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लिंगायत स्वर्ग, नरक को नही मानता

देवलोक - मर्त्यलोक भिन्न नहिं रे भाई।
सत्य कहना ही देवलोक है,
मिथ्य कहना ही मर्त्यलोक,
आचार ही स्वर्ग है अनाचार ही नरक है,
कूडलसंगमदेव आप ही इसका प्रमाण हैं। /231 [1]

देवलोक - मर्त्यलोक क्या भिन्न कहीं है?
इसलोक में फिर अनंतलोक?
शिवलोक है शिवाचार
शिवभक्त का वासस्थान ही देवलोक है,
शिवभक्त का अंगन ही वाराणासि है
शिवभक्त का काया ही कैलास है
यही सत्य है हे कूडलसंगमदेव। /232 [1]

कैलास, मर्त्यलोक कहते हैं
कैलास क्या है? मर्त्यलोक क्या है?
वहाँ की चाल भी एक ही है
यहाँ की चाल भी एक ही है
वहाँ की बोल भी एक ही है
यहाँ की बोल भी एक ही, देखो जी।
कैलास के लोगों को देवता कहते हैं
मर्त्यलोक वालों को महागण कहते हैं।
सुरलोक में सहस्रों वर्षों तक मिटते नहिं कहते हैं
नरलोक में मर मरकर जन्म लेते हैं कहते
इसे देख हमारे शरणों ने
सुरलोक और नरलोक को तृणसमान मानकर
भवसंसार पार करके, अपने अपने जन्म के बारे में जानकर
महा प्रकाश में समाकर, उस प्रकाश में निराकार होकर
लीन हो गये, अप्पण्णप्रिय चेन्नबसवण्णा। /1361 [1]

करस्थल में लिंग हो तो
वह हस्त ही कैलास है, वह लिंग ही शिव है।
इसलिए यहाँ पर ही है कैलास।
इससे अलग कोई चाँदी का पर्वन ही कैलास समझकर
वहाँ पर के रुद्र ही शिव समझकर
कैलास जाने आने का भ्रम न रखना सुनो, भाई।
काया के अनुग्रह लिंग में श्रद्धा न हो तो
और कहाँ का विश्वास?
एकाग्रता के बिना विभक्त होकर नष्ट न हो जाओ, सुनो भैया
अंग में लिंगांग का संग जानकर
अंतरंग, बहिरंग, एक होकर
अग्निशिखर के संग में कपुर जलने के जैसे
सर्वांग में लिंग के स्पर्ष से
अंगभाव मिटकर, लिंगभाव में तल्लिन होने पर
उससे प्राप्त सुख उपमातीत है, हे सौराष्ट्र सोमेश्वर। /1482 [1]

[1] Number indicates at the end of each Vachana is from the book "Vachana", ISBN:978-93-81457-03-0, Edited in Kannada by Dr. M. M. Kalaburgi, Hindi translation: Dr. T.G. Prabhashankar 'Premi'. Pub: Basava Samiti Bangalore-2012.

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