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12. विवाह के लिए सम्मति

विवाह के लिए सम्मति

बसवेश्वरने संतृप्ति से गुरु के पास आकर नमस्कार किया। तब वे बोलते हैं -

मन ही साँप है, तन संपेरे की टोकरी;
साँप के साथ स्नेह संबंध है;
पता नहीं कब प्राणहरण करेगा,
पता नहीं कब काट खायेगा,
इसलिए प्रतिदिन आपकी पूजा करे तो
वही संपेरा का मंत्र है - हे, कूडलसंगमदेव।
/312 [1]

गुरुदेव, शरीर रूपी टोकरी में मन रूपी सर्प है। इसका खेल बहुत ही विस्मयपूर्ण भयानक है । कह नहीं सकते कि यह कब नाश करेगा। जो मंत्र विया जानता है और सर्प दंशन की औषधि से परिचित है वही उसको खेलाता है। वैसे मैं नित्यार्चन रूपी औषधि रखकर ही संसार रूपी सर्प से खेलने जाऊँगा । आप का अनुग्रह सदा रहे। कभी भी मेरा मन संकीर्णता और स्वार्थ से कलंकित न हो जाय । गुरुदेव मेरे आरक्षित मन को बिगड़ने से
बचाइए ।

बलदेवरस को गुरुवर के द्वारा सम्मति की सूचना मिली तो वे बहुत खुश हुए । मगर बसवेश्वरने कुछ निर्बन्धों को रखा। जब मैं कई आदर्शों के स्वप्नों को साकार करने निकलूँगा तब किसी तरह की रुकावटों, राजकीय दबावों को न डालना चाहिए। दूसरा, मुझ से संस्थापित होनेवाले धर्म के अनुसार स्त्री-पुरुष भगवान की दृष्टि में धार्मिक क्षेत्र में समान रूप से मान्य हैं। अतएव आप को अपनी बेटी को भी दीक्षा संस्कार देने में स्वीकृति देनी है। दूसरे निर्बन्ध से बलदेवरस भयभीत हुए। “बसव कहीं ऐसा हो सकता है ? हमारे संप्रदाय के अनुसार स्त्री शूद्र के समान है। संस्कार से वह बहिष्कृत है।'

ऐसा हो तो संस्कार रहित शूद्र की माता से जन्मा कोई अपने शूद्रत्व को ठुकराकर कैसे ब्राह्मण हो सकता है ? जन्म से सभी शूद्र हैं । संस्कार से ब्राह्मण हो सकता है तो सभी लोग धर्म संस्कार के लिए योग्य है न ? इसके अतिरिक्त सति-पति दोनों को एक ही संस्कार, गुणशील के होने चाहिए। धान-चावन दोनों को एक साथ मिलाकर भात नबना सकते हैं। उसी तरह संस्कार युक्त पति, संस्कार रहित पत्नी दोनों का सम्बन्ध और जीवन धान-चावल को मिलाकर पकाने के समान है। तीसरा पुरुष की तरह स्त्री को भी पेट की भूख वासना है ; उसके लिए विवाह कर लेती है । उसी तरह - उसमें भी आत्मा है ; आत्मा की भी भूख है; उसको मिटाने के लिए धर्म साधनों को हमें जुटाना है । बलदेवरसने यह तर्क मान लिया। विवाह का दिन निश्चय करके वे अपने परिवार के साथ कल्याण नगर को निकल पडे ।

सन्दर्भ: विश्वगुरु बसवन्ना: भगवान बसवेष्वर के जीवन कथा. लेखिका: डा. पुज्या महा जगद्गुरु माता महादेवी। हिंदी अनुवाद: सी. सदाशिवैया, प्रकाशक: विश्वकल्याण मिशन बेंगलुरु,कर्नाटक. 1980.

[1] Number indicates at the end of each Vachana is from the book "Vachana", ISBN:978-93-81457-03-0, Edited in Kannada by Dr. M. M. Kalaburgi, Hindi translation: Dr. T.G. Prabhashankar 'Premi'. Pub: Basava Samiti Bangalore-2012.

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