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कूडलसंग के शरण स्वतंत्र हैं और धीर भी हैं

कोई रूठेगा तो हमारा क्या कर लेगा?
सारा गाँव रूठे तो हमारा क्या कर लेगा?
हमारे लड़के को कन्या न दें!
हमारे कूत्तों को थाली में खाने न दें!
हाथी पर सवार को
क्या कुत्ता काटेगा?
जब तक हमारे कूडलसंगमदेव साथ हैं? /51 [1]

जंबूद्वीप नवखंड इस पृथ्वी में
सुनो जी दो व्यक्तियों की भाषा!
लय की भाषा भगवान की
जीतने की भाषा भक्त की
सत्य रूपी तेज हथियार लेकर
सद्‌भक्त जीत गए जी,
हे! कूडलसंगमदेव। /200 [1]

मैं केवल वृत्ति से सैनिक नहीं हूँ,
मैं अपने मालिक के लिए प्राण देनेवाला सेवक हूँ।
हारकर भागनेवाला योध्ध मैं नहीं हूँ,
सुनो, कूडलसंगमदेव,
’मरण’ ही महानवमी है। /206 [1]

मैं कृषि करता हू तो गुरु पूजा के लिए
मैं व्यापार-व्यवहार करता हूँ तो लिंगपूजा के लिए
मैं परसेवा करता हूँ तो जंगम दासोह के लिए
मैं जो भी कार्य करता हूँ उसका फल
आप मुझे देंगे अवश्य यह विश्यास है मेरा।
आपका दिया हुआ धन आपके लिए
व्यय करूँगा न कि औरों के लिए
आपकी निधि आप को ही दूँगा
आपकी शपथ हे! कूडलसंगमदेव। / 247 [1]

कल जो होना है आज ही हो जाय।
आज जो होना है अभी हो जाय।
इसके लिए कौन भयभीत होते हैं?
इसके लिए कौन दु:खी होते हैं?
’जातस्य मरणं धृवं’ कहा गया है, इसलिए
हमारे कूडलसंगमदेव का लीखा हूवा
वीधि लेखा हरिब्रह्मादि भी मिटा नहीं सकते। /२४९ [1]

निष्ठुर न्याय का पक्षपाती हूँ;
किसी के दाक्षीण्य को मानता नहीं हूँ।
लोकविरोधि हो सकता है परंतु
शरण किसी सॆ भयभीत नहीं;
क्योंकि शरण कूडलसंगमदेव के राजतेज में रहता हूँ। /266 [1]

घर देखो निर्धन लगते हैं,
मगर मन देखो तो धनवान लगते हैं,
अंगना के स्पर्ष पर भी जो शुद्ध है,
वह सर्वेंद्रिय जित है।
संग्रह को मौका नहीं तत्‌काल जो है उतना ही।
कूडलसंग के शरण स्वतंत्र हैं और धीर भी हैं। /313[1]

संसार रूपी जंगल में बाघ है, भालू हैं,
शरण तो भयभीत नहीं होता, कभी भी नहीं,
महाधैर्यशाली है शरण वह कभी भी भयभीत नहीं होता
कूडलसंग के शरण निर्भीत हैं। /373[1]

उत्तम घोड़े को चाबूक मारेंगे क्या?
नगर का मालिक बनने के बाद, जाति गोत्र देखते हैं क्या?
परम सुज्ञानी के लिए प्राण का मोह है क्या?
लिंग संगी होकर शरण की कोई निंदा करें तो संदेह क्यों करे?
इहलेकवाले निंदा करे तो विरुद्ध क्यों हो?
अमुगेश्वर लिंग को जाननेवाले शरण को
कोई प्रशंसा करे तो क्या, कोई निंदा करे तो क्या? /1266[1]

[1] Number indicates at the end of each Vachana is from the book "Vachana", ISBN:978-93-81457-03-0, Edited in Kannada by Dr. M. M. Kalaburgi, Hindi translation: Dr. T.G. Prabhashankar 'Premi'. Pub: Basava Samiti Bangalore-2012.

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