शरण शरण से मिलकर ’शरणु’ कह हाथ जोड़ना ही भक्ति का लक्षण है।
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’आइए, कुशल तो हैं?’
ऐसा पूछने से क्या
आपका ऐश्वर्य उजड़ जायेगा?
’बैटिए’ कहने से क्या धरति धँस जायेगी?
तुरंत बात करने से क्या सिर फट जायेगा?
भले ही कुछ दे न सको
पर यदि विनय गुण का ही अभाव हो
तो नाक काटे बिना रहेगा क्या
कूडलसंगमदेव? /112 [1]
बोले तो मोती की माला जैसा हो,
बोले तो माणिक की आभा जैसा हो,
बोले तो स्फटिक की किरण जैसा हो,
बोले तो लिंग प्रसन्न हो ’अच्छा अच्छा’ कहे
बोले जैसा आचरण न हो तो
कूडलसंगमदेव कैसे रीझेगा? /260 [1]
वाक् ज्योतिर्लिंग है, स्वर है परतत्व!
ताल-ओष्ट्य् का संपुट ही नाद बिंदु कलातीत!
गुहेश्वर के शरण कोई दोष नहिं, सुन री पगली। /592 [1]
शरण शरण से मिलकर
’शरणु’ कह हाथ जोड़ना ही भक्ति का लक्षण है।
शरण शरण से मिलकर
पादस्पर्श करना ही भक्ति का लक्षण है।
शरण चरण न पकड़कर
देखने पर भी ध्यान न देकर चले जाय तो
कूडलचेन्नसंग के शरण क्षमा न करेंगे। /905 [1]
[1] Number indicates at the end of each Vachana is from the book "Vachana", ISBN:978-93-81457-03-0, Edited in Kannada by Dr. M. M. Kalaburgi, Hindi translation: Dr. T.G. Prabhashankar 'Premi'. Pub: Basava Samiti Bangalore-2012.