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लिंगायत धर्म साहित्य "आद्धशरणों के वचन पारस है"

आद्धशरणों के वचन पारस है रे भाई!
यह सदाशिव नामक लिंग है, उस पर विश्वास करो रे,
विश्वास करते ही तुम विजयी हो भाई!
होंठ को कड़वे, पेट को मीटे,
कूडलसंगम के शरणों के वचन
नीम के स्वाद की तरह है भाई! /39 [1]

वेद को म्यान में रखूँगा
शास्त्र को बोड़ी पहनाऊँगा,
तर्क की पीठ का चमड़ा निकालूँगा
आगम का नाक काटकर रखदूँगा, देखोजी!
हे! महादानी कूडलसंगमदेव।
मैं मादार (मोचि) चन्नय्य के घक का पुत्र हूँ। /359 [1]

वेद थरथरा उठे, शास्त्र मार्ग से हट गये,
तर्क मौन हो गया, आगम सरक गये,
ये सब मोची (मादार) चन्नय्य के घर
कूडलसंगय्या का प्रसाद सेवन के कारण हूआ। /360 [1]

वेद पढने से क्या हो?
शास्त्र सुनने से क्या हो?
जप करने से क्या हो?
तप करने से क्या हो?
कूछ भी करने से क्या हो?
जब तक मेरा मन
कूडलसंगय्या को न छूयेगा? /361 [1]

शास्त्र को श्रेष्ठ कहूँ? मगर वह कर्म की उपासना करता है,
वेद को श्रेष्ठ कहूँ? वह प्राणि वध का समर्थन करता है,
श्रीति को श्रेष्ठ कहूँ? वह सामने रखकर ढूँढता है,
उनमें कहीं भी आप नहीं है, इसलिए,
त्रिविध दासोह को छोड अन्यत्र
कहीं दीखाई नहीं देते
कूडलसंगमदेव। /364 [1]

अज्ञान रूपी झूले में
ज्ञान रूपी शिशु सुलाकर
सकल वेद शास्त्र रूपी रस्सी से बाँधकर झूला,
झूलाती हूई झूला,
लोरी गा रही है, भ्रांति रूपी माई!
जबतक झूला न टूटे, रस्सी न कटे
लोरी बंद न हो
तबतक गुहेश्वर लिंग के दर्शन नहीं होंगे। /447 [1]

वेद जो है ब्रह्मा के ढोंग हैं
शास्त्र जो है सरस्वति के व्यर्थ का खेल हैं
आगम जो है ऋषि के मुग्धखेल हैं
पुराण जो है पुर्वजों के व्यर्थखेल हैं
यों इन्हें समझानेवलों का निराकरण कर
अपने सत्य में जो होगा स्थापित
वह गुहेश्वर लिंग में होगा शुद्ध लिंगैक्य है। /607[1]

वेद प्रमाण नहीं, शास्त्र प्रमाण नहिं,
शब्द प्रमाण नहीं, भाई लिंग के लिए
अंग संग के मध्य में छिपकर
जीवन बिताया गुहेश्वर, आपके शरण ने। /608[1]

वेद पठन का विषय है
शास्त्र हाट-बाज़ार की खबर है
पुराण गुंडों कि गोष्ठि है
तर्क मेषों का द्वंद्व है
भक्ति, दिखाकर भोगने का लाभ है।
गुहेश्वर इन सबसे परे घन है। /609[1]

वेद समझा न सकने से उजड़ गए,
शास्त्र साधना न कर सकने से उजड़ गए,
पुराण पूर्ण न हो सकने से उजड़ गए
पूर्वज अपने आपको समझे बिना उजड़ गए,
उनकी बुद्धि उन्हे को खा गई,
ऐसे में, भला आपको कैसे समझ सकते है गुहेश्वर? /610 [1]

हमारे एक वचन-पारायण के आगे
व्यास का एक पुराण भी बराबर नहीं
हमारे एक सों आठ वचनों के आध्ययन के सामने
शतरुद्रीय याग बराबर नहीं
हमारे वचनों के हजार पारायण के आगे
गायत्रि का लाख जप समा नहिं सकता।
के कपिलसिद्धमल्लिकार्जुन। / 969 [1]

वेद शास्त्र आगम पुराण सारे
धान कूटकर निकालि कनकी भूसा जाने जी!
इन्हे क्यों कूटते हो रे, इन्हें क्यों फटकते हो?
इधर-उधर भटकते मन पर रखोगे नियंत्रण
तो सारा शून्य है चेन्नमल्लिकार्जुन। /1225 [1]

वेदों के पीछे मत भागो, मत भागो
शास्त्र के पीछे मत घूमो, मत घूमो
पुराणोंके पीछे, पड़ो मत, पड़ो मत
आगमों के पीछे, तड़पो मत, मत तड़पो
सौराष्ट्र सोमेश्वर का आश्रय लेकर
शब्दजालों में पड़कर मत थको, मत थको। /1511 [1]

वेद ब्राह्मणों का उपदेश है
शास्त्र हाट की बात है
पुराण उपद्रवियों की गोष्ठि है,
आगम झुठे शब्द है,
तर्क, व्याकरण, कवित्व प्रौढ़ता
ऐसे लोगों के अंग पर लिंग विहीन भाषा है।
इसलिए
अपने को जाने अनुभवि से बडे महात्मा
नहीं है, कहते हैं कलिदेव। /1896 [1]

इस वचन के अनुभाव का अर्थ
सारे वेदागम-शास्त्र-पुराणों में है देखो।
इस वचन के अनुभाव में जो अर्थ नहीं है
सारे वेदागम-शास्त्र-पुराणों मे भी नहीं है, देखो।
इस वचन के अनुभाव का अर्थ
सारे वेदागम-शास्त्र-पुराणों की पहूँच के भी बाहर है, देखो।
इस वचन के अनुभाव का अर्थ
सकल वेदागम-शास्त्र-पुराणातीत है देखो,
अप्रमाण कूडलसंगम देव। /2441 [1]

[1] Number indicates at the end of each Vachana is from the book "Vachana", ISBN:978-93-81457-03-0, Edited in Kannada by Dr. M. M. Kalaburgi, Hindi translation: Dr. T.G. Prabhashankar 'Premi'. Pub: Basava Samiti Bangalore-2012.

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