लिंगायतमध्ये कायक समानता (कामात समानता)
Lingayat equality in work
कोई भी कायक करे वह ऐक ही कायक है|
कोई भी व्रत हो वह ऐक ही व्रत है|
खतरा चुकॆतो मृत्यु नहीं| व्रग चुके तो सामरस्य नहीं हॊता|
काकपिक के समान संग करने पर बढा नरक मिलेगा
गंगेश्वरलिंग में| /1374 [1]
कायक में मग्न हो तो
गुरुदर्शन को भी भूलना चाहिये|
लिंग पूजा को भी भूलना चाहिये|
जंगम सामनॆ होने पर भी उसके दाक्षिण्य में न पढना चाहिये|
कायक ही कैलास होने के कारण
अमरेश्वरलिंग को भी कायक करना है| /1520 [1]
किसी भी गोत्र जाति में पैदा कोकर भी
अपने-अपने कायक में, भक्ति में, च्युति न होऐसा रहना चाहीऐ|
व्रत जो भी अपनावे
उसके आगे हिचकिचाना छोढकर
त्रिकरण शुद्ध होकर आचरण करना चाहिऐ
पर-पुरुषार्थ हेतु कटवा सकते हैं क्या अपनि नाक?
किसी बढे बूढे की बात सुनकर
कर सकते यण> क्ता अमंगल को?
इस प्रकार क्रिया में भावशुद्ध होकर
भाव में दिव्य ज्ञान परिपुर्ण गुरु चर भक्ति में
चॆन्नबसवण्णा ही साक्षि हैं कि
स्वयं को कमलेश्वर लिंग समझेगा/ 1615 [1]
जो सत्य कायक नहीं करते वे भक्त नहीं|
जो सत्य शुद्ध नहीं वह कायक नहीं|
लोभ भव का बीज है
लोभरहितता सॆ नित्य मुक्ति है
उरिलिंग पेद्दिगळरस में यह भक्ति आसान नहीं देखो मा:| / 1298 [1]
नेमव्रत करने, भक्तों के घर जाकर
कायक भूलकर, धन सोना मांगना
सद्भक्ति के लिऐ कष्ट नहीं है क्या?
बह गुण अमरेश्वरलिंग से दूर है| / 1524 [1]
कम पैसों में काम करके अधिक धन मांगना
सत्य का कायक कहां?
भक्त को कायक के लिऐ कम पैसा लेना चाहिऐ
यही अमरेश्वरलिंग में चित्त शुद्ध का कायक है| /1527 [1]
पीढित कर, निंदा कर, दू:ख देकर
हर किसी से मांग लाकर
और जंगम को किया ऐसा कष्ट उठाकर किया भोजन
लिंग का नैवेध्य नहिं होता|
दैहिक श्रम से, मन के श्रम से आऐ
चर जमगम का स्वभाव समझकर
शांति से, संशयहीन हो जंगमलिंग को
करना ही दासोह है|
हरी साग सज्बी ही सही
कायक से मिला हो तो, वह लिंगार्पित है|
चन्नबसवण्णप्रिय चंदेश्वर लिंग केनैवेद्य के लिऐ वह अर्पित हूआ| /1817 [1]
गुरु को भी कायक से ही जीवन्मुक्ति है|
लिंग को भी कायक से ही शिला-चिन्ह नष्ट होता है|
जंगम को भी कायक से ही वेष पाश नष्ट होता है|
गुरु को भी जंगम की सेवा करनी चाहिऐ
लिंग को भी जंगम सेवा करनी चाहिऐ
जंगम को भी चर सेवा करनी चाहिऐ|
यह चन्नबसवण्णप्रिय चंदेश्वर लिंग का ज्ञान है| 1820 [1]
सत्यशुद्ध कायक से मिले दृव्य में
चित्त चंचल हुए बिना रहना चाहिऐ|
नियमित मजंदूरी नित्य नियम के अनुसार होना चाहिऐ|
नियमिन मजदूरी छोढ
संपत्ति की लालच में पढकर पैसे जमा करने पर
अपनी सारी सेवा व्यर्थ जाऐगी, देखो
अपनी लालच के पाश मॆं तूम ही बंधी हो जाओ
मेरा जंगम प्रसाद करना ही
यही चन्नबसवण्णप्रिय चंदेश्वर लिंग का प्राण है| / 1824 [1]
सत्यशुद्ध ’कायक’ से कमाकर,
धोखाधढी के बिना, लौकिक भाव मिटाकर
प्रतिदिन जंगम ’दासोह’ करानेवाले,
सद्भक्त के हृदय में स्थिर रहता है,
हमारा कामधूम धूळेश्वर| /1938 [1]
जो भी कायक हो, अपने योग्य कायक करके
गुरु लिंग जंगम को अर्पितकर
जो बचे उसे स्वीकार करो,
व्यधिग्रस्त हो तो, कराहो, बीमार पढे तो चीखो
प्राण गऐ तो मरो, इसके लिऐ ईश्वर की मुहताज क्यों?
भले! लध्ये सोमा! / 2025 [1]
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Reference:
[1] Vachanas selected from the book "VACHANA" (Edited in Kannada Dr. M. M. Kalaburgi), Marathi Version Translation by: Shri Shankar M. Patil, Smt. Savita S. Naadkatti. ISBN: 978-93-81457-10-8, 2012, Pub: Basava Samithi, Basava Bhavana Benguluru 560001.
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