसरों से नहीं हारता। /१४१८
(1418)[1]
अग्घवणि होन्नय्य (११६०) होन्नय्य, आज के लक्ष्मेश्वर के पास पुलिगेरे के हैं। इनका अधिदैव सोमेश्वर है। प्रतिदिन तुंगभद्र नदि से पानी लाकर पूजा करना इनका व्रत-नियम था। अब्बलूर में हुए शिरस-दैवी चमत्कार प्रारंभ में एकांतरामय्या के रुंड को तशतरी में रखकर प्रदर्शित किया था। इन्होने अपना उत्तरार्ध जीवन कल्याण में बिताया। ’कल्लेदेवर पुर’ (११७९), मरडिपुर(११८०) शिला सासन में इनका उल्लेख मिलता है। ’हुलिगेरेय वरद सोमनाथ’ वचनांकित में रचे इनके चार वचन उपलब्ध हैं। उनमें शिव महिमा, एकादेवनिष्ठा, लिंगां सामरस्य न जाननेवाले नर मनुष्यों की आलोचना आदि अभिव्यक्त हैं।
References
[1] Vachana number in the book "VACHANA" (Edited in Kannada Dr. M. M. Kalaburgi), Hindi Version Translation by: Dr. T. G. Prabhashankar 'Premi' ISBN: 978-93-81457-03-0, 2012, Pub: Basava Samithi, Basava Bhavana Benguluru 560001.
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