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वचन साहित्य

लिंगायत धर्म का धर्मग्रंथ (संविधान)

प्रत्येक धर्म-समाज के लिए आधार साहित्य चाहिए । उस तत्व के अनुयायियों के बिन बिखरे संघटित रूप से बचे रहना तो उन सबको एक सूत्रात्मक साहित्य की आवश्यकता है । इसाइयों के लिए बाइबल, मुसलमानों के लिए खुरान जैसे है वैसे ही लिंगायत धर्म का आधार साहित्य वचन शास्त्र है । उसमें बसवण्णा के षटस्थल संबंधि वचन प्रधान और महत्व के हैं । लिंगायतों को यह जान लेना है कि बसवण्णा ही आदि, सकल आदि शरणों के वचन ही हमारी कथनी-करनि, आचार-विचार के मार्ग वतलानेवाला साहित्य है । बाद के तोंटद सिद्धलिंगेश्वर, षण्मुख स्वामि, मग्गेय मायिदेव आदियों के बचन आदि शरणों के तात्विक सूत्रों के भाष्य रूप में है। बाद आनेवाले शिवयोगी साहित्य, जैसे निजगुण, मुप्पीन षडक्षरी, सर्पभूषण, बाललीला महन्त योगी आदि कईं शिवयोगियों का साहित्य लिंगायत परंपरा में है । इसके अतिरिक्त बसव आदि प्रमथ से लेकर बाद के शरणों पर रचित पुराण-काव्य साहित्य भी है । इस विभिन्न साहित्य परंपरा के स्थान मान का निर्णय इस प्रकार का सकते हैं - बसव आदि प्रमथों का बचन साहित्य लिंगायत धर्म की पाट्य पुस्तके (Text Books) है । श्री सिद्धलिंगेश्वर, षण्मुख स्वामि, मग्गेय मायिदेव आदियों का बचन साहित्य तो प्रथम श्रेणी के प्रमाण ग्रंथ (Reference Books) हैं । निजगुण, शिवयोगी शिवाचार्य आदि का शिवयोगी साहित्य द्वितीय श्रेणी के प्रमाण ग्रंथ हैं । हरिहर, राघवांक, चामरस आदियों से रचित सभी पुराण साहित्य तृतीय श्रेणी के प्रमाणित ग्रंथ है।

इस प्रकार विचार करके बसव आदि शरणों के वचनों की नींव पर अपने आचार-विचार कों रूपित करनेवाले ही सच्चे अर्थ में लिंगायत हैं । सिद्धरामेश्वर ने अपने एक वचन में कहा है।

(अ) हमारे आचार विचार के लिए हमारे पुरातनों के वचन ही आधार है
चाहे स्मृति समुद्र में गिर जाय, श्रुति वैकुण्ठ में जाय
पुराण अग्नि में गिर जाय, आगम सभि वायु में मिलजाय
हमारे शरणों के वचन; कपिल सिद्ध मल्लिकार्जुन
महालिंग के हृदय में ग्रंथि बने रहे।

(आ) हमारे एक बचन के पारायण के बराबर व्यास
के पुराण नहीं आ सक्ते ।
हमारे एक सौ आठ वचनों की बराबरी शतरुद्र
आदि नहीं कर सकते
हमारे सहस्रवचन की बराबरी
लक्ष गायत्री जप नहीं कर सकते कपिल सिद्ध मल्लिकार्जुन

श्री सिद्धरामेश्वर के कथनानुसार लिंगायत की कथनि - करनी के लिए वचन ही आधार हैं । अनुयायियों को ऊन वचनों का पारायण और अध्ययन करना चाहिए ।

इन वचनों के अध्ययन के फल स्वरूप स्वतंत्र विचार शक्ति को अपनाकर, लिंगायत को इस बात पर विश्वास कर लेना है की सत्यार्थ निर्णय में शास्त्र प्रमाण को अपेक्षा स्वानुभब प्रमाण ही श्रेष्ठ है । अत: वही सच्चा लिंगायत है जो स्वतंत्र रूप से विचार करके अंधविश्वास की अपेक्षा सत्य को, व्यक्ति प्रेम की अपेक्षा तत्व पेम को तथा शब्द प्रमाण की अपेक्षा गहरे अनुभव प्रमाण को श्रेष्ठ समझने लगता है ।

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