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16. कायक की स्वीकृति-कारणिक (लेखाकार ) का पद

कायक की स्वीकृति-कारणिक (लेखाकार ) का पद

अगले दिन मंत्री बलदेव के साथ बसवेश्वर महल की ओर चले। उस दिन सबेरे राज महल के वित्त कार्यालय के बारे में मंत्री बलदेव का संदर्शन था । वार्षिक आय- व्यय का मंडन होनेवाला था । बसवेश्वर को वित्त कार्यालय में छोडकरें मंत्री महोदय सभा भवन में गये। वित्त मंत्री सिद्धरस को साथ लेकर बलदेवरस कार्य निर्वाह के लिए पधारने लगे थे।

बसवेश्वर एक ही जगह पर बैठे-बैठे ऊब गये। वहाँ से उठकर खामोशी से सब को देखते चले। वहाँ पर चालित रिश्वतखोरी का व्यवहार देखकर बसवेश्वर आश्चर्य चकित हुए।

चलते चलते कारिणिकशाला में आकर बैठे
ठाठ से लिखते गणकों को देखते देखते
करण संप्रति की संपदा के चोर गणकों को
उकोच बहाते चोर दण्डनाथों को ॥

उनके मन में बहूत दुख हुआ। वहाँ ठहर न सके। बसव उठकर उनके पास चले आये ।

"महोदय, दूसरों के जूठन के लिए हाथ पसारकर आत्मद्रोह कर लेने का नीच कार्य मत करो ....." इस उपदेश को सुनकर वे आपस में मुस्कुराकर हँसने लगे। उनमें से एक बोला...

"हे युवक, जो वेतन राज्य के खजाने से मिलता है उससे बीबी -बच्चों का पेट भरेगा क्या ? ऐसा दीख पडता है कि अभी पारिवारिक बोझ तुम पर नहीं पड़ा है।"

"हो सकता है, मगर अधिक भूख लगी है कहकर आक का फल क्या कोई कोई खा सकता है ? प्यास है कहकर क्या विष पिया जा सकता है।'

" अन्न अलग, आक का फल अलग, विष अलग, पानी अलग। इसी तरह वेतन, धन क्या अलग-अलग है ? ये दोनों टकसाल में छपकर धन के रूप में आते हैं न ?"

"सच है, चूने का पानी सफेद है ; दूध का खीर भी सफेद ऐसा कहकर रिश्ते में जो जो बिरादर आते हैं क्या उनको चूने का पानी पिलायेंगे ? स्वयं परिश्रम और सत्यमार्ग से जो आता है वह दूध के खीर के समान है, रिश्वतखोरी की कमाई चूने के पानी की तरह है । आदर्श जीवन के लिए आवश्यक है कि धन में शद्धता, प्राणों में निर्भयता हो । ऐसा मनोभाव आप का न हो, जिस किसी भी ढंग से हो जैसा आ जाय ।"

इतने में सब खामोश होकर कार्योन्मुख हुए। सिद्धरस हिसाब-किताब देखने आये। प्रधान लेखाकारने वार्षिक आय-व्यय का हिसाब लाकर दोनों मंत्रियों के सामने प्रस्तुत किया । जब दोनों मंत्री आंकडों का परिशीलन करते रहे तब बसवेश्वर को एक धोखा नजर आया। आय में नुकशान को निकालकर शेष (बाकी) को तो ठीक तरह से दिखाया ; फिर भी एक बडी रक़म दो दो बार व्यय में मिलाने से खजाने को धोखा हुआ है । बसवेश्वर के मस्तिष्क में आंदोलन उठा ।

कायक की अपेक्षा करके आया हुआ मैं आते ही सत्य बोलूँ तो मुझे कौन काम कौन देगा । मुझ जैसा अनुभवहीन यदि अनुभवी बुजुर्गों से किये गये आरोपों को दर्शा दूँ तो बुजुर्ग व्यथित न होंगे? क्यों वे मुझे ईर्ष्या बुद्धि का आदमी न समझेंगे ? ऐसा हो तो भी क्या ? अंतरात्मा इस छल को नहीं मानती। मुझे पुरस्कार न मिले, नौकरी न मिले कोई बात नहीं मैं तो सत्य ही कहूँगा । यह धन प्रजा का आभूषण है ; भक्तों का यह आभूषण कभी बरबाद न होना चाहिए। लाखों लोगों से लगान के द्वारा प्राप्त संपत्ति कुछ ही लोगों के घर में नहीं जाय । ऐसा सोचकर बसवने निश्चय कर लिया कि जो देखा था उसको बतला दूँगा । जो अन्याय हुआ था उसी को बसवेश्वर ने कह सुनाया । सिद्धरस स्तंभीभूत हुए। यह छोटा- बालक, कैसा गंभीर आरोप लगा रहा है ? यदि एक बार साबित करके नहीं बतलायेगा तो उसका भी अपनमान, और मेरे मित्र बलदेवरस का भी अपमान होगा। क्यों इसमें हाथ लगाया ? उसकी जीभ सूखने लगी, वे मौन हो खडे रह गये ।

बसवेश्वर के मुख पर आत्मविश्वास की झांकी झलक रही थी । कोण्डी मंचण्णा वित्तविभाग के प्रधान लेखाकार थे । वे पहले भयभीत होते हुए भी संभालकर ठठाकर हँसने लगे।

सचिव महोदयजी, हाय ढिठाई है बसवेश्वर की । प्रायः बलदेवरस का दामाद होने से अधिक धैर्य रहा होगा। इस हिसाब को जिन बुजुर्गों ने बैठकर किया है क्या उसमें हेरफेर हो सकता है ? हाय, लड़कपन है, कृपया, भूल जाइए। वित्त मंत्री सिद्धरसने बसवेश्वर को देखा। उन्होंने जो कहा था उसका समर्थन करने का साहस उसके मुख पर स्पष्ट था । सिद्धरस बोले " बसवेश्वर, तुमने जो कहा, क्या उसका समर्थन कर सकते हो ? "

"अवश्य, देखिए, इस तरह दो दो बार व्यय को दिखाकर पाँच करोड सुवर्णों को हड़पने की योजना की है"। सिद्धरसने बसवेश्वर के नेतृत्व में कुछ प्रमाणिक लेखाकारों को बुलाकर हिसाब कराया । तब अपव्यय होनेवाले पाँच करोड धन को पहचाना गया । ऊपरी निगाह से ही ऐसे दोषों को ढूँढ निकालने से बसवेश्वर के गणित ज्ञान से आश्चर्यन्वितहोकर सिद्धरसने उस ज्ञानयुक्त विख्यात लेखाकार को वार्षिक 101 सुवर्ण मुद्रा वेतन की व्यवस्था करके उन्हें प्रधान लेखाकार के रूप में नियुक्त किया। जैसे पहले संकल्प किया था वैसे ही बसवेश्वर की प्रतिभा ने ही उन्हें नौकरी दिलवायी

आयिदक्कि मारय्या वचन

कायक में मग्न हो तो
गुरुदर्शन को भी भूलना चाहिये।
लिंग पूजा को भी भूलना चाहिये।
जंगम सामनॆ होने पर भी उसके दाक्षिण्य में न पड़ना चाहिए।
कायक ही कैलास होने के कारण
अमरेश्वरलिंग को भी कायक करना है। -1520[1]

सन्दर्भ: विश्वगुरु बसवन्ना: भगवान बसवेष्वर के जीवन कथा. लेखिका: डा. पुज्या महा जगद्गुरु माता महादेवी। हिंदी अनुवाद: सी. सदाशिवैया, प्रकाशक: विश्वकल्याण मिशन बेंगलुरु,कर्नाटक. 1980.

[1] Number indicates at the end of each Vachana is from the book "Vachana", ISBN:978-93-81457-03-0, Edited in Kannada by Dr. M. M. Kalaburgi, Hindi translation: Dr. T.G. Prabhashankar 'Premi'. Pub: Basava Samiti Bangalore-2012.

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