लिंगायत धर्म साहित्य *आद्धशरणों के वचन पारस है* | लिंगायत धर्म में व्रत, शील (नियम) नेम |
लिंगायत धर्म एक-देवोपासन पालन करता है |
अंग पर लिंगधारण करने पर
स्थावर लिंग की पूजा नहीं करनी चाहिए
अपनॆ पति को छोड़कर परपुरुष का संग
करना क्या सही है?
करतल मे (इष्ट)लिंग के होने पर
पृथ्वि में स्थापित लिंग को पूजें तो
कूडलसंगमदेव नरक में भेजेगा अवश्य। /4 [1]
लाक्षा से बनकर पिघलानेवाला कैसे देव भला?
अग्नि को देख जल जानेवाला कैसे देव भला?
अवश्यकता पर बेचा जानेवाला कैसे देव भला?
लोग भयभीत हो तो गाड़ा जानेवाला कैसे देव भला?
सहज भाव के निजैक्य कूडलसंगमदेव
बस वही हैं देव। /17 [1]
कुछ देवता तो सामान्य लोगों के
द्वार पर सदा रहते हैं
हट जाने के लिए कहो-जाते नहीं,
कुछ देवता तो कुत्तों से भी गये-बीते होते है,
कुछ देवता लोगों से माँग कर खाते हैं,
हे कूडलसंगमदेव! ऐसे देवता
क्या दे पाते हैं? /33 [1]
दो या तीन देवताओं के होने की बात
घमंड से न करो, देव एक ही है
दो कहना झूठ है
कूडलसंगमदेव के बिना कोई अन्य देव नहीं कहा वेद ने। /61 [1]
पत्थर के नागदेवता पर दूध चढायेंगे,
जीवित नाग की हत्या करेंगे,
खानेवाले जंगम को झिड़का देंगे,
नहिं खानेवाले लिंग को भोग लगाएँगे,
कूडलसंगम के शरणों का अनादर करनेवाले
पत्थर से टकरानेवाले मिट्टी के ढोला जैसा है। /148[1]
जागृति - स्वप्न - सुषुप्ति में भी
अन्य का स्मरण करूँ, तो
सिर कट जाये! सिर कट जाय।
झूट कहूँ! हे देव सिर कट जाये, सिर कट जाय,
कूडलसंगमदेव!
आपके बिना अन्य का स्मरण करूँ तो
सिर कट जाये! सिर कट जाय! /204 [1]
देव एक नाम अनेक
परम पतिव्रता का पति एक
अन्य दैव को जो टेके माथा
उसके नाक-कान काटेगा
अनेक देवों की जूठन खानेवालों को
क्या कहुँ हे! कूडलसंगमदेव। /230[1]
विश्वास करनेवाली पत्नि का
पति एक ही होता है देखोजी,
विश्वास करनेवाली भक्त का
देव एक ही होता है देखोजी,
नहीं नहीं अन्य दैव का संग अच्छा नहीं
नहीं नहीं परदैव का संग अच्छा नहीं
नहीं नहीं अन्य दैव पर विश्वास तो व्यभीचार है देखोजी,
कूडलसंगमदेव देखेगा तो
नाक काट कर रखता है देखोजी। /241[1]
जल देखते ही डुबकी लगाते हैं
वृक्ष देखते ही परिक्रमा करते हैं
सूखते जल और सूखते वृक्ष को
पसंद करनेवाले आपको कैसे जानेंगे?
हे! कूडलसंगमदेव। /257 [1]
भक्त को देखते ही - सिर मुड़ाकर झुक जाते हो,
जिन मुनि को देखते ही - दिगंबर होते हैं,
ब्राह्मणों को देखते ही - हरिनाम जपते हो,
जैसे भक्तों को देखते हो वैसा बननेवाले
जारजों का मुँह न दिखाओ मुझे,
कूडलसंगय्य की पूजा कर, अन्य दैवों
को नमस्कार करके भक्त कहलानेवाले
अज्ञानियों को मैं क्या कहूँ? /296 [1]
घड़ा देव, सूप देव,
गलियारे का पत्थर देव,
कंघी देव, धनुष की डोरी देव
माप का पात्र देव, मटकी देव,
इतने सारे देवमूर्ति है कि पैर रखने की जगह नहीं।
कूडलसंगमदेव है मात्र एको देव। /309 [1]
विष्णु की पूजा कर कंधा जलवाते देखा,
जिन की पूजा कर दिगंबर होते देखा,
मैलार की पूजा कर कुत्ते होकर भौंकना देखा,
अपने कूडलसंगमदेव की पूजाकर
हे देव भक्त कहलाते देखा। /357 [1]
शास्त्र को श्रेष्ठ कहूँ? मगर वह कर्म की उपासना करता है,
वेद को श्रेष्ठ कहूँ? वह प्राणि वध का समर्थन करता है,
श्रीति को श्रेष्ठ कहूँ? वह सामने रखकर ढूँढता है,
उनमें कहीं भी आप नहीं है, इसलिए,
त्रिविध दासोह को छोड अन्यत्र
कहीं दीखाई नहीं देते
कूडलसंगमदेव। /364 [1]
शिव जन्म में पैदा होकर, लिंग में समरस होकर,
अपने अंग पर लिंग के होते हूए भी
दूसरों की स्तुति गाकर, दुसरो की प्रशंसा कर,
दूसरों की वाणी का आदर करने से
कर्म से छुटकारा नहीं, मिलता, न भव बंधन छूटता!
श्वान योनि में जन्म लेना ही पड़ता है
इसलिए, हे! कूडलसंगमदेव,
आप पर विश्वास करके भी अविश्वासी बने
ढोंगियों की गति ऐसी ही होगी
जैसे बालु की दीवार को पानी में धोना। /366 [1]
जब हो अमृत सागर में
तो गाय की चिंता क्यों?
जब हो मेरु मध्य में
तो स्वर्ण मिश्रित धूल छानने की चिंता क्यों?
जब हो श्रीगुरु सानिध्य में
तो तत्व विधा की चिंता क्यों?
मुक्ति की चिंता क्यों? जब हो प्रसादि
जब हो करस्थल में लिंग
गुहेश्वर, और किसकी चिंता? /451 [1]
अंग पर लिंग संबंध होने पर
क्षेत्र तीर्थ क्यों जाना!
अंग पर धारित लिंग को स्थावर लिंग के लगने पर
किसको महान् कहूँ? किसको लघु कहूँ?
जो महत्, वाक् से परे हैं
उसे न समझकर बरबाद हुए।
जंगमदर्शन होने पर सिर नवाते पावन होते
इष्टलिंगदर्शन होने पर हस्तस्पर्श से पावन होते
पास जो इष्टलिंग है उसे झुठ मानकर
दूर स्थित लिंग को नमस्कार करनेवाले
व्रतभ्रष्ट को मत दिखाओ!
कूडलचेन्नसंगय्या। /653 [1]
अंग पर लिंग धारण होने पर
पुन: भवि का रिश्तेदार मानकर संबंध करेगा तो
पहाड़ की मारिदेवि को बलि हो जाना न चूकता
कच्चि मिट्टी से बना घडा अग्निमुख से होने पर
पुन: वह अपने पूर्व स्थिति में जायेगा क्या?
अग्निदग्धघट: प्राहूर्न भूये मृत्तिकाये।
तच्छिवाचारसंगेन न पुनर्मानूषो भवेत्॥
अत: पूर्वाश्रम नास्ति हुए भक्त अपूर्व है
कूडलचेन्नसंगमदेव। /654 [1]
परम लिंग तत्व के साक्षात्कार के लिए
शरण मर्त्य लोक में आकर
अपने पच्चीस इंद्रियों को भक्त बनाकर
धीरे-धीरे उनके पूर्वाश्रम को नष्टकर
कल्पित रहित अर्पित करने पर
इंद्रिय अपने अपने मुख में ग्रहण करने समर्थ न होकर
चाहिए कहकर कूडलचेन्नसंग को पकड़े हुए हैं। /924 [1]
धारण किए हुए लिंग को हीन मानकर
पहाड़ के लिंग को श्रेष्ठ मानने की रीति देखो,
ऐसे महामुर्खों को देखोगे तो
मज़बूत जूते लेकर
फटाफट मारो, बोला हमारे अंबिग चौडय्या। /1393 [1]
पत्थर की प्रितमा की पूजा करके
कलियुक के गधे के रूप में पैदा हुए।
मिट्टि की देवप्रतिमा की पूजा करके मानहीन हुए।
पेड को भगवान मानकर पूजा करके मिट्टी में मिल गये।
भगवान की पूजा करके स्वर्ग नहीं जा सके।
जगत मे व्याप्त परशिव में
किंकर भाव के शिवभक्त ही श्रेष्ठ है
कह हमारे अंबिगर चौडय्या ने। /1395 [1]
पहाढी मंदिर के स्थावर लिंग को श्रेष्ठ मानकर चलनेवाले मूर्ख
अपने इष्टलिंग को दे दिजिए हमें
हमारे हाथ में देंगे तो, बीच पानी मे ले जाकर
बाँधकर-डूबोकर
आपको लिंगैक्य करूँगा कहा
हमारे अंबिग चौडय्या ने। /1407 [1]
गूड का चौकाकार न होगा तो क्या मिठेपन का चौकाकार होगा?
संकेत की पूजा न हो तो क्या ज्ञान की पूजा होगी?
ज्ञान विवेक धृढ हो जाए तो, करस्थल के चिन्ह का
वही पर लोप होगा, ऐसा कहा अंबिग चौडय्या ने। /1408 [1]
करतल के लिंग को छोडकर
धरति पर स्थित मूर्ति को नमन करने वाले
नरक के कुत्तों को मैं क्या कहूँ
परमपंचाक्षरमूर्ति शांतमल्लिकार्जुन। /1901 [1]
पत्थर मिट्टी काष्ट में भगवन् है समझकर
दर-दर भटकनेवाले भैया सुनो,
वह इधर-उधर स्थापित प्रतिष्टा का संकेत है,
जो शब्धातीत है उसे समझे।
वह मनाश्रीत जहां है वहां रहेगा,
नी:कलंक मल्लिकार्जुन। /1981 [1]
जगत्-सा विशाल, आकाश-सा विशाल,
पाद पाताल से परे
मुकुट ब्रह्मांड से भी परे,
विश्व ब्रह्मांड को, अपने पेट में निक्षेप किये हुए देव
अब अपना देव है।
उस देव में मै समा गया हूँ, मुझमे वह देव समा गया है।
ऐसे देव पर विश्वास करके, अहं खोकर शून्य हुवा।
ऐसे देव जाने बिना
सारा जग पत्थर का देव, मिट्टी का देव, पेड़ का देव
कहते हुए स्वर्ग, मर्त्य, पाताल वाले इनकी पूजा करते हुए भ्रष्ट हुए
मेरे देव को समझकर इन्होने पूजा नहिं की, अर्चना नहीं की,
उसकि भावना नहिं की,
इसलिए किसी भी लोक वाले क्यों न हो
मेरे देव को जान ले तो भव भी नहीं, बंधन भी नहीं।
धृढ़ विश्वास करो, हमारे बसवप्रिय कूडल चेन्नबसवण्णा में। /2147 [1]
पुराने समय में हनुमान ने लंका लांघा, समझ कर
आज बंदर चबुतरा लांघने की भांति
राजकुमारि अटारी पर चढ़ी तो
कूड़े पर चढ़नेवाली नौकरानी की भाँति
राजकुमार घोड़े पर सवार होते देख
बंदर कुत्ते पर सवार होने की भाँति
मदमत्त हाथी को सोमवीथी में घुसकर लूटते देख
बकरा मस्ति तानकर भीलों की बस्ती में घुस,
अपना गला तुड़वाने की भाँति
बहुत प्यार करनेवाले पति को छोड़
परदेस के विट को सराहति वेश्या की भाँति
अलतू-फालतू वासतूओं को पूजती निर्लज्ज स्त्री नकटी का
मुख देखा नहीं जाता, शिव साक्क्षी है
हे अखंड परिपूर्ण घनलिंग गुरु चेन्नबसवेश्वर। /2257 [1]
देह पर धारण किये लिंग तजकर मंदिर के लिंग के
सामने खड़े वाक्चातुरी बरसानेवाले
चोर शराबी, नीचों का मुख देखा नहीं जाता शिव साक्षि है
आखंड परिपूर्ण घनलिंग गुरु चेन्नबसवेश्वर। /2258 [1]
अंग पर लिंग धारणा कर
शिवभक्त कहलाते, तजकर शिवाचार का मार्ग
भवि और शैव दैवों को साष्टांग नमस्कार करते
’शरणु’ कहनेवाले अधमों का अंत हुवा शिवभक्त का जन्म
और उन्हे चंद्र-सूर्य के रहने तक अट्टाईस कोटि नरक से बचाव नहीं।
उस नरक के अंत होने के बाद भी,
कुत्ते, सुअर के जन्म से वे नहीं बच सकते
उपरांत भी उस जनम के रुद्र प्रलय से वे बचते देखो,
संगनबसवेश्वर। /2271 [1]
[1] Number indicates at the end of each Vachana is from the book "Vachana", ISBN:978-93-81457-03-0, Edited in Kannada by Dr. M. M. Kalaburgi, Hindi translation: Dr. T.G. Prabhashankar 'Premi'. Pub: Basava Samiti Bangalore-2012.
*लिंगायत धर्म साहित्य *आद्धशरणों के वचन पारस है* | लिंगायत धर्म में व्रत, शील (नियम) नेम |