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1. बसवण्णा ( बसवेश्वर) कौन है ?

"जनमानस में अपूर्व जागृति लाकर, कोई भी जन्म से उच्च या नीच न होकर जन्म से सभी समान होकर नैतिक ज्योति की प्राप्ति से श्रेष्ठ बनता है।" ऐसे तत्व का प्रचलन करके क्रांति पुरुष बसवेश्वरने समस्त मानव जाति को धर्म संस्कार प्राप्त कराने और मानव स्वतंत्रता के लिए संघर्ष कर मानवधर्म और विश्वधर्म को प्रदान किया । यह उत्प्रेक्षा नहीं है कि इनकी लडाई मानव के समाजिक, धार्मिक, शैक्षणिक, मूलभूत अधिकारों के लिए हुई; लेकिन उनका ध्यान रहा कि जाति, स्तर, पेशा आदि किसी भी भेद के कारण मात्र कोई भी अपने मूलभूत अधिकारों से वंचित न हो । ऐसे मूलभूत अधिकारों में धर्म- संस्कार भी एक है । इन सब को दिलाना ही उनका अंतिम लक्ष्य रहा ।

"कल्याण"(Welfare) को अंतिम ध्येय मानकर बसवणा धर्म को साधन बनाकर क्रांति करने लगे । जब लोग धर्म की तरफ न आये तब जनमानस तक धर्म पहुंचाने के कार्यक्रमों का आयोजन किया । मातृ भाषा में धर्म साहित्य रचकर जनता की बोलियों में शैक्षणिक ज्ञान देकर उन्हों" की बोलियों में आत्मगीत गाने की सुगमता प्रदान की। बसव के भगीरथ प्रयत्नों से मातृभाषा में आध्यात्म वचन साहित्य सरिता- प्रवाह के रूप में बहने लगते ही शोषण से तप्त असंख्य लोग पुनश्येतित होकर पनीत हुए। वे ऊपर उठकर मुक्ति के गौरीशंकर चढकर आत्मविश्वास के प्रकाश पुंज के समान चमकने लगे ।

नूतन परंपरा के सृष्टिकर्ता होकर "मनुजदेव" ही बनकर, दुखियों के रत्न्दीप बनकर, तप्तों के भाग्यदेवता होकर बसवेश्वर आत्मविश्वास की फव्वारों को जनमानस में प्रस्फुटित करनेवाले भुवन के भाग्यदाता है बसवेश्वर । ऐसे विभुति पुरुष का उदय की बारहवीं शती में सम्पन्न हुआ ।

विश्वगुरु बसवेश्वर के जीवन से सम्बन्धित उक्त प्रकाशन

विश्वगुरू बसवेश्वर 63 साल जीवित रहे। उनका जन्म आनंदनाम संवत्सर वैशाख मास के अक्षय तृतीया के दिन रोहिणी नक्षत्र में ई. 1134 में हुआ। उनका लिंगैक्य नलनाम संवत्सर श्रावण मास के पांचवें दिन ई. 1196 में हुआ।
कालज्ञान के वचनों में यह विवरण मिलता है कि उनका जीवितकाल 62 साल, 3 महिने, 2 दिन हैं।

अनेक लोगों के मतानुसार श्री गुरु बसवेश्वर 63 साल जीवित थे न कि ३6 साल । उन्होंने कल्याण में ही 36 साल निवास किया।

वे मंगलवेढे से अपने परिवार सहित कल्याण में आगमन विक्रमनाम संवत्सर कलिवर्ष 4192, श्रावण शुद्ध पांचवें, सोमवार के दिन अरुणोदय काल में हुआ । कल्याण से निर्वासित होकर उनका निर्गमन राक्षसनाम संत्सर फाल्गुण शुद्ध द्वादशी सोमवार के दिन ई. 1160 से 1196 तक अर्थात् 36 साल कल्याण में ही निवास किया था ।

यह विवरण केवल कालज्ञान वचनों में ही नहीं स्वतः धर्मपिता के वचनों में भी परिलक्षित है -

बन्धु, भक्ति का आवास बना
कल्याण छत्तीस साल
बन्धु, अनुभव का शिवसदन बना
सत्ताईस साल
बन्धु, पूर्व जैसा अनुभव नहीं, पूर्व जैसी भक्ति नहीं
तीन मास के अंदर ही
यहाँ खेलने में भय न रहा सुनो
महा कूडलसंगमदेव ॥

बसवेश्वर के षद्स्थल के अधिक वचनों के अनुसार कल्याण में धर्मपिता ने 36 साल निवास किया था। अनुभव मंटप का आरंभ 9 साल के पश्चात् हुआ। उसमें गोष्ठी का कार्याचरण "अनुभव मंटप" में सांस्थिक रूप में 27 साल तक चला ।

सन्दर्भ: विश्वगुरु बसवन्ना: भगवान बसवेष्वर के जीवन कथा. लेखिका: डा. पुज्या महा जगद्गुरु माता महादेवी। हिंदी अनुवाद: सी. सदाशिवैया, प्रकाशक: विश्वकल्याण मिशन बेंगलुरु,कर्नाटक. 1980.

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