लिंगायत मे स्त्री पुरुष समानता (Gender Equality in Lingayat)
|
|
कहते हैं कनक माया है, कनक माया नहीं।
कहते हैं कामिनी माया है, कामिनी माया नहीं।
कहते हैं माटि माया है, माटि माया नहीं।
मन के आगे जो चाह है वही माया है, गुहेश्वर। -648 [1]
अपने से बनी स्त्री अपने सिरपर चढ़ी थी
अपने से बनी स्त्री अपने गोदपर चढ़ी थी
अपने से बनी स्त्री ब्रह्मा की जोभपर चढ़ी थी
अपने से बनी स्त्री नारायण की छातीपर चढ़ी थी
इसीलिए, स्त्री केवल स्त्री नहिं, स्त्री राक्षसी नहीं
स्त्री साक्षात् कपिलसिद्धमल्लिकार्जुन है देखो। -1018 [1]
स्वर्ण का मोह त्यागकर लिंग का प्रेम पाने के लिए कहते हैं
क्या स्वर्ण और लिंग में विरोध है?
स्त्री का मोह छोढकर लिंग का प्रेम पाने के ले कहते हैं
क्या स्त्री और लिंग में विरोध है?
मिट्टी का मोह त्यागकर लिंग का प्रेम पाने के लिए कहते हैं
क्या मिट्टी और लिंग में विरोध है?
अंग का मोह त्यागकर लिंग का प्रेम पाने के लिए कहते हैं
क्या अंग और लिंग में विरोध है?
इंद्रियों का मोह त्यागकर लिंग का प्रेम पाने के लिए कहते हैं
क्या इंद्रिय और लिंग में विरोध है?
इस जगत् का मोह त्यागकर लिंग का प्रेम पाने के लिए कहते हैं
क्या जगत् और लिंग में विरोध है?
इसलिए परंज्योति परम करुणाशील
परम शांत रूपी लिंग को
क्रोध, रूठना छोड़ सके तो देख सकते हैं
वरना न देख सकते।
ज्ञान से ही सच्चा सुख प्राप्त होता है
मसणय्यप्रिय गजेश्वर। -1309 [1]
स्तन उभरने से स्त्री कहलाती है
मूँछ निकलने से पुरुष कहलाता है
इस उभय का ज्ञान
स्त्री है या पुरुष, बताओ हे नास्तिनाथ? -1312 [1]
पुरुष चाहकर स्त्री को अपनायेगा
तो उस स्त्री को एक की संपत्ति समझनी चाहिए।
स्त्री चाहकर पुरुष को अपनायेगी
तो इस प्रश्न का उत्तर क्या समझे?
यदि इन दोनों रूपों को मिटाकर सुखी हो सकता है
तो मैं उस नास्तिनाथ को परिपूर्ण कहुँगी -1311 [1]
कच, कुच हो तो स्त्री ऐसा प्रमाणित नहीं
काचनी, मूँछ कटार हो तो पुरुष, ऐसा प्रमाणित नहीं
वह जग की दृष्टि, ज्ञानियों की नीति नहीं।
कोई भी फल हो मधुरता ही उसका लक्ष्य है
फूल कोई भी हो सुगंध ही लक्ष्य है
इसका रहस्य तुम्हीं जानते हो, शंभुजक्केश्वर। -1348 [1]
पत्नी के प्राणों के लिए थे क्या कुच और कच?
ब्राह्मण पति के प्राणों के लिए था क्या यज्ञोपवीत?
बाहर जो अंत्यज था उसके प्राण के हाथ में लाठी था क्या?
तुम्हारे इस रहस्य को इस लोक के
जड़ मतिवाले कैसे जान पाएँगे, रामनाथ। -1760 [1]
कुच कच बढ़े तो स्त्री कहते हैं
दाढी-मूँछ बढ़े तो पुरुष कहते हैं
इसके बीच जो आत्मा है
बह न स्त्री, न पुरुष है देखो, रामनाथ। -1764 [1]
पत्नी का गुण पतिको परखना है, मगर
पति के गुण को पत्नी कैसे परखेगी? कहते हैं लोग।
पत्नी से लगा दोष पति के लिए हानिकारक होती है।
पति से लगा दोष पत्नी को क्या हानिकारक नहीं?
एक अंग की दोनों आँखों मे, एक के सूखने से हानि हो तो
हानि किसको यह समझने पर
कालांतक भीमेश्वर लिंग को अछ्चा लगा था। -1785 [1]
[1] Number indicates at the end of each Vachana is from the book "Vachana", ISBN:978-93-81457-03-0, Edited in Kannada by Dr. M. M. Kalaburgi, Hindi translation: Dr. T.G. Prabhashankar 'Premi'. Pub: Basava Samiti Bangalore-2012.
*