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लिंगायत शब्द का अर्थ

जग विशाल, नभविइडाल अतिविशाल आपका रूप
पाताल से परे परे हैं आपके श्रीचरण
ब्रह्मांड से परे परे है आपका श्रीमुकुट
हे अगम्य, अप्रमाण, अगोचर, अप्रतिम लिंग
हे कूडलसंगमदेवा
आप मेरे करस्थल पर लधु बनकर आये हैँ ।

विश्व के भीतर बाहर व्याप्त परमात्मा विराटरूपी है, वह अंन्तरर्यामी भी है और अतीत भी। ऐसा परमात्मा लघु याने छोटे आकार में इष्टलिंग विश्वरूपी महालिंग का लघु रूप है। जिस चैतन्यमय परवस्तु से सचराचर की सृष्टि विकसित हुई है, जो लीलामन्ग है, जहॉ छिप जाती है ऐसे सत-चित-आनन्द रूपी परमात्मा को लिंगयत प्रक्रिया में 'इष्टलिंग' कहा जाता है । ऐसी परवस्तु को विश्व के आकार गोलाकार में लधु बनाकर अंग पर जो धारण करता है वही लिंगायत है। लिंगायत को लिंगवंत भी कहा जाता है। जैसे, जिसमें धन हो तो वह धनवान है, जिसमें गुण हो तो वह गुणवान है, वैसे ही जो इष्टलिंग धारण किया है, वह लिंगवंत हैं। जो उस लिंग को आंग पर धारण नहीं करता वह लिंगवंत नहीं है ।

लिंगायत को वीरशैव, लिंगांगि, लिंगसंगि, जंगम, सिरीजंगम, बसवधर्म, शरणधर्म आदि कई विशिष्ट नाम भी है। भिन्न भिन्न प्रदेशों में भिन्न भिन्न विशिष्ट नाम है। ईस धर्म का अनिवार्य नियम है इष्टलिंग धारण। लिंग-धारण से ही कोई भि व्यक्ति लिंगायत हो सकत है, ज्न्म से नहीं। जन्मत: लिंगायत होकार जो ईष्टलिंग धारण नहीं करता उस्को शरण लोग व्रतभ्रष्ट और समाजबाहिर कहते हैं।

किसि भी कारण से लिंग को निकालकर यदि कोई अप्ने को लिंगायत बतावे तो उस झूठ बोलनेवाले की, गुरु बसवण्णा कटु टीका करते हैं।

लिंग बिना चले, लिंग बिना बोले
लिंग बिना लाट निगल लेवे
तो उस दिन का वह दोष बन जाएगा।
मैं क्या कहूँ, क्या कहूँ मैं।
लिंग बिना चलनेवालों के अंग लौकिक है, उसे छूना नहीं
लिंग बिना बोलनेवालों के शब्द सूतक है, उसे सुनना नहीं
लिंग बिना चलनेवाला वह चाल-बोल से व्रतभ्र्ष्ट है
हे कूडलसंगमदेवा।

इष्टलिंग देव को अंग पर धारण करना अति अव्श्यक प्रथम नियम है। वैसे धारण करनेवाला ही लिंगायत है।

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