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त्रैलोचन मनोहर माणिकेश्वरलिंग (लगभग 1600ईमें)

पूर्ण नाम: त्रैलोचन मनोहर माणिकेश्वरलिंग

अग्नि की प्रतिमा को बिच्छू के डंक से क्या होगा?
उसकी पूँछ जली, काँटा टूटा;
रो रोकर तड़प रहा है।
हे, त्रैलोचन मनोहर माणिकेश्वरलिंग,
निंदकों के मुँह में छाले पड़े। (2223) [1]

शरीर के ढीले पड़ने से पहले, समायोजन करो,
नज़र कमजोर होने से पहले, देखो,
बुद्धिभ्रमित होने से पहले, इष्टलिंग का ध्यान करो,
संपत्ति खोने से पहले, जंगमदेव को दे दो,
त्रैलोचन मनोहर माणिकेश्वर लिंग
साथ न करोगे तो वह पुनः जन्म न मिलेगा। (2224) [1]

इस वचनांकित के वचनकार का नाम लभ्य नहीं। सात वचन मिले हैं। इष्टलिंग को छोड़कर अन्य देव की पूजा करनेवालों पर आलोचना, निंदकों का दूषण आदि विषय आकर्षक दृष्टांत के साथ वचनों में निरूपित हैं।

पिछवाड़े में, संजीवनी जब है,
जड़ीबूटी की ओर जानेवाले मनुष्यों को हम क्या कहें?
अपने में इष्टलिंग को रखकर,
अन्य देवों को प्रणाम करनेवाले, अज्ञानी मनुष्यों को हम क्या कहेंगे?
त्रैलोचन मनोहर माणिकेश्वर लिंग!
पापी की नज़र में, स्पर्शमणि भी पत्थर बनने जैसे, हो तुम! (2225) [1]

निंदा-स्तुति की ओर ध्यान न देकर, बहरा बनना चाहिए।
परनारी, परद्रव्य की ओर ध्यान न देकर, अंधा बनना चाहिए।
शब्द संभ्रम के तार्किकों के साथ,
शिशिर ऋतु के कोयल जैसे मूक होना चाहिए।
यह सब जाननेवाले शरणों के हृत्कमल में,
अपने आप विराजमान होते हैं, त्रैलोचन मनोहर माणिकेश्वरलिंगदेव! (2226) [1]

References

[1] Vachana number in the book "VACHANA" (Edited in Kannada Dr. M. M. Kalaburgi), Hindi Version Translation by: Dr. T. G. Prabhashankar 'Premi' ISBN: 978-93-81457-03-0, 2012, Pub: Basava Samithi, Basava Bhavana Benguluru 560001.

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