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11. संगमनाथ के सामने प्रलाप

संगमनाथ के सामने प्रलाप

मंदिर में प्रवेश करते ही दुख उमड़ पड़ा। बसवेश्वर गर्भगृह के सामने खडे होकर

विषय वासना रूपी हरियाली फैला दी तुमने सम्मुख मेरे,
पशु क्या जाने बेचारा? वह हरीघास समझकर खाता है।
विषयवासना रहित बनाकर, भक्ति रस खूब चकाकर
सद्बुद्धि का पानी पिला कर
हे! कुडलसंगमदेव रक्षा करो मेरी।
/356 [1]

भगवान, अब मेरी तरफ से बोलनेवाला कोई नहीं । तुम ही मार्गदर्शन करो। प्रभु किसी आमिष से मन न हारने का अनुग्रह कीजिए। जब बसव ईश्वर से प्रार्थना कर ही रहे कि उसके सामने एक प्रकाश घनीभूत होकर सम्मुख हुआ । संगमनाथ सगुणरूप में आकर बोले-

"हे पुत्र बसवेश्वर, तुझे पृथ्वी पर शोभा बढाने के लिए भेज रहा हूँ । तू बिज्जल राजा के मंगलवेड जा ।" इस तरह की वाणी सुनते ही चकित होकर बसवेश्वर दुखतप्त होकर बोले।

'भगवान, तुम कितने निष्ठुर हो ? मैंने क्या अपराध किया है ? कया चांदिनी में ताप होगा? क्या अमृत में विष होगा ? आश्रितों को बाहर भगाना आपका कौन सा न्याय है ? अन्न मांगनेवाले बच्चे को उसकी माँ कभी विष न देगी। क्या तुम महादानी होकर इस तरह विष पिला सकते हो? तुम्हारे निर्मल प्रेम को यह कठोरता जँचती नहीं ।" थोडे गुस्से में निवेदन करते समय पुन: संगमेश्वर की आज्ञा हुई। " बसवेश्वर तुझे जितनी भक्ति मुझ पर है उससे भी अधिक तेरे प्रति ममता मुझ में है । तुझे छोड़कर मैं क्या रह सकता हूँ | तेरे पीछ शक्ति बनकर रहूँगा । तेरे द्वारा अपना संकल्प पूरा कर लूँगा । मेरे लिए तुझे साधन बनना है । कल सबेरे स्नान करके शुचिर्भूत होकर आओ। मैं तुझे अनुग्रह करूँगा। मैं तेरा गुरु हूँ। इस महत्तर कार्यभार को निर्वाह करके चलो। संसार को जीवन के उदात्तीकृत सिद्धांत को प्रबोधित करो कि वैवाहिक जीवन स्वीकार करने पर भी आध्यात्मिक सिद्धि प्राप्त की जा सकती है। मैं निराकार हूँ तो तू मेरे साकार का प्रतिनिधि है । चल, पुत्र मेरा अनुग्रह सदा तुझ पर रहता है।"

उबलते दूध पर ठंडे पानी को छिडकाने की तरह मन का उद्वेग दूर हुआ। बसवेश्वर अपने में ही स्वयं निर्णय लेकर भगवान को नमस्कार करके वहाँ से उठकर निकल पडे ।

सन्दर्भ: विश्वगुरु बसवन्ना: भगवान बसवेष्वर के जीवन कथा. लेखिका: डा. पुज्या महा जगद्गुरु माता महादेवी। हिंदी अनुवाद: सी. सदाशिवैया, प्रकाशक: विश्वकल्याण मिशन बेंगलुरु,कर्नाटक. 1980.

[1] Number indicates at the end of each Vachana is from the book "Vachana", ISBN:978-93-81457-03-0, Edited in Kannada by Dr. M. M. Kalaburgi, Hindi translation: Dr. T.G. Prabhashankar 'Premi'. Pub: Basava Samiti Bangalore-2012.

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