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लिंगायत धर्म संस्थापक : दार्शनिक महात्मा बसवेश्वर

डा: श्रिमति रेखा एम् कोटुर्,
तिसरा क्रास्, शांभवि काल्नि,
गांधिनगर धारवाड ५८०००४

प्रस्तावना

आधुनिक युग मे एक् ओर आदमि वैग्यानिक उपलब्दियों के बल पर चरमशिखर पर पहुंच गया है, वंहि दुसरि ओर् संप्रदायिकता का विष आदमि को म्रुतपाय कर् रहा है. जंहा धर्म मनुष्य को जोडता है, वंहि साप्रदायिकता ने मानवता को विभाजित कर दिया है. एक संप्रदाय दुसरे संप्रदायके विधि-विधानो कि, पुजा कि, उपासना और् कर्म-कांड कि खिल्लि उडाता है. धर्म के असलि स्वरुप को त्यागकर सांप्रदायिक विद्देश का, सांप्रदायिक वैमनस्य का, क्रुर कर्म-कांडो का प्रचलन अत्याधिक हो रहा है. इस मे आदमि के पतन कि कहानि गडि है. धर्म हमे पशुता का नहि मानवता का पाठ पडाता है.

धर्म तात्विक द्रुष्टि से पुजा, उपासना और कर्मकांड का प्रदर्शन नहि, उदात्त जिवनमौल्लो कि चारित्रिक संस्क्रुति और् साधना का आचरणिय संविधान है. उस परिप्रेक्श्य मे भारतिय इतिहास मे एक नुतन धार्मिक श्रद्दा लिंगायतिजम् (लिंगायत / बसवधर्म) के इतिहास और् दर्शन के जनक महात्मा बसवेश्वर का 'बसव-तत्व' समय से बहुत आगे था. इसका संक्शिप्त परिचय आगे प्रस्तुत है.

धर्म एवम् रिलिजन

धर्म और् रिलिजन को प्राय: समान् अर्थ मे प्रयुक्त किया जाता है. 'रिलिजन' शब्द ग्रीक भाषा के 'रिलिजियो' शब्द से उत्पन्न है, जो मुलत: 'रेलिगारे' (बांधना) धातु से संबंध है. अर्थात् 'रिलिजन्' किसि समाज मे विभिन्न मानवो को बांधने वालि अनुस्ठान् विधियो का धोतक है. इससे भिन्न 'धर्म' शब्द् 'रिलिजन' कि अपेक्शा अधिक व्यापक् तथा बहु आयामि है. 'धर्म' शब्द-ध्र् ध्रुत् धारणँ- 'धरणात् धार्मइत्याहु:' से बना है. यह ईश्वर निर्मित उन नियमो और् सिद्धंतो को घोषित करता है जो समस्थ विश्व को प्रतिश्ठा प्रदान करनेवाले, स्थिर तथ धारण करनेवाले होते है.

'धर्म' शब्द् अत्यंत प्राचिन काल से प्रयुक्त होता रहा है. रुग्वेद मे इसका प्रयोग कई बार् हुवा है. धर्म का धारणा करना प्रत्येक वस्तु के लिये अत्यंत आवश्यक है. अनयथा उस वस्तु का स्वभाव नश्ट हो जयेगा. जिस प्रकार अग्नि का धर्म दाहकता और् प्रुथ्वि का धर्म गंध है, उसि प्रकार मनुष्य का भि धर्म है जिसे धारण् कर व्यक्ति 'मानव' कहलाता है.

भारतिय संधर्भ मे धर्म जिवन् के सभि पक्शो को प्रभावित् करता है. उस्मे सामाजिक और् वैयक्तिक प्क्श् के साथ-साथ ज्नान, भक्ति और् क्रिया इन् तिनो का सुंदर समन्वय है. यंहा धर्म केवल उपासना, पुजा, इश्वर पर विशवास् या किसि क्रिया और् स्वरुप को धर्ममय किया जा सकता है.

मानव जिवन मे धर्म का स्थान एवम् महत्व

धर्म का मानव् जिवन मे अत्यंत महत्वपुर्ण् स्थान् है. यदि धर्म न् होता तो मनुश्य कि पश्विक् और् स्वर्थमय प्रव्रुत्तिय इतनि उच्छ्हंखल्, अनियंत्रित और् भयावह हो जाति कि वह सिंह और् भेडिये जैसे खुखार् जानवरो से भि अधिक हिंसक तथा दैत्यंयो से भि अधिक दानवीय हो जाता है. धर्म मनुष्य कि पाशविक प्रव्रुत्तिंयो को नियमित और् संयामित करता है तथा उसे श्रेष्ट बनाता है. एक भारतिय चिंतक ने ठिक कहा है कि -आहार, निद्रा, भय, मैथुनंच सामांयमेतत् पशुभीर्नराणाम्. धर्मो हाय् तेषामधिको विशेषो, धर्मँण हिन पशुभ्ही स्माना. अर्थात् मनुष्य पशुवो कि तरह मुल प्रव्रुत्तियो के साथ जन्म लेता है, परंतु पशु जहा का था वंहि रह जाता है. जबकि धर्म के कारण मनुष्य आहार, निद्रा, भय और् मैथुन कि प्प्राक्रुतिक् अवस्थाअ के उपर उटकर मनुष्यत्व और् देवत्व को प्राप्त कर्ता है, धर्म उन्नयन और् श्रेयस् कि प्राप्ति का आधार है. धर्म से ह मनुष्य अपने स्वार्थ् काम, क्रोध, घ्रुणा, हिंसा तथा विध्वेष, आदि निम्न व्रुत्तियो पर विजय पाता है. और् महान बनता है. जिस्का जिवन जित्ना यथार्थ धर्म के अनुकुल रहता है, वह उतना महान बनता है.

डा राधाक्रुषनन् ने ठिक कहा है कि -धर्म हमारि अंतरात्मा तक पहुंचता है. हमे बुरायियो से संघत्ष करना सिखाता है. धर्म एक प्रकार कि सामाजिक परिपुर्णता का प्रयास है.

धर्म महज रिति-रिवाजो का पालन या धर्म-ग्रंथो तथा पुरुषों के आदेशों का अंधानुसरण् या अंध-भावुकता नहि है. क्रुरत, हींसा, विषमता और् घ्रुणा के लिये धर्म मे कोइ स्थान नहि है. सभि धर्म 'स्र्वॅ बवंतु सुखिन:, की भावना से अनुप्लावित है. धर्म का यथार्थ् स्वरुप् मानव-मानव के मध्य प्रेम तथा विश्व मे शांति कि स्थापन मे महत्तर योगदान कर सकता है, धर्म मानव जिवन् कि समरस बुराइयो को दुर कर उसे अखण्ड् से अनंत से, पुर्ण से, विराट् से संभंदित करता है.

लींगायत का अर्थ

“लिंगमायतिर्यस्य स लिंगायत्:” यह इसकि व्युत्पत्ति है.

लिंगायत शब्द 'लिंग और् 'आयत' इन दो शब्दो का संयुक्त शब्द है. इन शब्दो का विग्रह करे तो 'लिंगेन आयत्: लिंगायत्' इस तरह एक नामपद होता है. इसका अर्थ होता है लिंग के साथ सदा युक्त रहनेवाला अर्थात् लिंगधारि होता है. 'लिंग' शब्द मे 'लि' यह वर्ण शक्तिवाचक् है, 'ग' यह वर्ण चैतंयवाचक् है. शिव -शक्ति का विशिष्ट 'लिंग' है. जिस्मे चरच्रात्मक जगत कि रचना होति है और् प्रलयकाल मे जिस्के साथ 'एकरुप' हो जाता है.

विश्व के भितर्-बाहर व्याप्त परमात्मा विराट रुपि है. वह अंतर्यामि भि और् अतीत भि. ऐसा परमात्मा लघु अर्थात छोटे आकार मे ईश्टलिंग विष्वरुपि महालिंग का लघुरुप है. जिस चैतंयमय परवस्तु से सचारचर् कि स्रुष्टि विकसित् हुइ है, जो लीलामग्न है, जहा छिप जाति है, ऐसे सत्-चित्-आनंद् रुपि परमात्म को लिंगायत् प्रक्रिय के 'लिंग' कहा जाता है. ऐसे परवस्तु को विष्व के आकार् गोलाकार मे लघु बनाकर् अंगरुप जो धारण करता है वहि लिंगायत है. लिंगायत को लिंगवंत भि कहा जाता है. जो लिंग को अंग पर घारण नहि करता वह लिंगवंत नहि है.

लिंगायत धर्म संस्थापक- महात्मा बसवेश्वर

लिंगायत धर्म एक सुधारित धर्म है, इसमे एक रिति का सिद्धांत और् एक् ह दर्शन् है. इस सुधाअर्णात्मक लिंगायत धर्म संस्थापक् धर्म गुरु महात्मा बसवेश्वर् है . परंपरागत् कइ आचरणो का तिरस्कार करके बसवेश्वर ने एक नवरिति कि भक्ति का प्रारंभ किया. इसिलिये चेन्नबसवेश्वर् ने कहा है-'तुमहि प्र्थमाचार्य हो, तुम लिंगाचार्य हो; (व्.कक्र१4 ) अल्लमप्रभु अपने वचन मे कहते है-

(अल्लमप्रभु -व.क्र २१1 )
"मैने आयत मे पुर्वाचारि को देखा
स्वायत मे पुर्वाचारि को देखा
सन्निहित मे पुर्वाचारिको देखा
गुहेश्वर् लिंग मे पुर्वाचारि
संगन बसवण्णा के श्रिपाद को
प्रप्र्णाम् करता हुं "

लिंगायत धर्म के प्रमाणरुप इश्टलिंग चिंह को प्रस्तुत करनेवाल विश्वगुरु बसवेश्वर है. वचन् साहित्य रुपि धर्मिक सम्विधान देनेवाले बसवेश्वर है. सांप्रदाहिक योगो से भिन्न द्रुश्टियोग प्राधांया त्रातक योग देनेवाले बसवेश्वर है. उनका नाम "श्रि गुरुबसव लिंगाय नम्: " मंत्र बना है. कइ शरणोके वचनो मे उप्र्युक्त सभि बातो को स्प्श्ट रुप् से देखते है.

(चन्नबसवेश्वर वचन् क्रमांक ७2 )
१. "जगदाराध्य बसवण्ण है, प्रथम गुरु बसवण्ण है"
२. अनिमिषया को लिंग प्रदान करनेवाले बसवण्णा है"

(अक्कमहादेवि वचन् क्र्मांक ३००१, १९७)
१. "जग-हितार्थ के लिये बसवण्णा प्रथ्वि पर अवतारित हुए "
२. "देवलोक के लिये, नागलोकके लिये, मर्थ्यलोक के लिये मेरुगिरि, मंदार्गिरि सभि के लिये बसवण्णा देव".

(अल्लमप्रभुदेव वचन क्रमंक २१४)
१. हुआ बसवा, आपसे गुरु स्वयत मुझे
हुआ बसवा, आपसे लिंग स्वायत मुझे
हुआ बसवा आपसे जंगम स्वायत मुझे".

(मुक्तायक्क वचन क्रमांक १०)
मेरे भाव के लिये गुरु बना बसवण्ण
मेरे द्रुश्टि के लिये लिंग बना बसवण्णा,
मेरे ग्यान के लिये जंगम् बना बसवण्ण"

इस प्रकार समकालिन शरणो के वचनो से लिंगायत धर्म के आदिगुरु महात्मा बसवेश्वर है यह स्पश्ट हो रहा है. बाद के शरण् संप्रदाय के कुछ् कवियो के कथन इस् प्र्कार है-

प्रथमाचर्य- पालकुरिके सोम्नाथ (स्न् ११६५)
विरशैव निर्णय - मग्गेय मायिदेव (सन् १४३०)
शट्स्थल नीर्णायक - गुब्बि मल्लणार्य ९सन् १५१३)

आधुनिक् समय के अनुसधांन कर्ता, विद्वानो तथा साहित्यकारो ने महात्म बसवेश्वर लिंगायत धर्म के संस्थापक है इस्के बारे मे संशोधन् करके अपने विचार इस्प्रकार व्यक्त किए है.

१. डा नंदिमठ् के अनुसर "लिंगायत धर्म कि स्थापना पंचाचर्य ने किया है यह एक सांप्रदायिक विस्वास् है लेकिन् ऐतिहासिक सत्य नहि", बसवपुर्व मे विरशैव के बारे मे कोइ विश्वशनिय साहित्य प्रप्त नहि है. इस्लिये डा नंदिमठ के अभिप्राय को केंद्र मानकर् महात्म बसवेश्वर संस्थापक् है यह बात प्रत्यक्श् रुप् से सुचित् करति है.
२. प्रो. एस एस बसवनाळ जि ने 'वीरशैवद हुट्टु मत्तु बेळवणीगे' (वीरशैव का जन्म और् विकाश) इस ग्रंथ मे " लिंगायत के मुल प्रणॅता महात्मा बसवेश्वर है" इस्का प्रतिपादन किया है.
३. डा पि. बि. देसाइ द्वारा रचित "बसवेश्वर अंड् हिस टैंस् इस ग्रंथ मे उंहोने लिखा है, कि, शिलालेख, पुराण, काव्य, वचन-साहित्य सभि प्रकार के साधनो द्वारा पता चलता है कि महात्मा बसवेश्वर लिंगायत धर्म संस्थापक् है.
४. डा हिरेमल्लुरु इशवरन् के 'लिंगायत धर्म: संस्क्रुति और् समाज', इस ग्रंथ मे तथा अनेकानेक विद्वान् और् अनुसंधान् करता -डा पावव्टे सिद्रामप्पा , डा फ गु हळकट्टि, श्रि हर्डेकर मंजप्पा , श्रि उत्तंगि चन्नप्प, श्रि हलेपेटे चिंतामणिराव्, श्रि, एम् आर श्रिनिवास्मुर्थि. श्रि आर आर दिवाकर, श्रि पाटिल् पुट्टप्पा डा सिद्दय्य पुराणिक. डा जवरेगौड आदियो ने महात्मा बसवेश्वर लिंगायत धर्म के संस्थापक् है. इसका प्रतिपादन् किया है.

इस् प्रकार यह सभि कथन स्प्श्ट करते है कि बसवेश्वर लिंगायत धर्म के संस्थापक, निर्मापक धर्मगुरु है. बसवभानु कि तत्व प्रभा मे चमक उठे प्रभुदेव , अक्कमहादेवि, सिद्दरामेश्वर आदि कइ शरण आदि शरण' है. एक सौ एक विरक्त जंगम साम्रट सिद्धलिंगेश्वर, षण्मुखस्वामि, सर्वज्न आदि मध्यकालिन शरण् है. बाललील महांत शिवयोगि, अथणि शिवयोगि, आदि नुतन शरण् है. ये सभि लिंगायत धर्म के गुरु है किंतु धर्म गुरु नहि. केवल् बसवेश्वर ह धर्मगुरु है. प्रथमाचारि है. इस प्रकार षटस्थल मार्ग के मुल करता बसवेश्वर हा शिवयोग के प्रथमाचार्य है. क्योंकि शिवयोग साधन ईष्टलिंग के बिन संभव नहि है. और् इस ईष्टलिंग के जनक बसवेश्वर ह है. उप्रयुक्त वचनो मे देखते है कि समकालिन् शरणोने बसवेश्वर को गुरु, लिंग, जंगम, प्रसाद, पादोदक के स्थान पर् रखकर पुजा कि है. बसवेश्वर से पुजित अल्लमप्रभु भि अपने वचन मे बसवेश्वर को गुरु, जंगम का स्थान प्रदान् कर उनकि वंदना किया है. वचन साहित्य मे अल्लम को ईष्टलिंग प्रदान किये गुरु अनिमिष योगि के नाम् से वर्णित् और् कोई नहि, वे बसवेश्वर है. अनिमिष योगि नामपद बसव के लिये प्रयुक्त अन्वर्थक रुप से दिया नाम है. ईस् प्रकार लिंगायत धर्म के संस्थापक्, आदिगुरु, पुर्वाचरि, प्रथमाचर्या बसवेश्वर है. बसवेश्वर के लिये कोई गुरु नहि है, वे स्वयंक्रुत गुरु है. अंतर्ग्यान उनके लिये गुरु है.
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