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लोगों का टेढ़ापन आप क्यों सुधारते हैं? अपना टेढ़ापन को दूर करों

अपने पर क्रोध करनेवालों से आप क्यों क्रोध करें?
इसमें मुझे क्या लाभ होगा? उनकी क्या हानि होगी?
तन का क्रोध अपनी श्रेष्ठता की हानि है,
मन का क्रोध अपने विवेक की हानि है,
घर की आग घर को जला देति है,
न कि पडोसी के घर को,
हे कूडलसंगमदेव। /208 [1]

दुसरों की चिंता हमें क्यों? हमारी चिंता क्या काफी नहिं है?
कूडलसंगय्य कृपा दिखायेगा या नहिं?
यही चिंता बिछाने-ओढ़ने के लिए पर्याप्त है। /268 [1]

लोगों का टेढ़ापन आप क्यों सुधारते हैं?
अपना अपना तन संभाल लिए
अपना अपना मन संभाल लिए
पडोसी का दु:ख देख रोनेवालों पर
कूडलसंगमदेव कभि प्रसन्न नहिं होता। /352 [1]

[1] Number indicates at the end of each Vachana is from the book "Vachana", ISBN:978-93-81457-03-0, Edited in Kannada by Dr. M. M. Kalaburgi, Hindi translation: Dr. T.G. Prabhashankar 'Premi'. Pub: Basava Samiti Bangalore-2012.

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