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लिंगायत धर्म में व्रत, शील (नियम) नेम

जो आता है उसे स्विकारना ही व्रत है।
कपटभाव नहीं दिखाना ही व्रत है।
आचरण में न चुके तो व्रत है।
बोलकर न बोला न कहे तो व्रत है।
हमारे कूडलसंगय्या के शरण आते हैं तो
उनकी वस्तु उन्ही को सौंप देना ही व्रत है। /271 [1]

दूध का व्रत, दूछ मलाई का व्रत,
मलाई न हो तो खीचढी का व्रत,
माखन का व्रत, गूड़ का व्रत करनेवाले है।
मांड़ के व्रतवाले को मैने नहीं देखा,
कूडलसंगमदेव के शरणों में मांड़ के व्रत-वाले
मादार चन्नय्या मात्र है। /405 [1]

दूध बछड़े का जुठन है, जल मछली का जुठन है,
पुष्प भ्रमर का जूठन तो पूजा कैसे करोगे?
शिव शिव। कैसे पूजा करोगे?
इस जूठन से पार होना मुझसे संभव नहीं।
जो भी देता हूँ उसे स्विकार करो।
कूडलसंगमदेव। /406[1]

दूध का नेम रखनेवाला बिल्लि बनकर जन्म लेगा,
चने का नेम रखनेवाला घोडा बनकर जन्म लेगा,
पूजाजल का नेम रखनेवाला मेंढ़क बनकर जन्म लेगा,
पुष्प का नेम रखनेवाला भ्रमर बनकर जन्म लेगा,
ये षटस्थल के बाहर हैं
सच्ची भक्ति जिनकी नहीं, उनसे गुहेश्वर
प्रसन्न नहिं होंगे। /635 [1]

शीलवान, शीलवान कहते हैं, हम इसे नहीं जानते।
अंगनाओं का अधरपान
अपने उदर में जाने पर शील कहाँ?
ईषणत्रय रूपी कुत्ता पीछा करने पर शील कहाँ?
दूर हटा मन महत्‌ में स्थिर हो तो शील है,
परिणाम स्थिर हो तो शील है।
इसलिए कूडलचेन्नसंग में शीलवान्‌ विरले हि है। /911[1]

शील, शील कहते हैं गर्व से
परंतु शील क्या है, नहीं जानते वे।
जो है उसमें धोखा दिये बिना रहना ही शील है।
जो नहिं उसके लिए कर्ज न माँगना ही शील है।
परधन परस्त्री के मोह में न पड़ना ही शील है।
अन्यदैव (देव), परसमय (धर्म) की और न खींचा जाना ही शील है।
गुरुनिंदा, शिवनिंदा, जंगमनिंदा आदि को न सुनना ही शील है।
कूडलचेन्नसंग के शरणों के आगमन से
खुश होंगे तो वह शुद्ध शील है। /913 [1]

शील, शील कहते हैं, शील भक्ति में नहीं है।
क्योंकि
अनाज भूमि का जूठन है
पूजाजल बादल का जूठन है
सुगंध वायु का जूठन है
मृष्टान्न अग्नि का जूठन है
हाथ में दीप पकडकर भी
न दीखने से ठोकरें खानेवाले कुटिल शीलवानों को
पसंद करेगा क्या कूडलचेन्नसंगमदेव? /914 [1]

कामी के लिए व्रत है क्या, नि:कामी को नहीं तो?
क्रोधी के लिए व्रत है क्या, समचित्त को नहीं तो?
लोभि के लिए व्रत है क्या, उदारी को नहीं तो?
इसप्रकार क्षमा, दमा, शांति समचित्त संपदा आदे से युक्त होकर
गुरु लिंग जंगम के लिए, तन मन धन से सेवा में निरत होकर
अपने त्राण के लिए जिस प्रकार है, उसी प्रकार चित्त शुद्धात्म
महाभक्त ही लोकाचार रहित शरण है।
उसके चरण मेरे हृदय में मुद्रित है
आचार ही प्राण बना रामेश्वर लिंग
ऐसे शरणों के बैल बांधने के आधार है। /1246[1]

दुश्मनों से डरकर अग्रहपूर्वक व्रत कर सकते हैं क्या?
उस व्रत का विचार इस प्रकार है
घी का स्वाद लेने तलवार की नौके को चाटेंगे तो
तलवार की धार जीभ को लगकर, वह जीव दु:खी होने की भांति
प्रेमरहित भक्ति, संकल्प रहित निष्टा
शाल्मली वृक्ष को चाहनेवाले पक्षी के समान है।
इसप्रकार अपार विस्तार न जाननेवाले का व्रताचरण
हत्या अशुद्धता सूतक के लिए कारण बना,
आचार ही प्राण बना रामेश्वर लिंग
से बाहर का व्रत नियम। /1254 [1]

व्रत क्या है? भगवान को देखने की एक निसेनी है।
व्रत क्या है? इंद्रियो को काटनेवाली तेज कुठार है।
व्रत क्या है? समस्त संसार के लिए दावानल है।
व्रत क्या है? सभी दोषों का विनाशक है।
व्रत क्या है? चित्त को सतर्क करने पर वस्तु को देखने बना संकेत है।
व्रत क्या है? अचार ही प्राण बना रामेश्वर लिंग
उनके लिए सेवक जैसा है। /1259 [1]

परधन स्वीकार नहीं करना ही व्रत है,
परस्त्री का संग नहीं करना ही शील है,
जीवियों को न मारना ही व्रत-नियम है,
तथ्य-मिथ्या से दूर रहना ही नित्यनियम है,
यह, ईशान्यमूर्ति मल्लिकार्जुनलिंग में संदेह रहित व्रत है। /2039 [1]

शीलवान्‌, शीलवान्‌ कहते हैं।
शीलत्व को कौन जाने बताओ?
भूमि को शील कहूँ तो
अशुद्ध अठारह जाति के रहने, बोलने के लिए एक ही थी भूमि।
जल को शील कहू?
मछलि, मगरमच्छ, पक्षी, मृगों ने नहाकर उच्छीष्ट किया।
फसल को शील कहूँ तो
बैल, गधा खाकर बचा उच्छीष्ट।
सोने को शील कहूँ?
छाती पर बोझ बना था।
स्त्री को शील कहूँ?
दृष्टि पर माया बनकर सताती रही है।
कहो भैय्या वह शील कौन-सा है?
इस जाल में फँसने वाले सब दु:खशील हैं,
इसे पकड़कर भी पकड़े बिना, छोड़कर भी छोड़े बिना रहकर
मनस्साक्षि से जो शील है वही सच्चा शील है,
बसवप्रिय कूडलचेन्नबसवण्णा। /2164 [1]

[1] Number indicates at the end of each Vachana is from the book "Vachana", ISBN:978-93-81457-03-0, Edited in Kannada by Dr. M. M. Kalaburgi, Hindi translation: Dr. T.G. Prabhashankar 'Premi'. Pub: Basava Samiti Bangalore-2012.

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