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महात्मा बसवेश्वर

बसव वचन

देवलोक मर्त्यलोक अलग नही है।
सत्यवचन बोलना ही देवलोक।
असत्यवचन बोलना ही मर्त्यलोक।
सदाचार ही स्वर्ग, अनाचार ही नरक।
आप ही प्रमाण है कूडलसंगमदेव!

महात्मा बसवेश्वर भारतीय मनीषा के प्रथम बागी धर्म गुरु हैं, उनका विद्रोह अंधविश्वास और अंधश्रद्धा के विरोध में सदैव मुखर रहा है। महात्मा बसवेश्वर के काल में समाज ऐसे चौराहे पर खड़ा था, जहां चारों ओर धार्मिक पाखंड, जात-पात, छुआछूत, अंधश्रद्धा से भरे कर्मकांड, पंडित-पुरोहितों का ढोंग और सांप्रदायिक उन्माद चरम पर था। आम जनता धर्म के नाम पर दिग्भ्रमित थी।

१२ शताब्दि जो बसवेश्वर की चेतना का काल है, पूरी तरह सभी प्रकार की संकीर्णताओं से आक्रांत था। धर्म के स्वच्छ और निर्मल आकाश में ढोंग-पाखंड, हिंसा तथा अधर्म व अन्याय के बादल छाए हुए थे। उसी काल में अंधविश्वास तथा अंधश्रद्धा के कुहासों को चीर कर बसवेश्वर रूपी दहकते सूर्य का प्राकट्य भारतीय क्षितिज में हुआ।

बसवेश्वर का जन्म कर्नाटक के इंगळॆश्वर ग्राम मॆ रोहिनि नक्षत्र, अक्षय तृतिय, आनंदनाम संवत 30-4-1134 को हुवा। माता मादलाम्बिके ऒर पिता मादरस. बसवेश्वर का मृत्यु श्रावण सुद्ध पंचमि, नळनाम संवत 30-7-1196 को हुवा।

बसवेश्वर बीच बाजार और चौराहे के संत हैं। वे आम जनता से अपनी बात पूरे आवेग और प्रखरता के साथ किया करते हैं, इसलिए बसवेश्वर परमात्मा को देखकर बोलते हैं और हम किताबों में पढ़कर बोलते हैं। इसलिए बसवेश्वर के मन और संसारी मन में भिन्नता है।

आज समाज के जिस युग में हम जी रहे हैं, वहां जातिवाद की कुत्सित राजनीति, धार्मिक पाखंड का बोलबाला, सांप्रदायिकता की आग में झुलसता जनमानस और आतंकवाद का नग्न तांडव, तंत्र-मंत्र का मिथ्या भ्रम-जाल से समाज और राष्ट्र आज भी उबर नहीं पाया है।

८०० सौ वर्षों के सुदीर्घ प्राकट्यकाल के बाद भी बसवेश्वर हमारे वैयक्तिक एवं सामाजिक जीवन के लिए बेहद प्रासंगिक एवं समीचीन लगते हैं। वे हमारे लोकजीवन के इर्द-गिर्द घूमते नजर आते हैं। बसवेश्वर मानवीय समाज के इतने बेबाक, साफ-सुथरे निश्छल मन के भक्त कवि हैं जो समाज को स्वर्ग और नर्क के मिथ्या भ्रम से बाहर निकालते हैं। वे पुजारि और पंडितों को साफ लफ्जों में दुत्कारते हैं। बसवेश्वर आज भी दहकते अंगारे हैं। कानन-कुसुम भी हैं बसवेश्वर जिनकी भीनी-भीनी गंध और सुवास नैसर्गिक रूप से मानवीय अरण्य को सुवासित कर रही है। हिमालय से उतरी हुई गंगा की पावनता भी है बसवेश्वर।

बसवेश्वर भारतीय मनीषा के भूगर्भ के फौलाद हैं जिसके चोट से ढोंग, पाखंड और धर्मांधता चूर-चूर हो जाती है। बसवेश्वर भारतीय संस्कृति का वह हीरा है जिसकी चमक नित नूतन और शाश्वत है।

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