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'लिंगायत' एक धर्म है

’लिंगायत’ एक धर्म है, जाति नहिं। जन्म के आधार पर मानवों को उच्च-नीच में विभाजित करना जाति है और यह घोषित करके कि जन्म से सभि समान है, जाति, वर्ग-वर्ण भेद के बिना सभि आसक्त लोग दिक्षा संस्कार जो पाने आ सक्ते हैं उसे धर्म कहा जाता है। इस धार्मिक संस्कार से प्राप्त ठहराव से व्यक्ति श्रेष्ट या कनिष्ट बन सक्ता है - यह धर्म है। लिंगायत धर्म में जन्म से किसी को भी ऊँच-नीच न मानकर, यह बोध कराते हुए कि ’पिंड के अस्तित्व का आश्रय गंदगि के बिना कुछ और नहीं’ तथा यह ज्ञान कराया जाता है कि ’भूलनेवाला मानव है और जाननेवाला शरण है’ तथा भूले हुए मानव को ज्ञानी शरण बनने के लिए आवश्यक दीक्षा संस्कार तथा पूजा स्वातंत्र्य सब को प्रादान करता है। इसी कारण से यह एक धर्म है।

किसी भि सैद्धान्तिक घटना का (Constitution) धर्म बनने के लिए उसी के अपने ही एकादश लक्षणों को होना अवश्यक है। यह लक्षण इस प्रकार है - जीव, जगत् और ईश्वर के परस्पर संबंध की विवेचना का सिद्धान्त, उस सिद्धान्त को कार्यान्वित करने के लिए एक साधना द्वारा सिद्धान्त के सांक्षात्कार को सूचित करनेवाला अनुभांव पूर्णदर्शन, इस तत्व के अनुयायी बनने हेतू तडपनेवाले व्यक्ति की लक्ष्य सिद्धि के लिए आवश्य्क दीक्षा-संस्कार, इस समाज के अनुयायि को अपने समाज तथा अन्य समाजों से जिन तत्वों के आधार पर मिल जुलकर जीवन यापन करना है, उनको सूचित करनेवाला समाजशास्त्र नीतिशास्त्र यह सूचित करता है कि मानव अपनी किन क्रियाओं से दूसरों का हित कर सकते हैं; तथा उनका व्यवहार कैसे होना चाहिए। अर्थ शास्त्र बतलात है कि व्यत्कि स्वयं समाज और राष्ट्र का एक अंग है और राष्ट्र की आर्थिकाभिवृद्धि में किस प्रकार भाग लेना है; अन्य समाजों के आचरणों से भिन्न आचारणवालि संस्कृति; इन सबसे सामाविष्ट एक परंपरा, इन सब की विवेचना करनेवाला साहित्य, तथा इस प्रकार के कई तत्वों के पथ बतलानेवाला धर्म गुरु जिसमें उपर्युक्त ग्यारह लक्षण हैं वह धर्म है, वरना वह जाति य मत (sect) है।

इस दृष्टि से देखा जाय तो लिंगायत धर्म में शुन्यसिद्धांत (शक्तिविशिष्टद्वैत) नामक एक सिद्धांत है, शिवयोग नामक साधाना है, षटस्थल नामक दर्शन है, लिंग दीक्षा रुपी एक धर्म संस्कार है, अप्राकृत तथा अतिवर्णाश्रम वाला एक सामाजशास्त्र है, मानवीय नीतिशास्त्र है, और दासोह देवधाम है; अन्य समाजों से भिन्न शरण संस्कृति है, मंत्रपुरुष बसवण्णा से आरंभ होकर अव्याहत रुप से चलनेवाली शरण परंपरा है, इन सबको स्पष्ट रुप से अभिव्यक्त करनेवाला विवेचनात्मक स्वतंत्र वचन साहित्य है, धर्म के आद्य, पथ निर्मापक, वचन साहित्य संविधान कर्ता बसवण्णा नामक धर्म गुरु है। इन सब कारणों से यह लिंगायत धर्म, गडरिया, हरिजन, कृषिक, रेड्डी नायक, देवांग आदि की तरह जाति न रहकर वह एक स्वतंत्र धर्म बना है। जाति को त्यागकर धर्म को अपना सक्ते है। एक गडरिया ईष्टलिंग दीक्षा पाकर लिंगायत बन सकता है। जाति जन्म से प्राप्त होति है तो धर्म संस्कार से. लिंगायत धर्म संस्कार से बना हुआ है। उसमें प्रवेश करने का अधिकार हर एक व्यक्ति को है। वह किसी भि जाति की संपत्ति नहीं है।

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