शिवाचार
(अ) "शिवभक्तों में कुल, गोत्र, जाति, वर्णा को न देखकर वे जो कुछ देते हैं उसे ले
लेना शिवाचार है ।"
यह सामाजिक समता को बतलानेवाला तत्व है । जगत् के सभी मानव भगवान के बच्चे हैं । इस
मानव जनांअ में जातीयता की दीवार का निर्माण करना ठीक नहीं है । वर्णाश्रम धर्म में
वर्गीकरण करके बताया गया है कि ब्राह्मणत्व, क्षत्रियत्व, वैश्यत्व और शूद्रत्व जन्मत:
प्राप्त होना है । शरणों ने कहा है कि यह विभजन देव निर्मित नहीं, मनिव कल्पित है ।
जगत में दो ही जातियां हैं- स्वी और पुरुष; दो ही कुल है - भवि और भक्त । इस तत्व के
आधार पर, जाति- वर्ण- वर्ग- लींग- भेद रहित सभी मानव गुरु का अनुग्रह पाकर मुक्ति प्राप्त
करने के अधिकारी हैं । इस तत्व को माननेवाला ही लिंगायत है ।
(आ) नारी माया नहीं है, शूद्र नहीं है । यह जानकर कि वह भी भक्ति कामना करनेवाली धर्म
मार्ग की पथिका है, पुरुष को तरह वह भी समान रूप से लिंग-दीक्षा-संस्कार पा सकती है
। जिनमें अर्हता हैं, इच्छुक जो हैं उन्हें गुरुत्व का हक, मठ, पीठों का अधिकार दे
सकने में पूर्ण विश्वास, स्वतंत्र विचार रहनेवाला ही लिंगायत है ।
(इ) लिंगदीक्ष किसी भी जातिवालों को दी जा सकती है । कुछ स्वामी और मठाधिकारी जो लिंगायत
नहीं है उन्हें लिंगदीक्षा उचित नहीं है । यह अत्यंत मूर्ख विचार है । सभी जातियों
को दीक्षा देने के लिए ही लिंगायत धर्म का आविर्भाव हुआ है । (सचमुच) लिंगायतों को
लिंगधारण करना नहीं, जो लिंगायत नहीं, उन्हें लिंगधारण करना चाहिए । रोगी को चिकित्स
न देकर, निरोगी को क्या चिकित्सा देनी है? जिस कत्ना के पति नहीं उसका विवाह किये बिना
पति प्राप्त स्त्री का विवाह करना नहीं है। धर्म जो केवल कुछ ही वर्णे की संपत्ति थि
उसे सब लोगों का हिस्सा बनाने के लिएअ ही लिंगायत का जन्म हुआ। एक दीप को प्रकाश करने
के लिए प्रणति, बत्ति, तेल चाहिए। तन रुपी प्राणति में भक्ति का तेल, आचार रुपी बत्ति
पर्याप्त है। धर्म संस्कार का दीप जलाये तो ज्योति प्रकाशित होकर जगमगाति है।
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