लिंगायत पंचसूतक नही मानता
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जहाँ लिंग है, वहाँ मैल कहाँ?
जहाँ जंगम है, वहाँ कुलभेद कहाँ?
जहाँ प्रसाद है, वहाँ जूठन कहाँ?
अपवित्र बात बोलने का सूतक ही पाप है,
निष्कलंक निजैक्य त्रिविध निर्णय
हे! कूडलसंगमदेव, आपके
शरणों के विना औरों के लिए नहीं। /431 [1]
खाना खिलाना शिवाचार है
बेटी का संबंध करना कुलाचार है, ऐसा
कहनेवाले अनाचारि की बात नहीं सुनी जाती।
विप्र से अंत्यज तक सभी शिवाभक्त समान है
इसलिए बेटी का संबंध करना सदाचार है।
अन्य सब अनाचार है।
वह इसप्रकार है:
स्फटिक के घडे में कालादोष ढूँढने के समान
मीठे में कड़वापन ढूँढने के समान
रजसूतक, कुलसूतक, जननसूतक
प्रेतसूतक, उच्छिष्टसूतक माननेवाले भक्त को
न गुरु हैं, न लिंग हैं, न जंगम हैं, न तीर्थ प्रसाद हैं।
इन पंचसूतकों को नष्ट न करनेवाला, भक्त न बन सकता।
ऐसे सूतक नष्ट भक्तों में बेटि का संबंध करना सदाचार है
कूडलचेन्नसंगमदेव। /707 [1]
जाति का मैल छूटता नहीं, जनन का मैल छूटता नहीं
प्रेत का मैल छूटता नहिं, रज सूतक छूटता नहीं
जूठन मैल छूटता नहीं, भ्रांति सूतक छूटता नहीं
वर्ण मैल छूटता नहीं,
तब ये कैसे भक्त है?
लेपन कर क्षुद्रदेवता बनाकर
मुँह में गुड़ लेपन करने से
सद्गुरु लिंग नाक काटे बिना रहेगा क्या?
जंगली आग के हाथ में घास
कटवाने के समान होनी चाहिए भक्ति।
पीछे न घास की ढेर, न आगे घास
इसलिए कूडलचेन्नसंग का भक्तिस्थल
आपके शरण को छोड़कर अन्यों को संभव नहिं। /777 [1]
[1] Number indicates at the end of each Vachana is from the book "Vachana",
ISBN:978-93-81457-03-0, Edited in Kannada by Dr. M. M. Kalaburgi, Hindi translation:
Dr. T.G. Prabhashankar 'Premi'. Pub: Basava Samiti Bangalore-2012.