Previous शरण वचन 1591_1682 वचन साहित्य Next

वचन पारिभाषिक शब्दकोश / अंतर्कथा-कोश

वचन पारिभाषिक शब्दकोश / अंतर्कथा-कोश

अंग जीवात्मा, शिवांश चेतन शरीर
अनुभावशिव तत्व ज्ञान, शिवानुभव, अपने आपको जानना
अनुभावीशिवज्ञानी, शिव ज्ञान संपन्न
अप्रमाण नाम तोल से परे । प्रमाणरहित, नौ प्रकार के सादाख्यों में एक
अमरनीति चोळ देश के ६३ पुरातनों में एक था। वह एक वस्त्र व्यापारी था । शिव ने भक्ति की परीक्षा के लिए बूढ़े के वेष में आकर जो कौपीन रखा था, वह कौपिन अदृश्य होने पर, उसके बदले में जितना भी वस्त्र दे सम न होने पर अपने को ही अर्पित करने जाकर तराजू में चढ़कर सम हो
अरिषड्वर्ग काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मात्सर्य ।
अवधिज्ञान सीमित ज्ञान
अष्ट विधार्चन जल, गंध, अक्षत, बिल्व पत्र, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य
अष्टतन पृथ्वी, अप, तेज, वायु, आकाश, चंद्र, सूर्य, आत्म
अष्टभोग गृह, शय्या, वस्त्र, आभूषण, स्त्री, पुष्प, गंध, तांबूल
अष्टावरण गुरु, लिंग, जंगम, पादोदक, प्रसाद, विभूति, रुद्राक्षी, मंत्र
आकार चतुष्टय चतुर्विध करण : चित्त, बुद्धि, अहंकार, मन
आयत देह पर धारण करनेवाला इष्टलिंग (लिंग)
इष्टलिंग
ईषणत्रय पत्नी, पुत्र, धन नामक तीन व्यामोह (दारेषण, पुत्रेषण, अर्थेषण )
उभय तन अंतरंग, बहिरंग शरीर
एकादश रुद्र अजैकपाद, अहिर्बुदन्य, हर, निरुत, ईश्वर, भुवन, अंगारक, अर्धकेतु, मृत्यु, सर्प, कपाल
एणांक शिव
ऐक्य शिव तत्व में लीन, लिंगांग सामरस्य
कंची प्राचीन कांचीपुरम तमिलनाडु का प्रसिद्ध शैव क्षेत्र है । यहाँ के सिरियाळ- चंगळे शरण दंपति ने बेटे को ही मारकर उसके मांस से शिव को भोजन तैयार कर अर्पित किया। इनकी भक्ति से शिव प्रसन्न होकर इन पति-पत्नी को कंचीपुर समेत कैलास ले जाते हैं।
कंठ पावड लिंगार्चन विधि में प्रयुक्त वस्तु, पूजा जल के घड़े पर वस्त्र ढकना ।
कण्णप्पा तमिलनाड के ६३ पुरातनों में एक था। शिवलिंग की आँख के दर्द के बदले में अपनी आँख देकर शिव को प्रसन्न करके कैलास गया था ।
कदळि श्रीशैल पर्वतावली का एक पुण्यक्षेत्र है। इसे 'गुप्त कदळि' भी कहते हैं (तपस्या स्थल) ।
कदळि केला, काया, पारिवारिक संसार, हृदयकमल, भवारण्य आदि अर्थों में प्रयुक्त है। जैसे- कायरूपी कदळी....कदळि एक तन है, कदळि एक मन है, कदळी विषयवासनाएँ हैं, कदळि भवारण्य है।
करण अंतरिंद्रिय
कर्ण महाभारत का एक पात्र है । देवेन्द्र विप्र के वेश में आकर कर्ण से दान के रूप में कर्ण कुंडल-कवच ले लेता है।
कर्मत्रय संचित कर्म, प्रारब्ध कर्म और आगामी कर्म
कायक समर्पण भाव से करनेवाला शरीरश्रम या वृत्ति या जीविकोपार्जन का पवित्र साधन ।
कायत्रय स्थूल, सूक्ष्म और कारण
काळिकादेवी पांचालों से पूजित देवी है।
कुलस्थल: अंग लिंग, शिवदीक्षित को भावस्थल से भक्तस्थल तक प्रकट 36 स्थल
केदार केदार उत्तर प्रदेश गढ़वाल जिला में है। केदारेश्वर देव का यह पवित्र शैव श्रेत्र है ।
कौडिन्य निम्न वर्ग में जन्मा एक ऋषि |
क्रियािष्पत्ति लिंग – त्रिविध निष्पत्ति लिंगों में एक । क्रिया लिंग से क्रिया निष्पत्ति लिंग की सिद्धि ।
खचर एक राजा था जिसने अपनी बेटी अमृतमती को मोह लिया। बेटी ने भागकर लिंग के गर्भगृह में आश्रय लिया ।
खेचर पवन साधक योग साधना से आकाशगामी होनेवाला
गुरु इष्टलिंग दीक्षा देनेवाला शिवस्वरूपी साधक
गोकर्ण कर्नाटक के पश्चिम समुद्र के तट का पवित्र शैव क्षेत्र है।
घन शिव / घुणाक्षरन्याय - मूर्ख से कभी कभी संपन्न होनेवाला अकलमंद का कार्य
चित्तस्वप्रज्ञा
चोळ तमिळनाड का प्रसिद्ध शैवभक्त राजा, जिसके यहाँ रोज़ शिव भोजन करता था। इससे इनमें अहंकार आ गया था। इस अहंकार को तोड़ने के लिए शिव ने कहा कि मैंने राजा के घोड़े को घास देनेवाले अस्पृश्य चेन्नय्या के घर में भोजन किया। इसे सुनकर चकित होकर राजा चोळ चेन्नय्य
चोळियक्का आंध्र प्रदेश के भीमेश्वर में एक शिवभक्त थीं । मूलतः ये वेश्या थीं। शिव को भक्ति से खिचड़ी अर्पित कर शिव कृपा पात्र बन गयीं । सुवर्णथाली की चोरी पर राजा जब इसे शूली पर चढ़ाने गया तो शिव इसे कैलास ले गया ।
चौडेश्वरी उग्ररूप की देवी।
चौदह भुवन (लोक) सात ऊर्ध्व लोक भूलोक, भुवर्लोक, स्वर्गलोक, महर्लोक, जनलोक, तपलोक, सत्यलोक ; सात अधोलोक अतल, वितल, सुतल, रसातल, तलातल, महातल, पाताल ।
जंगम चलनशील, चरलिंग, लिंगमुखी, चैतन्यात्मक ज्ञानमूर्ति
जंगम मुख लिंग जंगममुखी बना लिंग, लिंग का जंगममुख से प्रसाद स्वीकारने का तत्व
जंगमस्थल षड्स्थलों में एक
जंबूद्वीप भूमि के सप्तद्वीप में पहला है जंबुद्वीप । यह मेरु पर्वत के चारों ओर व्याप्त है। इसे लवण समुद्र ने घेर लिया है। इस द्वीप में बड़ा जामून का पेड़ (जंबूवृक्ष) होने से इसका नाम जंबूद्वीप पड़ा । इस द्वीप के दक्षिण भाग में भारत देश है।
तापत्रय आध्यात्मिक, आधिभौतिक, आदिदैविक
त्रिकरण काया, वाचा, मनसा
त्रिगुण सत्व, रजस, तमस
त्रिपुटी ज्ञातृ, ज्ञान, ज्ञेय
त्रिविध अंग त्यागांग, भोगांग, योगांग
त्रिविध दासोह गुरु लिंग जंगम को, गुरु के लिए तन, लिंग के लिए मन, और जंगम के लिए धन अर्पित करना।
त्रिविध मल अणवमल, मायामल, कार्मिकमल
दासोह अहंकाररहित होकर तन मन धन से गुरु लिंग जंगम को अर्पित करना ।
दूर्वासएक ऋषि जो निम्नवर्ग के (चम्मार) थे।
धूळपावड़ लिंगार्चन में उपयोग करनेवाला वस्त्र, लिंग पर धूल न पड़े इसलिए डालनेवाला वस्त्र ।
नंबि ६३ पुरातनों में एक शरण थे। ये शिव और परवेनाची, संकलनाचि नामक प्रेयसियों के बीच कुटनी का काम करते थे ।
नव खण्ड अजनाभ (भरत), किंपुरुष, हरिवर्ष, इलावर्त, रम्यक, हिरण्मय, कुरुखंड, भद्राश्व, केतुमूल
नाहं न + अहम्, ‘मैं' (अहम) की प्रज्ञा से मुक्त हुई की स्थिति
निराभारीसांसारिक जीवन में अहंकार न रखनेवाला
निराळ अव्यक्त
निर्माल्य ैला, पूजा में उपयोग किया गया मुरझाया फूल ।
निष्कल निर्गुण, निराकार, निरवय
पंचमहापातक ब्रह्महत्या, सुरापान, स्वर्णस्तेय, गुरुपत्निगमन, जूठन
पंचलिंग आचारलिंग, गुरुलिंग,जंगमलिंग, प्रसादलिंग, शिवलिंग |
पंचसूतक जन्मसूतक, मरणसूतक, रजः सूतक, जातिसूतक, उच्छिष्ट सूतक
पंचाक्षर मंत्र नमः शिवाय
पंचाचार लिंगाचार, सदाचार, शिवाचार, गणाचार, भृत्याचार
पंचामृत गायदूध, दही, घी, शक्कर और शहद का मिश्रण
पादोदक गुरु चरणाभिषेक का फल
पुरातन (तिरसठ पुरातन) कलिगणनाथ, रुद्रपशुपति, तिरुनीलकंठ, सौंदर नंबी आदि ६३ पुरातन भक्त ।
पूर्वाचारी प्राचीन भक्त, प्रथम गुरु
प्रणवाक्षर अ, उ, म, ओं, न, म, शि, वा, य
प्रमथगण शिव परिवार, शिवगण
प्रसाद अष्टावरण में एक, गुरु लिंग जंगम को नैवेद्यकर उनसे प्राप्त और स्वीकार्य भोज्य पदार्थ
प्रसादी लिंगार्पित कर प्रसाद रूप में सेवन करनेवाला
प्राणलिंगीस्थल षट्स्थलों में एक
बयलु शून्य, जगत् की उत्पत्ति के पहले की स्थिति, निराकार स्थिति
बलि बलि दानशील राजा थे जिन्होंने वामन रूप में आये विष्णु को तीन पग भूमि दे दी। विष्णु का एक पग ने भूमि को, दूसरा पग ने आकाश को व्याप्त किया, तो तीसरा पग बलि के सिर पर रखकर राजा बलि का रसातल में दबाकर विष्णु ने नाश कर दिया ।
बिंदु योग में लीन हुए को हृदय में दिखनेवाली बिंदु के रूप में ज्योतिस्वरूप
ब्रह्मपाश जनन-मरण रूपी ब्रह्म का पाश
भक्तस्थल लिंग व्यक्तित्व विकास की पहली सीढ़ी
भवजन्म, इह संसार
भवि जन्म जाल में फँसा सांसारिक व्यक्ति, जो लिंगायत नहीं ।
भेरुंड दो सिरवाला पक्षी
महेश्वरस्थल लिंग व्यक्तित्व विकास का दूसरा स्थल । निष्ठा ही इसका लक्षण है।
मार्ग क्रिया लिंग स्थूल शरीर में होनेवाली क्रियाएँ। वे हैं भक्त, महेश, प्रसादी स्थल के आचरण । आचरणों के द्वारा आराधन करने का लिंग ही मार्ग क्रिया लिंग |
मुखलिंग मुखरूपी लिंग
लिंग सकील किस स्थल के अंग को किस स्थल के लिंग को पूजना चाहिए, वह लिंग किस चक्र में है आदि संबंध तानेवाला ही लिंग सकील है ।
लिंग साराय लिंग का तात्पर्य, लिंग का मुख्यांश
लिंगवेदी लिंग का मर्म जाननेवाला
लिंगांग लिंग (परशिव) + अंग - अनुभावी शरण
लिंगांग सामरस्य लिंग (शिव) - अंग - अनुभावी शरण शिवभक्त, इनमें सामरस्य
लिंगानुभवी शिवतत्वज्ञानी, शिवानुभव
शक्ति शिव में अंतर्गत चैतन्य
शक्ति विशिष्टाद्वैत जीवात्मा और परमात्मा के सामरस्य को प्रतिपादित करनेवाला सिद्धांत
शरणस्थल लिंग व्यक्तित्व का पाँचवाँ स्थल । इसका लक्षण है आनंद ।
शिवाचार शिवभक्ति, शिवप्रज्ञा, शिवोपासना
श्रीशैल आंध्रप्रदेश कर्नूल जिले का पवित्र शैवक्षेत्र है, जहाँ श्रीशैल मल्लिकार्जुन / मल्लिनाथ देव का मंदिर है।
षड्क्षर मंत्र ॐ नमः शिवाय
षड्विध भक्ति षड्स्थल के लिए आधार बनी श्रद्धा, निष्ठा, अवधान, अनुभाव, आनंद और समरस रूपी भक्तियाँ |
षड्स्थल भक्त, महेश, प्रसादी, प्राणलिंगी, शरण, ऐक्य |
संयक् ज्ञान अनुभाव से प्राप्त ज्ञान ।
सप्तद्वीप जंभु, शल्मलि, कुश, क्रौंच, शाक, पक्ष और पुष्कर ।
सप्तधातु रस, रुधिर, मांस, मेधस, अस्थि, मज्जा, वीर्य ।
समयाचार किसी भी एक मत या धर्म के अनुकूल आचरण ।
समयाचारी किसी भी एक मत या धर्म के सिद्धांतों के अनुरूप आचरण करनेवाला धार्मिक व्यक्ति, भक्त या आचार्य या अनुभावी ।
सुषुम्न मनुष्य की दस प्रकार की नाड़ियों में एक । यह इडा और पिंगल नामक नाड़ियों के बीच में रहता है।
सोहं वही मैं हूँ, जीवशिवैक्य अथवा अंग लिंग विषयक अद्वैत भावना ।
स्थावर लिंग स्थिरलिंग, स्थापित लिंग |
स्थावर लिंग स्थिरलिंग, स्थापित लिंग |
स्वपच अस्पृश्य, चांडाल
स्वयाद्वैत द्वैत रहित स्थिति ।
Previous शरण वचन 1591_1682 वचन साहित्य Next