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लिंगायत धर्म एक-देवोपासन (एकेश्वरवाद) पालन करता है

एकेश्वरवाद: वह सिद्धान् है जहां 'ईश्वर के एकल स्वरूप की मान्यता प्राप्त है'

ब्रह्मा देव नहिं, विष्णु देव नहिं, रुद्र देव नहिं,
ईश्वर देव नहिं, सदाशिव देव नहिं,
सहस्रशिर, सहस्राक्ष, सहस्रपाद वाले विराटपुरुष देव नहिं,
विश्वतोमुख, विश्वतोचक्षु, विश्वतोबाहु
विश्वतोपाद वाले परमपुरुष देव नहीं,
सहज निरालंब ही स्वयं है ऐसा समझनेवाले महाशरण स्वयं ही देव है
हे अप्रमाण कूडलसंगम देव। /2453 [1]

ब्रह्मा, विष्णु आदि देव दानव मानवों को
लोभ ने पीड़ा देकर सताया था।
पवित्र व्रत-नियम, गुरुत्व के अनुसरण करनेवालों को भी
भ्रष्ट करके, उन्हे महत्व न देकर, हँसी का शिकार बनाया था।
इन सामथ्र्यवान पुरुषों को कष्ट देकर हराकर
आपको स्वयं विजय पाने का लोभ, यह कैसा?
इसपर विचार करने पर
शिव संबंधी, लोभ में आसक्त हो तो
शिव की आज्ञा लोभी को सताती है
शिव जिसपर प्रसन्न हो उन्हे, लोभ नहीं सताता है
उरिलिंगपेद्दि प्रिय विश्वेश्वरा। /1573 [1]

ब्रह्मा के पास, सरस्वती के रूप में माया पीछे पड़ी
विष्णु के पास, लक्ष्मी के रूप में माया भव की और मुड़ी।
रुद्र के पास, उमादेवी के रूप में माया ने
सिर और जाँघ में आकर सतायी।
तिल का तेल, काँटे की नोक, फूल का गंध बन
उन-उन लोगों के अंगों में अनबुझा प्रतीक बन
सतत सता रही है माया।
डंकी की अवाज़ बंद होने से पूर्व ही निश्चित कर लीजिए।
कालांतक भीमेश्वर लिंग को समझ सकेंगे तो। /1782 [1]

[1] Number indicates at the end of each Vachana is from the book "Vachana", ISBN:978-93-81457-03-0, Edited in Kannada by Dr. M. M. Kalaburgi, Hindi translation: Dr. T.G. Prabhashankar 'Premi'. Pub: Basava Samiti Bangalore-2012.

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